आज हम इस बीमारी से जुड़े कई उपचारों के बारे में बता रहे हैं। इनमें से एक तरीका ऐसा भी है, जिसके बारे में कहते ही कि इसका उपयोग करने से डायबिटीज यानि मधुमेह कुछ ही समय में कंट्रोल हो जाता है।
आयुर्वेद के डॉक्टर राजकुमार का कहना है कि डायबिटीज नियंत्रण के लिए पारंपरिक तौर पर इस्तेमाल होने वाले इन दो नुस्खों को वैज्ञानिक तौर पर अति कारगर साबित किया जा चुका है, आज हम जिक्र करेंगे दो ऐसे नुस्खों को जिन्हें पारंपरिक हर्बल जानकार बतौर कारगर उपाय मधुमेह के रोगियों को देते हैं।
इसके तहत मधुमेह का जो इलाज चल रहा है उसे बंद करने की जरूरत नहीं है। मधुमेह पर नियंत्रण के लिए सदियों से पारंपरिक तौर पर इन नुस्खों का इस्तेमाल किया जा रहा हैं, लेकिन कुछ ही लोगों में जिनमें से मुख्य रूप से आदिवासी है।
1. एक चम्मच अलसी के बीजों को अच्छी तरह से चबाकर खाइए और दो गिलास पानी पीजिए। ऐसा प्रतिदिन सुबह खाली पेट और रात को सोने से पहले करना है।
2. दालचीनी की छाल का चूर्ण तैयार कर लीजिए और आधा चम्मच चूर्ण एक कप पानी में मिला लीजिए और इस मिश्रण को दोपहर और रात खाना खाने से पहले प्रतिदिन लीजिए।
इस बात का ध्यान रखें: इन दोनों नुस्खों की शुरुआत करने से पहले अपने इंसुलिन लेवल की जांच अवश्य करें ताकि एक पन्द्रह दिनों बाद जब पुन: जांच की जाए तो फर्क दिखाई दें।
वहीं पादप विज्ञान जगत के अनेक शोध पत्रों में इन फार्मुलों से गजब के परिणामों का दावा किया गया है, आदिवासी हर्बल जानकार तो इन फार्मुलों को सैकड़ों सालों से लोगों पर आजमा रहे हैं।
डायबिटीज/मधुमेह पर क्या कहती है चरक संहिता…
माना जाता है कि मधुमेह रोग का अस्तित्व तो 3000 साल पहले भी था, लेकिन यह राजाओं और धनिक वर्ग तक ही सीमित था, जिनका खानपान तो राजसी होता था लेकिन ‘काम’ के नाम पर आराम ही आराम करते थे। कई सुप्रसिद्ध राजा-महाराजा मधुमेह से पीडि़त रहे हैं।
आयुर्वेद के हजारों साल पुराने ग्रंथों में मधुमेह की चिकित्सा तथा उसके कारण और लक्षणों का उल्लेख मिलता है।
आचार्य चरक के अनुसार- स्थूल प्रमेही… बलाधिकस्य।। मधुमेह का रोग दो तरह का होता है, एक बलवान लोगों को लगता है और दूसरा निर्बल और पतले लोगों को अपना शिकार बनाता है।
चरक संहिता में मधुमेह का कारण…
‘ओज: पुनर्मधुर स्वभावं तद् रौक्ष्याद् वायु: कषायत्वेनाभि संसृज्य मूत्राशवाऽभिवहन मधुमेहं करोति।’
मधुमेह कफ मेद आदि के द्वारा आवरण वात प्रकोपक व्याधि है। अत: जो व्यक्ति मधुर रस, भारी और तले तथा अधिक चिकनाई वाले आहार, नये अन्न का सेवन (नया अन्न कफकारक होता है) करता है।
दिन में सोना, रात में जागना, श्रम नहीं करना, मलमूत्र के वेगों को रोकना आदि जिसकी आदत बन चुके हैं, उसके कफ, पित्त, मेद और मांस बढ़ जाते हैं और पाचनशक्ति कमजोर पड़ जाती है। जिसके चलते खाया भोजन न तो ठीक तरह से पच पाता है और न उससे रसादि धातुओं का निर्माण हो पाता है।
वहीं सुश्रुत संहिता में भी कुछ इसी प्रकार के कारण मधुमेह रोग को पनपाने में जिम्मेवार माने हैं।
