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भोपाल

शहर हित देखें, प्लान में मास्टरी न दिखाएं

क्या होता है मास्टर प्लान। भविष्य के शहर के लिए बनाई जाने वाली योजना, लेकिन…

भोपालSep 13, 2017 / 12:50 pm

pankaj shrivastava

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भोपाल। क्या होता है मास्टर प्लान। भविष्य के शहर के लिए बनाई जाने वाली योजना। बढ़ती जनसंख्या और जरूरतों के आधार पर ऐसी व्यवस्थाएं अभी से करना कि आगे समस्या न हो। यह तो हो गई आम परिभाषा। लेकिन हकीकत बहुत अलग है। असल मास्टर प्लान तो वह है जो उन तमाम लोगों का ख्याल रखे जिन्हें शहर से रत्ती भर भी लगाव नहीं। जो विकास की योजनाएं भी अपने खीसे का ख्याल रखते हुए बनाते हैं। जिनकी कमाई तो यहां से होती है लेकिन लुटाई विदेशों में जाती है। जिन्हें शहरवासियों से कम और चंदा देने वालों से ज्यादा लगाव है। शहर के हित में प्लान नहीं बनाया जाता बल्कि स्वहित में प्लान के साथ मास्टरी दिखाई जाती है। भोपाल में ही देख लें। नया मास्टर प्लान लागू करने की कवायद कितने वर्षों से चल रही है।

ड्राफ्ट भी तैयार हो गया लेकिन ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब पुराने मास्टर प्लान में संशोधन की बाजीगरी दिखाई जा रही है। पिछले 20 सालों में तमाम रहवासी क्षेत्र को बाजार बना दिया गया। गली-गली में अस्पताल भी खुल गए। ऐसी जगहों पर गोदाम बन गए जो तभी नजर आते हैं जब कोई हादसा होता है और फायरबिग्रेड फंस जाती है। अब कहा जा रहा है कि 12 मीटर की सड़क हो तो अस्पताल चलाया जा सकता है। ये भविष्य में अस्पताल खोलने की शर्त बताई जा रही है या जो खुल चुके हैं उन्हें बचाने की कवायद है। ऐसी ही कुछ शर्तंे गोदाम और वेयर हाउस के लिए भी कर दी गई हैं। 1 किलोमीटर दूर कोई भी सरकारी पार्किंग स्थल बता दो और नगर-निगम मंजूरी दे दे तो अस्पताल, वेयर हाउस या गोदाम कुछ भी बना लो। ये क्या बात हुई भला। लोग एक किमी दूर वाहन लगाकर मरीज को गोद में लेकर अस्पताल आएंगे क्या। गोदाम और वेयर हाउस में एक किमी दूर से सामान ढोया जाएगा? समझ में यह नहीं आ रहा कि नया प्लान बनाने में या लागू करने में आखिर किसका नुकसान हो रहा है। काना-फूसी है कि जहां तथाकथित सरकारी मेहमानों ने जमीनों के सौदे कर लिए हैं वहां जरा सी भी छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं है। खुसर-पुसर तो यह भी है कि शायद इन्हीं वजहों से मास्टर प्लान का ड्राफ्ट दफन की जा चुकी फाइलों में से बाहर नहीं आ पा रहा है। यह वो शहर है जहां एक ठेला या गुमठी का अतिक्रमण हटवाने में रहवासियों या व्यापारियों के पसीने छूट जाते हैं। यह वह शहर है जहां कुछ कद्दावर नेता अतिक्रमणकारियों के पक्ष में मरने मारने को तैयार रहते हैं। वैसे ही पूरे शहर में फुटपाथ का अभाव है लेकिन जहां है भी वहां दुकानें लगवाने के लिए बाकायदा जगह नीलाम होती है। यह वह शहर है जहां लाइफलाइन कहे जाने वाले तालाब को भी खा जाने में कोई कसर बाकी नहीं है। इसके कैचमेंट में जाने कितने अतिक्रमण हैं लेकिन मजाल है हट जाएं। यही वह शहर है जहां नालों पर बाकायदा दुकानें और मकान तक बन चुके हैं और शहर दो बार डूब का शिकार हो चुका है। लेकिन जो बीत चुकी वह समस्या कैसी। सबक लेना इस शहर ने कहां सीखा है। वर्षों पुरानी कंडम हो चुकी गाडिय़ां भी यहां सड़क पर दौड़ती हैं। प्रदूषण के सारे नाम्र्स सिर्फ कागजों में हैं। लोग ही नहीं सरकारी एजेंसियां ऐसे कंडम वाहन दौड़ा रही हैं। पीने की पाइप लाइनें तमाम जगहों पर जर्जर हैं जो बदली जानी हैं। अनेक सेटेलाइट टाउनशिप में सड़कें अंधेरे में है। ट्रंासपोर्ट नगर, आरा मिलें और डेयरियां शहर से बाहर शिफ्ट नहीं की जा सकी हैं। वर्तमान में जब ऐसे हालात हैं तब आगे क्या होगा सोचा जा सकता है। हर जगह किसी न किसी के हित जुड़े हैं तो विकास कैसे होगा। ऐसे हालातों में कैसा होगा भविष्य का भोपाल। राजा भोज ने भी मास्टर प्लान बनाकर शहर को रचा था। आज भी पुराने शहर के खंडहर इस बात की गवाही देते हैं। पर कौन सीख ले रहा ऐसे तथ्यों से। बंद होना चाहिए यह खिलवाड़। लोग टैक्स इसलिए नहीं देते कि उस पैसे से सिर्फ वोट बैंक साधा जाए। मास्टर प्लान शहर का हक है। अव्यवस्थित विकास से शहर में अराजकता ही बढ़ेगी। यदि निवेश के लिए आप बाहें फैलाना चाहते हैं तो मुकम्मल व्यवस्थाएं भी करें। शहर की उड़ान का सपना ही नहीं दिखाएं सिर्फ, कोई रन-वे भी तो बनाएं।
– Pankaj.shrivastava@epatrika.com

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