कंपनी ने बीमा नहीं देने का सबसे बड़ा आधार बताया कि मृतक ने पॉलिसी लेते समय ऑबेसिटी विथ हाइफोथियोडिस्म बीमारी छिपाई थी। जबकि बीमा एजेंट की रिपोर्ट में बीमित व्यक्ति का स्वास्थ उत्तम बताया गया है। बीमा कंपनी 2012 से ही मोना कुशवाह को बीमा देने से इनकार कर चुकी है। मोना ने बीमा लोकपाल में भी शिकायत की, लेकिन यहां भी उसे हार का सामना करना पड़ा,लेकिन मोना ने उपभोक्ता फोरम की मदद ली।बीमा कंपनी बार-बार मौखिक यह तर्क देती रही कि बीमित व्यक्ति ने स्वास्थ्य संबंधी जानकारी छिपाई है। जबकि बीमित व्यक्ति की पॉलिसी में बीमा एजेंटी की रिपोर्ट ने अहम भूमिका निभाई।
बीमा कंपनी पेश नहीं कर पाई कागजात
बीमा कंपनी ने क्लेम ठुकराने संबंधी कोई ठोस दस्तावेज पेश नहीं किया। कंपनी ने तर्क दिया कि व्यक्ति द्वारा लगातार एक निजी अस्पताल में संबंधित बीमारी का इलाज करवाया गया। पॉलिसी में इसके बारे में सही जानकारी नहीं दी गई। बीमा एजेंटी की गोपनीय-नैतिक रिपोर्ट में किसी तरह की बीमारी से इंकार किया गया है। इन दोनों ही आधार पर मृतक के परिजनों को बीमा क्लेम देने के आदेश जारी किए गए हैं।
बीमा कंपनी ने क्लेम ठुकराने संबंधी कोई ठोस दस्तावेज पेश नहीं किया। कंपनी ने तर्क दिया कि व्यक्ति द्वारा लगातार एक निजी अस्पताल में संबंधित बीमारी का इलाज करवाया गया। पॉलिसी में इसके बारे में सही जानकारी नहीं दी गई। बीमा एजेंटी की गोपनीय-नैतिक रिपोर्ट में किसी तरह की बीमारी से इंकार किया गया है। इन दोनों ही आधार पर मृतक के परिजनों को बीमा क्लेम देने के आदेश जारी किए गए हैं।