इन सबके बीच आपसे एक महत्वपूर्ण विषय पर अपील करता हूँ कि आप किसान भाई प्रदेश के पर्यावरण की चिंता करते हुए खेत में पराली (नरवाई) न जलाएं। फसल के बाद डंठल या ठूँठ जिन्हें हम पराली कहते हैं, जलाने से चौतरफा नुकसान होता है। पराली जलाने से जमीन के पोषक तत्वों के नुकसान के साथ प्रदूषण भी फैलता है और ग्रीनहाउस गैंसे भी पैदा होती है जो वातावरण को बेहद नुकसान पहुँचाती है।
ये तथ्य जानकार बताते हैं कि पराली जलाने से अधजला कार्बन , कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड तथा राख उत्पन्न होती है जो वातावरण में गैसीय प्रदूषण के साथ धूल कणों की मात्रा में भी वृद्धि करती है। इसके साथ ही पराली जलाने पर मिट्टी के साथ वे कृषि सहयोगी सूक्ष्म जीवाणु तथा जीव भी जल जाते हैं जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने में सहायक होते हैं।
कमलनाथ ने कहा कि कृषि विशेषज्ञों का भी मानना है कि पराली जलाये बिना उसी के साथ गेहॅू की बुआई की जाये, सिंचाई के साथ जब पराली सड़ेगी तो अपने आप खाद में बदल जायेगी और उसका पोषक तत्व मिट्टी में मिलकर गेहॅू की फसल को अतिरिक्त लाभ देगा। अब तो ऐसे यंत्र भी उपलब्ध हैं जो ट्रेक्टर में आसानी से लगकर खड़े डंठलों को काटकर इक_ा कर सकते हैं और उन्हीं में बुआई भी की जा सकती है। दोनों विकल्प किसानों के लिये फायदेमंद है।
पराली जलाने से ज्यादा उसका उपयोग भूसे और पशु चारे में तब्दील करने में है। जलाने की बजाये इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन, कार्डबोर्ड और कागज बनाने में करने का सुझाव भी विशेषज्ञों का है।