साइबर लॉ एक्सपर्ट यशदीप बताते हैं, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट के अंतर्गत दिए गए सुरक्षा उपायों के तहत पर्याप्त इंतजाम न कर पाने के चलते उपभोक्ता को होने वाले नुकसान की जिम्मेदारी कम्पनियों की होती है। पीडि़त उपभोक्ता सायबर और एटीएम फ्रॉड में तो आईटी कोर्ट में केस लगा सकता है। इसके साथ ही क्रेडिट/ डेबिट कार्ड, डेटा चोरी होने, दुरुपयोग होने,हैकिंग जैसे मामलों में भी बैंकिंग या इस तरह की सेवा दे रही कम्पनियों के खिलाफ आई टी कोर्ट में दावा पेश कर सकता है।
कोर्ट ऑफ एक्जीक्यूटिंग ऑफिसर के कुल फैसले- आठ पीडि़त उपभोक्ता के पक्ष में आए फैसले- पांच
बैंक ने हर्जाना चुकाया- एक टेलीकॉम कम्पनी और बैंक अपील में गए- चार
टेलीकॉम कम्पनी और बैंक से हर्जाना जमा कराया- 2.33 करोड़
आईटी कोर्ट ने अधिकांश फैसले जनता के पक्ष में सुनाए हैं। कोर्ट के फैसले के बाद अपील में जाने के बावजूद कम्पनियों को अपील पर सुनवाई से पहले हर्जाना राशि जमा करने के निर्देश दिए जाते हैं, जिससे पीडि़त पक्ष की हर्जाना राशि कोर्ट के पास सुरक्षित हो जाती है और कम्पनियों के हर्जाना देने से बचाव के दूसरे रास्ते तलाशने की आशंका खत्म हो जाती है।
यशदीप चतुर्वेदी, साइबर लॉ एक्सपर्ट जिन कम्पनियों को उपभोक्ता के हितों की रक्षा कर पाने में चूक का जिम्मेदार पाते हुए जुर्माना लगाया जाता है, उन्हें वह चुकाना होता है, ऐसे में मामलों में अक्सर अपीलीय अथॉरिटी स्टे देने से पहले हर्जाने के रुपए जमा कराने के निर्देश देती है जिसके तहत हम रुपए जमा कराते हैं। आईटी कोर्ट की ओर से दिए फैसलों की राशि कोर्ट के पास जमा है, अपील का फैसला कम्पनी के खिलाफ जाते ही हर्जाने की राशि पीडि़त उपभोक्ता को मिल जाएगी।
मनीष रस्तोगी, आईटी सेकेट्री एवं जज, कोर्ट ऑफ एक्जीक्यूटिंग ऑफिसर