मधुमेह के संबंध में आयुर्वेद में एक खास बात यह भी देखने में आती है कि इसमें मधुमेह के दो प्रकार के रोगी मानकर चिकित्सा कही गई है। लेकिन आधुनिक चिकित्सा में ऐसे रोगियों में कोई भेद नहीं किया गया है। आयुर्वेदानुसार भेद-
1. स्थूल मधुमेही (मोटापायुक्त रोगी)
2. कृश मधुमेही (दुबला-पतला रोगी)
स्थूल रोगी के रोग का कारण चिकनाई युक्त आहार का अधिकता से सेवन करना बताया गया है।
कृश रोगी के रोग का कारण धातुक्षय बताया गया है।
आयुर्वेदाचार्यों का मानना है कि अगर स्थूल रोगी सुपाच्य तथा हल्का आहार लें और कृशकाय रोगी वातनाशक, ओजवर्धक, बलवर्धक आहार का सेवन करते रहें, तब मधुमेह के दुष्प्रभावों से बचे रह सकते हैं।
अलग-अलग चिकित्सा…
: स्थूल काय (अधिक शरीरभार वाले) मधुमेही की चिकित्सा…
1. बेलपत्र 5-7 तक और कालीमिर्च के 3-4 दाने-दोनों को चबाकर खा लें। यह प्रयोग नित्य 1-2 बार करें, ऊपर से पानी पी लें।
2. रात को विजयसार की लकड़ी को पानी में भिगो दें, सुबह उसे निकाल लें। दिनभर में वही पानी पीते रहें।
3. काला जीरा और काले तिल-दोनों को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें।
रोज प्रयोग रोगावस्था के अनुसार 1-2 बार करें।
हर रोज प्रात: टहलें और इस समय नीम की 4-5 कोपलें धोकर मुंह में डालकर चबाएं और रस
निगलते रहें।
वहीं जिन्हें कब्ज की शिकायत हो, वे रात को सोने से पहले एक छोटी चम्मचभर त्रिफला गरम पानी से (सर्दियों में) या ताजा जल (गर्मियों में) लें।
: कमजोर शरीर वाले मधुमेहियों की चिकित्सा…
4-4 रत्ती शिलाजीत सुबह-शाम दूध से लें।
धातुक्षीणता के मधुमेही प्रात: सायं
वसन्त कुसुमाकर रस-1रत्ती (125 मि.ग्रा.)
मुक्ताशुक्ति भस्म-3 रत्ती (375 मि.ग्रा.)
ऊपर से दूध पियें।
माना जाता है कि मधुमेह की सर्वोत्तम औषधि शिलाजीत है। इनमें काले रंग की, भारी, चिकनी, रेत आदि विजातीय द्रव्यों से रहित और गौमूत्र जैसी गंधवाली शिलाजीत उत्तम है। इसे शालसारादिगण से भावना देकर वमन आदि से शरीर का शोधन कराके प्रात: काल सेवन करना श्रेष्ठ बताया गया है।
1. मधुसूदन वटी 3 ग्राम, शुद्ध शिलाजीत 2 ग्राम-यह एक मात्रा है। नीम छाल और गुड़मार बूटी के 80 ग्राम क्वाथ से इसे दोपहर में सेवन करने से मधुमेह नियंत्रित हो जाता है।
2. वंगभस्म एक रत्ती, शिलाजीत 3 रत्ती, स्वर्णमाक्षिक भस्म एक रत्ती, जामुन की गुठली का चूर्ण 3 माशे-इन सबको शहद (छोटी मधुमक्खी का) के साथ चाटने से बढ़ी हुई शर्करा नियंत्रित हो जाती है।
3. हरी गिलोय का रस 40 ग्राम, शहद 6 ग्राम (छोटी मधुमक्खी का), पाषाणभेद 6 ग्राम-तीनों को मिलाकर पीने से मधुमेह नियंत्रित हो जाता है।
4. विदारीकंद का चूर्ण 2 ग्राम, शतावरी चूर्ण 1 ग्राम तथा पका हुआ एक केला को खाकर ऊपर से दूध पियें। इसका सेवन नित्य एक बार करते रहने से मधुमेह में लाभ हो
जाता है।
5. बसन्त कुसुमाकर रस 1 गोली (2 रत्ती), गिलोय सत्व 4 रत्ती, जामुन बीज चूर्ण, गुड़मार चूर्ण, पीपल वृक्ष की छाल का चूर्ण-प्रत्येक 8-8 रत्ती-यह एक मात्रा है। इसे हल्दी स्वरस से चाटकर ऊपर से दूध पियें।
