विशेषज्ञों ने पत्र में कहा कि हमें कमेटी में रखा गया है, लेकिन हम सिर्फ शोपीस बनकर रह गए। किसी भी आपात स्थिति में राय नहीं ली जाती। यदि प्रोजेक्ट की ठीक से मॉनिटरिंग होती तो कुछ चीतों की मौतों को रोका जा सकता था। अधिकारियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक्सपर्ट्स की राय लेकर काम नहीं किया जा रहा है। उनके सुझावों पर भी अमल नहीं हो रहा। उनसे प्रोजेक्ट से जुड़ी जानकारियां भी छिपाई गई हैं।
विशेषज्ञों ने बताया कि जब हम एक सप्ताह की छुट्टी पर थे तो मादा चीता साशा की हालात खराब थी। उसे क्या खिलाया जा रहा है, ये नहीं बताया। वेटनरी डॉक्टर जितेन्द्र जाटव गुमराह करते रहे, जबकि हमने कहा था कि इन्हें फूड सप्लीमेंट्स दिए जाएं।
जनवरी में जब आशा और धात्री को समस्या हुई तो हम उसे बड़ी मुश्किल से चेक कर पाए। वहीं, ज्वाला भी चार बच्चों को जन्म देने के बाद काफी कमजोर हो गई थी। जब पहला बच्चा मरा तो हमें जानकारी नहीं दी। ज्वाला की निगरानी नहीं होने से बच्चों को दूध नहीं मिला और उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ा। अंतिम बच्चे की केयर हुई तो उसकी जान बच गई।
रिपोर्ट के अनुसार, मादा चीता दक्षा को दो नर चीतों के साथ छोड़ने से पहले उन्हें पास-पास के बाड़ों में रखना था। 24 घंटे निगरानी करनी थी। मादा चीता जब दोनों नर के साथ तैयार नहीं हुई तो हिंसक लड़ाई में मारी गई। उन्होंने आरोप लगाया कि चीता सूरज की मौत के बाद हमें फोटो या वीडियो नहीं भेजा। साउथ अफ्रीका में चीतों को समस्या होने पर तत्काल इलाज करते हैं। यदि हमें जानकारी देते तो एक अन्य चीता को बचाया जा सकता था। इनकी रोज की लोकेशन, व्यवस्था और खान-पान के बदलाव की रिपोर्ट भी शेयर नहीं कर रहे।
तत्काल शिफ्ट करना चाहिए
इधर चीता कंजर्वेशन फाउंडेशन की फाउंडर डॉ. लौरी ने कहा है कि गांधी सागर अभयारण्य बनने में समय लग रहा है। कूनो में स्थिति देखते हुए इन्हें तत्काल मुकुंदरा शिफ्ट किया जाना चाहिए। कूनो में प्री बेस बढ़ाने पर पहले ध्यान नहीं दिया। अप्रेल के बाद ग्राउंड स्तर पर हमारी मदद लेना भी बंद कर दी गई।
इधर कूनो नेशनल पार्क में मादा चीता धात्री की मौत के बाद अब मादा चीता निर्वा को ढूंढने की मशक्कत तेज हो गई है। उसे ढूंढने के लिए आधा दर्जन टीमें लगी हुई हैं।