विशेषज्ञ कहते हैं, लगातार कर्ज बढ़ने से योजनाओं पर इसका असर पड़ता है। बेहतर यह है कि, सरकार अपनी आय बढ़ाए तो अधिक कर्ज की जरूरत न पड़े। हालांकि, सरकार का दावा है कि, विकास कार्य होंगे तो कर्ज तो लेना ही पड़ेगा।
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आए के स्त्रोत कम, खर्च ज्यादा
राज्य की आर्थिक सेहत कई साल से खराब है, लेकिन कोरोना काल में स्थिति ज्यादा बिगड़ गई है। लॉकडाउन ने मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था को बेपटरी कर दिया है। राजस्व आय में कमी आई और आय के अन्य स्रोत भी कम हो गए हैं। विकट आर्थिक चुनौतियों से निपटते हुए सरकार ने काम किया। कई विभागों के खर्चों में कटौती करते हुए कोरोना संक्रमण से बचाव और इलाज के लिए बजट की व्यवस्था की गई। प्रभावितों की मदद की गई। खेती-किसानी में भी हितग्राहियों को राशि बांटी गई।
सरकार ऐसे लेती है कर्ज
-जरूरत के मुताबिक कर्ज लेने के लिए प्रदेश सरकार एक बॉण्ड जारी करती है। आरबीआई के माध्यम से ये बॉण्ड जारी होते हैं।
-खुले बाजार से कर्ज लेने के लिए प्रस्ताव बुलाए जाते हैं, इसमें बैंक और वित्तीय संस्थाओं समेत अन्य कोई भी कर्ज देने के लिए आवेदन कर सकता है।
-निर्धारित तिथि तक आए ऑफर को खोला जाता है, जो सबसे कम ब्याज दर पर कर्ज देने को तैयार होता है, सरकार उसी से कर्ज लेती है।
-कर्ज के लिए ब्याज दरें बाजार के हिसाब से निर्धारित होती है।
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बजट से ज्यादा हो गई देनदारी
तीन साल पहली कर्ज का स्थिति पर नजर डाली जाए तो ये कर्ज 1 लाख 80 हजार करोड़ रुपए था, लेकिन अब यह बढ़ते-बढ़ते 2 लाख 53 हजार करोड़ रुपए तक जा पहुंचा है। जबकि, राज्य का बजट 2 लाख 41 हजार करोड़ रुपए का ही है। अगर आबादी के हिसाब से कर्ज देखें तो हर एक बाशिंदा औसतन 34 हजार रुपए से अधिक का कर्जदार हो गया है।
एक्सपर्ट व्यू: कर्ज लिमिट में ही लिया जाए…
वित्तीय मामलों के जानकार एवं पूर्व वित्त मंत्री राघवजी के अनुसार, सरकार को चाहिए कि, कर्ज लिमिट में ही लिया जाए। वित्तीय अनुशासन के लिए कर्ज का मर्यादित होना जरूरी है। बजट से ज्यादा कर्ज होना अच्छा नहीं कहा जा सकता। सरकार अनावश्यक खर्चों में कटौती कर आय के स्रोत बढ़ा सकती है। इसके लिए और भी उपाय हैं। वित्त मंत्री रहते हुए मैंने हमेशा प्रयास किया कि राज्य की जीडीपी के तीन प्रतिशत से अधिक का कर्ज राज्य पर न हो। इसलिए मैंने कर्ज की सीमा दो से ढाई प्रतिशत ही रखी। वित्तीय अनुशासन बनाए रखने का प्रयास किया।
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