कहा जाता है कि इस प्रयोग से 7 दिन में ही डायबिटिज यानि मधुमेह को नियंत्रित हो किया जा सकता है। जबकि 40 दिन तक इसके सेवन से डायबिटिक व्यक्ति को बहुत लाभ होता है।
1. बेल के 11 पत्ते लेकर थोड़े पानी में बारीक पीस कपड़े से छानकर पियें। प्रतिदिन दो पत्ते बढ़ाते जायें। जब पत्तों की संख्या 51 तक पहुंच जाये, तब फिर 2-2 पत्ते कम करते जायें।
इस प्रकार बेलपत्र के सेवन से मधुमेह पर बहुत अच्छा लाभ होता है।
आयुर्वेद के जानकारों के अनुसार बेल पत्रों की तरह गूलर के पत्तों का सेवन भी लाभकारी रहता है, लेकिन जिन्हें कब्ज और अधिक प्यास लगने की शिकायत रहती है, उन्हें बेलपत्र का सेवन करवाना ही ठीक रहता है।
– इमली के बीज (छिले हुए), बबूल के बीज (छिले हुए), सिरस के बीज (छिले हुए), सेमल की मूली, तालमखाना, उटंगन के बीज, भांग के बीज- सबको समान मात्रा में लेकर कूटकर बारीक चूर्ण कर लें।
इस चूर्ण की 3-3 ग्राम मात्रा सुबह-शाम गाय के दूध से लेते रहने से कुछ ही दिनों में मधुमेह से आराम मिल जाता है।
– नीम गिलोय को कूटकर अर्क विधि से अर्क निकालें। इस अर्क की 10 ग्राम मात्रा में 60 ग्राम गाय का दूध और 3 ग्राम शहद डालकर पियें। यह प्रयोग सुबह-शाम दिन में दो बार करते रहने से एक महीने में आशातीत लाभ मिल जाता है।
– एक किलो हल्दी को बारीक कूटकर पांच किलो दूध में भिगो दें। दो-ढाई घंटे बाद उसे धीमी आंच पर पकायें। फिर ठंडा करके इसका दही जमा दें और दूसरे दिन मथकर घी निकाल लें।
इस घी की 3 से 6 ग्राम तक मात्रा का नित्य सेवन करें। इसे आटे में मिलाकर रोटी बनाकर भी खायी जा सकती है। मधुमेही को इससे बहुत लाभ मिलता है।
– छोटी दुद्धी का पंचांग तोड़कर सुखा लें। इसकी 3-3 ग्राम मात्रा सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से मधुमेह में शीघ्र लाभ हो जाता है।
कैथ फल के गूदे को छाया में सुखाकर चूर्ण कर लें। इस चूर्ण की 3-6 ग्राम मात्रा शहद के साथ सुबह-शाम नियमित रूप से लेते रहने से मधुमेह में आराम हो जाता है।
हाइ डाइबटीज पर नियंत्रण…
नियमित रूप से इंसुलिन और मधुमेह की दवा लेने वाले रोगियों के लिए आज हमारे पास एक अच्छी खबर है। वो खबर यह है कि पौधे की पत्तियां खाकर ही आप अपने शरीर में शुगर के स्तर को नियंत्रित कर सकते हैं। आपको दवाई या इंसुलिन के इंजेक्शन लगवाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी।
कॉसटस इग्नेउस नाम के पौधे को लोग इंसुलिन के पौधे के नाम से जानते हैं। हो सकता है आपको ये सभी बातें मिथ्या लगें लेकिन सच यह है कि आधुनिक विज्ञान भी इस इंसुलिन के पौधे के गुणों पर अपनी मुहर लगा चुका है।
इस हर्बल पौधे के पत्तियों का सेवन करने से हाइ डाइबटीज को भी अपने नियंत्रण में किया जा सकता है।
मधुमेह पर कुछ खास योग…
1. सूर्य प्रभाकर वटी (योग रत्नाकर)- एक से चार गोली तक दिन में 4-4 घंटे के अंतर पर दिन में 4 बार दूध या विजयसार के क्वाथ के साथ देने से लाभ होता है।
2. गुड़मारादि वटी- गुड़मार की पत्ती, जामुन की गुठली और सोंठ-समान भाग लेकर चूर्ण करके इसे घृतकुमारी (ग्वारपाठा) के रस के साथ खरल मे घोटकर मटर के दाने के बराबर की गोलियां बना लें।
