यूनिवर्सिटी में दृष्टिबाधित पद पर प्यून की नौकरी के लिए योग्यता आठवीं पास होनी थी, लेकिन प्रहलाद इस योग्यता से बहुत ऊपर हैं। प्रहलाद के पास इंटरव्यू के लिए आने के रुपए नहीं थे तो दो दिन मजदूरी की। इसके बाद
इंदौर पहुंचे।
यूनिवर्सिटी ने कुछ दिन पहले दृष्टिबाधितों के लिए आरक्षित चतुर्थ श्रेणी के एक पद के लिए आवेदन मंगवाए थे। पूरे प्रदेश से 160 दृष्टिबाधितों ने आवेदन किए और 145 इंटरव्यू देने पहुंचे। यूनिवर्सिटी में डॉ. सुमंत कटियाल, डिप्टी रजिस्ट्रार रचना ठाकुर सहित चार प्रतिनिधियों ने प्रहलाद का चयन किया।
परिवार के लोग करते हैं मजदूरी
प्रहलाद बीएससी, एमएससी (कैमिस्ट्री) हैं। साथ ही केमिकल साइंस में नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट क्वालिफाइड हैं। एक प्रकार से वे असिस्टेंट प्रोफेसर की योग्यता रखते हैं। प्रहलाद ने बीएससी, एमएससी की पढ़ाई आइके कॉलेज से स्कॉलरशिप से पूरी की। उनके पिता नहीं हैं। मां, बहन व पत्नी की जिम्मेदारी है। देपालपुर के पास एक गांव में रहने वाले प्रहलाद के परिवार के अधिकांश सदस्य मजदूरी करते हैं। वे 70 प्रतिशत दृष्टिबाधित हैं। कम्प्यूटर भी चला लेते हैं।
इंटरव्यू के लिए कई योग्यताधारी पहुंचे
इस इंटरव्यू में प्रहलाद के अलावा कई ग्रेजुएट व पोस्ट ग्रेजुएट दृष्टिबाधित भी पहुंचे थे। दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली दो युवतियां भी आई थीं। ग्वालियर के एक दृष्टिबाधित को उनका पड़ोसी अपने खर्च पर लेकर आया था। उनका कहना था कि मैंने सोचा कि नौकरी लग जाएगी तो इनकी जिंदगी बन जाएगी। पूरी तरह दृष्टिहीन तीन बहनें और राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट खेल चुका एक खिलाड़ी भी इंटरव्यू के लिए पहुंचा था।
तनख्वाह के बाद बदलेगी स्थिति
इंटरव्यू बोर्ड ने प्रहलाद से पूछा था कि उन्हें नौकरी पर क्यों रखें, क्योंकि योग्यता के आधार पर उन्हें टीचर की नौकरी मिल जाएगी और वे प्यून की नौकरी छोड़ देंगे। प्रहलाद का जवाब था कि अभी तो मेरे पास कुछ नहीं है और जीने के लिए संघर्ष कर रहा हूं। मुझे स्थापना विभाग में ही रखा गया है। ज्वाइन करने के बाद एक दिन रुपए नहीं होने के कारण नौकरी पर नहीं आ पाया। पहली तनख्वाह मिलने के बाद मेरी और मेरे परिवार की स्थिति बदलेगी।