पंडित सुनील शर्मा के अनुसार मां चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।
मां चंद्रघंटा का स्वरूप:
मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। मां चंद्रघंटा के दस भुजाएं हैं और दसों हाथों में खड्ग, बाण सुशोभित हैं।
माता चन्द्रघंटा देवी का स्वरूप तपे हुए सोने के समान कांतिमय लगता है। ऐसी मान्यता है कि माता के घंटे की तेज व भयानक ध्वनि से दानव, और अत्याचारी राक्षस सभी बहुत डरते है देवी चंद्रघंटा अपने भक्तों को अलौकिक सुख देने वाली है।
माता चंद्रघंटा का वाहन सिंह है और यह सिंह की सवारी करती है। यह हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहने वाली मुद्रा में होती है। मां चंद्रघंटा के गले में सफेद फूलों की माला रहती है।
मां चंद्रघंटा की पूजा:
देवी चन्द्रघंटा की भक्ति से आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है। जो व्यक्ति मां चंद्रघंटा की श्रद्धा व भक्ति भाव सहित पूजा करता है, उसे मां की कृपा प्राप्त होती है। जिससे वह संसार में यश, कीर्ति और सम्मान प्राप्त करता है।
माना जाता है कि मां के भक्त के शरीर से अदृश्य उर्जा का विकिरण होता रहता है, जिससे वह जहां भी होते हैं वहां का वातावरण पवित्र और शुद्ध हो जाता है।
इनके घंटे की ध्वनि सदैव भक्तों की प्रेत-बाधा आदि से रक्षा करती है साथ ही जहां भी भक्त जाता है उस स्थान से भूत, प्रेत एवं अन्य प्रकार की सभी बाधाएं दूर हो जाती है।
कहा जाता है कि जो साधक योग साधना कर रहे हैं, उनके लिए यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस दिन कुण्डलनी जागृत करने के लिए स्वाधिष्ठान चक्र से एक चक्र आगे बढकऱ मणिपूरक चक्र का अभ्यास करते हैं।
इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है। इस देवी की पंचोपचार सहित पूजा करने के बाद उनका आशीर्वाद प्राप्त कर योग का अभ्यास करने से साधक को अपने प्रयास में आसानी से सफलता मिलती है।
पूजा विधि:
तीसरे दिन की पूजा में माता की चौकी (बाजोट) पर माता चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसकेबाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टीके घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें।
इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारामां चंद्रघंटा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्रपुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
मां चंद्रघंटा मां चंद्रघंटा को दूध और उससे बनी चीजों का भोग लगाएं और और इसी का दान भी करें। ऐसा करने से मां खुश होती हैं और सभी दुखों का नाश करती हैं। इसमें भी मां चंद्रघंटा को मखाने की खीर का भोग लगाना श्रेयकर माना गया है।
हिनस्ति दैत्य तेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योह्यन: सुतानिव।। मां चंद्रघंटा का उपासना मंत्र:
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चन्दघण्टेति विश्रुता।।
ध्यान :
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम॥
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्ति: शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥ चन्द्रघंटा कवच:
रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥ बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।
स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