नित्य 2-3 गोली भोजन के बाद पानी से लेते रहें।
3. शिलाजित्वादि वटी- यह सिद्धयोग संग्रह का स्वर्ण घटित योग है। 3-3 गोली विजयसार के क्वाथ के साथ 4-4 घंटे पर दिन में 4 बार लेने से मधुमेही को बहुत लाभ होता है।
4. मधुमेहारि चूर्ण- जामुन की गुठली 11 तोला, कलौंजी 7 तोला, आंवला 5 तोला, हरड़ 5 तोला, मजीठ 5 तोला, गोखरु 5 तोला, छोटी पीपल 2 तोला-इन सबका महीन कपड़छन चूर्ण बना लें।
2-4 ग्राम की मात्रा में भोजन के बाद पानी से लेते रहने से 21 दिन में बड़ी हुई शर्करा नार्मल हो जाती है।
5. नागभस्म- मधुमेह के मोटे शरीर वाले रोगी के लिए यह प्रयोग अच्छा है।
नागभस्म की एक रत्ती मात्रा में शुद्ध शिलाजीत की 2 रत्ती मात्रा मिलाकर मक्खन या शहद के साथ सुबह-शाम 10 दिन तक सेवन करने से मूत्र में शर्करा जाना बंद हो जाता है।
6. त्रिवंग भस्म- यदि मधुमेह रोग जोड़ों के दर्द के रोग होने के बाद उत्पन्न हुआ हो अथवा सिर या पेट के दर्द की शिकायत पहले से ही हो। तब यह प्रयोग अच्छा रहता है।
त्रिवंग भस्म की 2 रत्ती मात्रा को शहद में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करायें।
7. यशद भस्म- दुर्बल और कमजोर मधुमेह के रोगी को यशदभस्म की 2 रत्ती मात्रा को मक्खन या घी में मिलाकर दें। यह प्रयोग दिन में दो बार-सुबह शाम करना चाहिए।
मधुमेह में गिलोय का प्रयोग…
डॉ. राजकुमार के अनुसार यह सच है कि मधुमेह को पूरी तरह मिटा देने वाला इलाज अभी तक संभव नहीं हो सका है। लेकिन आयुर्वेद में ऐसे अनेक नुस्खे है जिनका सेवन पथ्यापथ्य का पालन करते हुए विधिपूर्वक किया जाए तो यह हठीला रोग भागने को विवश हो जाता हैं।
जो नुस्खे बता रहे हैं उनका मुख्य घटक गिलोय है। अपने बेहतरीन गुणों के कारण आयुर्वेदाचार्यो ने इसे ‘अमृता’ कहा है। अमृता नाम बहुत सार्थक है, क्योंकि अनेकानेक रोगों पर यह अमृत की तरह फलदायी होती है।
गिलोय भारत के तकरीबन सभी प्रान्तों में होती है। यह खेतों और बाड़ों की बागड़ों पर और वृक्षों पर खूब फैली हुई मिलती है। कहीं पैर के अंगूठे जितनी मोटी तो कही पतली, भूरे रंग की लंबाई में खूब बड़ी हुई मिलती है। इसके पत्ते हल्के लाल रंग के, हरे रंग के, पान के आकार के, छोटे-बड़े सब तरह के होते हैं। स्वाद में यह कड़वी होती है।
गिलोय के विभिन्न नाम…
संस्कृत-गुडुची, मधुपर्णी, अमृता, छिन्न रुहा। हिन्दी- गिलोय, गुडिचि। मराठी- गुड़बेल, गरुणबेल। गुजराती-गलो। बंगला-गुलंच, गरुच। लेटिन- टिनोस्पोरा कार्डिफोलिया, मेरिस्परमम का
गिलोय से जुड़ी कुछ खास बातें…
– जहां तक हो सके ताजी, परिपक्व, घूसर रंग वाला गिलोय का काण्ड काम में लेना चाहिए।
– अंगुली भर मोटी लता का काण्ड काम में लेना चाहिए।
– यदि सूखी गिलोय प्रयुक्त की जाये तो बरसात से पहले ही इसे तोड़कर छाया में सुखा लेना चाहिए।
– गिलोय जिस वृक्ष के सहारे बढ़ती है, उस वृक्ष के गुण भी इसमें समा जाते हैं। औषध प्रयोग में नीम वृक्ष की गिलोय श्रेष्ठ मानी जाती है।
गिलोय प्रभाव…
