धरती से फरिश्तों की फौज जो निकली है
मां ने कहा था
कपड़ों पर स्याही लगाकर मत आना
वरना डांट पड़ेगी…।
अब कपड़ों पर लग गया था खून तो घर कैसे आते…। कुछ दर्द आंसुओं से नहीं धुलते
भोपाल में रहने वाली साक्षी साकल्ले गार्गव ने फेसबुक पर लिखा है कि…
कुछ दर्द आसूंओं से नहीं धुलते, कुछ जख्म मरहम से नहीं भरते,
कभी निकल जाते हैं इतने दूर राहगीर, कि रास्ते उन तक नहीं पहुंचते! हरेंद्र कुमार चांद्रायण लिखते हैं कि
गरीब ड्राइवर के परिवार के बारे में क्या सोचना है?
सोचा है कितनी कम तन्ख्वाह में भारी दबाब में
विषम मौसम में परिवार से दूर सेवा करता है
लगातार मौत के पथ पर अग्रसर रहता है
आगे बैठकर वो किसी पीछे वाले को कैसे मार सकता है।
“सिर्फ दुर्घटना “
अति दुखदायी
स्कूल मालिक ने पूरी फीस ली होगी
ट्रक के मालिक ने पूरा भाड़ा लिया होगा।
मेंटेनेन्स?
गल्ती एक ही पक्ष से हुई होगी नुकसान अतुलनीय। सुरक्षित ले जाने की जिम्मेदारी किसकी?
अपूरणीय क्षति के लिये दुखित मन मेरा।
सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी अरविंद उपरित भी उन लोगों में से हैं जो इस घटना से बेहद आहत हुए हैं, उन्होंने अपने फेसबुक वॉल पर यह दर्ज बयां किया…
मन आज अत्यन्त दुखी है। इन्दौर डी.पी.एस. बस हादसे मे दिवंगत मासूम बच्चों के लिए ये नया साल कैसा आया, दुर्घटनाग़स्त घायल बच्चे जीवनमृत्यु के बीच झूल रहे हैं, इस हादसे मे प़भावित अभिभावक अपने हृदय मे कितना वजनी पत्थर रखें, इक पर्वतताकारी शिला भी उनके दुख को दबा ना पाएगी, दुख उनके जीवनपर्यन्तदुख ये कैसा दुख। मां भगवती इन मासूमों की जननीयों को इस भीषण दुख को सहन करने की आप ही अपार शक्ति दें, मैय्याजी इन दिवंगत बच्चों को अपनी शरण में रखना।
‘आखरी इम्तिहान ‘ इम्तिहान आज आखरी लिया खुद ने,
कुछ मासूम जबाब नहीं दे पाये।
चुपचाप विदा हो गए कुछ दोस्त,
आखरी सलाम भी नहीं दे पाए।
जिंदगी ही रूठ रही,
जिन्हें वादा था आज शाम घुमाने का,
वो लौटकर घर नहीं पहुँच पाये।
चुप चाप विदा हो गए कुछ दोस्त,
आखरी सलाम भी नहीं दे पाए। कल स्कूल में कुछ आवाजे तो कम होगी,
कुछ सिसकिया होगी और आँखे तो नम होगी।
डांटते थे जिन्हें उन बच्चों को,
काश एक बार प्यार कर पाए ।
चुप चाप विदा हो गए कुछ दोस्त,
आखरी सलाम भी नहीं दे पाए।
टिफ़िन मे कुछ अलग खाने की।
जिनकी चाह थी एक अरसे से,
चिड़िया घर जाने की,
उनकी इन छोटी छोटी मांग को भी,
पूरा कभी न हम कर पाये।
चुप चाप विदा हो गए कुछ दोस्त,
आखरी सलाम भी नहीं दे पाए ।
पाबंदी और डांट थी।
उनके चेहरे की ये ख़ामोशी,
हम चाह कर भी ना मिटा पाये।
चुप चाप विदा हो गए कुछ दोस्त,
आखरी सलाम भी ना दे पाए । जिनकी कॉपियां अक्सर ,
लाल थी किसी के कलम से।
उम्र भर ही मलाल रहेगा,
एक शाबाशी न दे पाए।
चुप चाप विदा हो गए कुछ दोस्त,
आखरी सलाम भी न दे पाये।
नाजों से पली बच्ची को दुल्हन की चुनरी पहनाकर दी अंतिम विदाई
एक साथ उठी बच्चों अर्थी और एक साथ ही हुआ अंतिम संस्कार