यह गुरु, स्निग्ध, तिक्त, कषाय, विपाक में मधुर, उष्णवीर्य, त्रिदोषशामक (वात, कफ की अपेक्षा इसका पित्तदोष पर विशेष प्रभाव पड़ता है।), दीपन, पाचन, पित्तसारक, अनुलोमक, ह्रद्य, वृष्य, मूत्रल, वेदनास्थापक, रक्तशोधक, रक्तवर्धक, रसायन, तृषा, दाह, प्रमेह, कास, पाण्डु, कामला, वातरक्त, कुष्ठ, ज्वर, कृमि, अर्श, मूत्रकृच्छ, ह्रदोग, वमन, आमाशय की अम्लता (आम), अग्निमांद्य, शूल, यकृत विकार, प्रवाहिका तथा ग्रहणी विकार दूर करती है।
वातविकारों पर घी के साथ, पित्त विकारों पर शर्करा के साथ तथा कफ विकारों पर गिलोय को मधु के साथ देना चाहिए। आमवात पर इसे सोंठ के साथ देना चाहिए, इसके क्वाथ में सौंठ चूर्ण मिलाकर।
गिलोय का एक-दो फुट लंबा टुकड़ा यदि गर्मी के मौसम में मिट्टी में डाल दिया जाये तो वह आगामी वर्षा ऋतु में बरसात का जल प्राप्त कर जीवित होकर बढऩे लगती है।
डायबिटिज में गिलोय…
मधुमेह रोग पर गिलोय का प्रयोग बहुत गुणकारी रहता है। स्व. वैद्य बनवीर सिंह ‘चातक’ का मानना था कि यदि पथ्यापथ्य को ध्यान में रखकर विधिपूर्वक गिलोय के इस प्रयोग का सेवन किया जाय तो मधुमेह रोग सदैव के लिए विदा हो जाता है।
प्रयोग इस प्रकार है-
गिलोय की बेल से पांच इंच का एक टुकड़ा चाकू से काटकर इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर साफ धूली हुई खरल में 5 दानें काली मिर्च और 5 पत्ते तुलसी (हरी या काली) के साथ डालकर खूब महीन पीसकर लुगदी को एक कप पानी में घोल लें। यह एक मात्रा है।
कहा जाता है ऐसी एक मात्रा सुबह खाली पेट और एक मात्रा ऐसी ही और तैयार करके शाम 5 बजे मधुमेह के रोगी को एक साल तक नियमित रूप से पिलाते रहने से मधुमेह मिट जाता है।
ध्यान रखें ये बात-
: इसे छानें नहीं, यू ही बिना छनी पीनी चाहिए।
: खरल में पीसना है, मिक्सी में नहीं।
: अंग्रेजी दवाई या इंसुलिन लगाए जा रहे हों तब इनका सेवन एकदम बन्द न करें। धीरे-धीरे 4-5 माह तक कम करते हुए बंद करना चाहिए। इस दौरान मूत्र और रक्तशर्करा की जांच कराते रहें, ताकि मधुमेह की स्थिति की जानकारी होती रहे।
: चिकित्साकाल में पथ्यापथ्य का कड़ाई से पालन करें।
विशेष- गिलोय के इस मिश्रण के साथ मधुसान (सनातन) 1-1 कैप्सूल भी सेवन करने से बहुत पुराना मधुमेह भी ठीक होने लगता है। मधुसान कैपसूल शुद्ध शिलाजीत के अलावा अन्य उन द्रव्यों का सन्तुलित मिश्रण है जो मधुमेह में बहुत कारगर सिद्ध हुए हैं।
यदि रोगी शारीरिक और पोरुष शक्ति से कमजोर है तो उक्त प्रयोग के आधा घंटे बाद दूध से बसंत कुसुमाकर रस और वृहत कामचूड़ामणि रस की 1-1 गोली भी दोनों बार सेवन करनी चाहिए।
जानकारों के अनुसार जहां अंग्रेजी दवाइयों के सेवन करते रहने से कई तरह के कुप्रभाव उत्पन्न होने लगते हैं वहीं इसके सेवन से मधुमेह के अलावा अन्य सभी घटक द्रव्यों के गुणानुकूल लाभ शरीर को मिलते रहेंगे।
पथ्य- जौ के आटे की रोटी, चना, मूंग, अरहर की दाल, लौकी, परवल, तुरई, टिण्डा, पालक, बथुआ, मैथी की भाजी, मैथी दाने का साग, ग्वारफली का साग, करेला, छाछ (मट्ठा) का सेवन करना चाहिए। कैथ, लहसुन की चटनी, नींबू का पुराना अचार, फीका दूध का सेवन भी उचित है। जौ का दलिया भी ठीक रहता है।
अपथ्य- आलू, अरबी, बैंगन, गाजर, समस्त कंद साग, मूली, शकरकंद, शक्कर, गुड़, सैक्रीन, कद्दू का साग तथा कोल्ड डिं्रक्स का सेवन नुकसानदायक रहने से सेवन नहीं करना चाहिए।
मधुमेह के ज्योतिषिय उपाय की मान्यता…
1. रुद्राक्ष की माला पहनें।
2. करेला खाए।
3. बेचैनी कम करें।
4. मोटापे पर भी काबू करें।
5. आंवले का प्रयोग करें।
6. दो चुटकी हल्दी शहद के साथ चाटें या एक कप पानी के साथ निहार मुंह पिएं।
7. मण्डूक आसन, योगमुद्रासन व अद्र्धमत्स्येन्द्रासन करें।
8. सादा भोजन करें, दिन में कई बार थोड़ा-थोड़ा भोजन करें।
9. अनुलोम विलोम कर सकते हैं।
10. रात को मीठा न लें।
11. सोने से पहले नींबू से फाड़कर दूध पिएं।
12. तांबे का छल्ला या कड़ा जरुर पहनें।
मधुमेह रोगी का आहार….
आयुर्वेद के जानकार अजय सिंह के अनुसार मधुमेह के रोगी का आहार केवल पेट भरने के लिए ही नहीं होता, उसके शरीर में ब्लड शुगर की मात्रा को संतुलित रखने में सहायक होता है। चूंकि यह रोग मनुष्य के साथ जीवन भर रहता है इसलिए जरूरी है कि वह अपने खानपान पर हमेशा ध्यान रखा जाए।
आमतौर मरीज ब्लडशुगर की नार्मल रिपोर्ट आते ही लापरवाह हो जाता है। मधुमेह के मरीज के मुंह में गया हर कौर उसके स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इसलिए जो भी खाएं सोच समझकर खाएं।
– इन्सुलिन हार्मोन के स्रावण में कमी से डायबिटीज रोग होता है। डायबिटीज आनुवांशिक या उम्र बढ़ने पर या मोटापे के कारण या तनाव के कारण हो सकता है। डायबिटीज ऐसा रोग है जिसमें व्यक्ति को काफी परहेज से रहना होता है।
– मधुमेह के रोगी को आंखों व किडनी के रोग, सुन्नपन आना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए सदैव यही प्रयत्न करना चाहिए कि ब्लड ग्लूकोज लेवल फास्टिंग 70-110 मिलीग्राम/ डीएल व खाना खाने के 2 घंटे बाद का 100-140 मिलीग्राम डीएल बना रहे।
इसके लिए इन्हें खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। 45 मिनट से 1 घंटा तीव्र गति से पैदल चलना या अन्य कोई भी व्यायाम करना चाहिए। सही समय पर दवाई या इंसुलिन लेना चाहिए। डायबिटिक व्यक्ति को अपने वजन व लंबाई के अनुसार प्रस्तावित कैलोरीज से 5 प्रश कम कैलोरी का सेवन करना चाहिए।
वहीं यदि वह रोगी मोटा हो तो उसे 200-300 कैलोरी और घटा देना चाहिए। ब्लड ग्लूकोज लेवल फास्टिंग 70-110 मिलीग्राम/ डीएल व खाना खाने के 2 घंटे बाद का 100-140 मिलीग्राम डीएल बना रहे। इसके लिए इन्हें खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। 45 मिनट से 1 घंटा तीव्र गति से पैदल चलना या अन्य कोई भी व्यायाम करना चाहिए।
सामान्य डायबिटिक व्यक्ति को अपने आहार में कुल कैलोरी का 40 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेटयुक्त पदार्थों से, 40 प्रतिशत फेट (वसा) युक्त पदार्थों से व 20 प्रतिशत प्रोटीनयुक्त पदार्थों से लेना चाहिए। एक वयस्क अधिक वजनी डायबिटिक व्यक्ति को 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट से, 20 प्रतिशत फेट से व 20 प्रतिशत प्रोटीन से कैलोरी लेना चाहिए।
डायबिटिक व्यक्ति को प्रोटीन अच्छी मात्रा में व उच्च गुणवत्ता वाला लेना चाहिए जैसे दूध, दही, पनीर, अंडा, मछली, सोयाबीन आदि का सेवन करना चाहिए। इंसुलिन ले रहे डायबिटिक व्यक्ति और गोलियांं ले रहे डायबिटिक व्यक्ति को खाना सही समय पर लेना चाहिए। ऐसा न करनेपर हायपोग्लाइसीमिया हो सकता है, जिसके लक्षण निम्न हैं –
(1) कमजोरी लगना, (2) अत्यधिक भूख लगना, (3) पसीना आना, (4) नजर से धुंधला या डबल दिखना, (5) हृदयगति तेज होना, (6) झटके आना एवं गंभीर स्थिति होने पर कोमा भी हो सकता है।
डायबिटिक व्यक्ति को हमेशा अपने साथ कोई मीठी चीज जैसे ग्लूकोज, शकर, चॉकलेट, मीठे बिस्किट में से कुछ रखना चाहिए ओर ऐसे लक्षण होने पर तुरंत इनका सेवन करना चाहिए। एक सामान्य डायबिटिक व्यक्ति को अपने आहार में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए कि वे थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ खाते रहें। दो या ढाई घंटे में कुछ खाएंं। एक समय पर बहुत सारा खाना न खाएं।
तले हुए पदार्थ, मिठाइयां, बेकरी के पदार्थों से परहेज करें। दूध सदैव डबल टोन्ड (स्किम्ड मिल्क) का प्रयोग करें। कम कैलोरीयुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें जैसे भुना चना छिलके वाला, परमल, अंकुरित अनाज, सूप, सलाद आदि का ज्यादा सेवन करें। दही (स्किम्ड मिल्क) से बनाया हुआ ले सकते हैं। छाछ का सेवन श्रेयस्कर होता है।
मैथीदाना (दरदरा पिसा हुआ) 1/2-1 चम्मच खाना खाने के 15-20 मिनट पहले लेने से शुगर कंट्रोल में रहती है व फायदा होता है। रोटी के आटे को बिना चोकर निकाले प्रयोग में लाएं व इसकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इसमें सोयाबीन मिला सकते हैं।
घी व तेल का सेवन दिनभर में 20 ग्राम (4 चम्मच) से ज्यादा नहीं होना चाहिए। अतः सभी सब्जियों को कम से कम तेल का प्रयोग करके नॉनस्टिक कुकवेयर में पकाना चाहिए। हरी पत्तेदार सब्जियां खाना चाहिए। अपनी कैलोरीज का निर्धारण कुशल डायटिशियन से बनाकर उसके अनुसार चलें तो अवश्य ही लाभ होगा व भोजन में विकल्प ज्यादा मिल सकते हैं जिससे आपका भोजन वैरायटी वाला हो सकता है व बोरियत नहीं होगी।
बिना साइड-इफैक्ट करें शुगर कंट्रोल…
आज हम आपको बहुत ही आसान एक ऐसा चमत्कारी नुस्खा बताने जा रहे हैं। जिसका कोई साइड-इफैक्ट भी नहीं है और उससे आपका शुगर लेवल पूरा कंट्रोल में आ जाएगा। सबसे बड़ी बात यह है कि इस नुस्खे में आपको कोई कड़वी चीज का सेवन नहीं करना पड़ेगा।
इसके लिए आप सबसे पहले करेले ले लें। इसकी एक किलो तक की मात्रा लेकर उसे मोटा दरदरा पीस लें। फिर इन पीसे हुए करेलों को एक छोटे टब में डाल लें और फिर उसमें पैरों को डुबोएं। फिर अपने पैर उसमें थोड़े हिलाते रहें।
जब 15 से 20 मिनट के बाद आपकी जीभ पर कड़वा स्वाद आने लगेगा तो आप अपने पैरों को निकाल कर धो लें। इस तरीके को आप एक बार अपनाकर जरूर देखें, हम आपको यकीन दिलवाते हैं कि आपका शुगर लेवल जरूर कंट्रोल में आ जाएगा। यह 100 काम में आने वाला नुस्खा है।