दरअसल, ओपीडी में आने वाले संदिग्ध गलत मास्क का उपयोग करते हैं। जिससे वे मास्क पहनने के बाद भी संक्रमित हो जाते हैं। हमीदिया के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. पराग शर्मा बताते हैं कि रोज ओपीडी में 30 से 40 लोग ऐसे होते हैं जो वायरल इंफेक्शन से ग्रस्त होते हैं। इन्हें कोरोना संदिग्ध भी कहा जा सकता है। उनसे पूछते हैं कि कौन सा मास्क उपयोग करते हैं तो 60 फीसदी लोग रंग बिरंगे मास्क की बात ही करते हैं। वे बताते हैं यह मास्क किसी भी प्रकार से वायरस या बैक्टीरिया को रोक नहीं सकता।
गाइडलाइन तय नहीं होने से अलग-अलग रंग और प्रकार के मास्क लगा रही हैं पुलिसकर्मी।

ऐसे करना चाहिए मास्क का उपयोग
एन 95 : अस्पताल, क्लीनिक या लैबोरेटरी में काम करते या वहां जाने के दौरान, संक्रमित व्यक्ति से मिलने के दौरान।
एन 95 और फेस शील्ड : हाई रिस्क वाले व्यक्ति जैसे बुजुर्गों के साथ फेफड़ों या टीबी की बीमारी से जूझ रहे लोग।
थ्री लेयर सर्जीकल मास्क : ऑफिस में, बाजारों में जहां भीड़ हो, एक से ज्यादा लोग जहां एकत्रित हों।
सूती कपड़े का थ्री लेयर मास्क : अकेले कहीं घूमने जाने के दौरान वहां ज्यादा लोगों से संपर्क ना हो।

बीते दिनों मास्क की क्वालिटी को लेकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा शोध किया गया। अलग अलग ग्रुप में शामिल लोगों को एन 95 मास्क, सॢजकल मास्क के साथ डेनिम, कॉटन और घर में बने मास्क लगाए गए। कुछ दिनों बाद जांच में एन-95 और थ्री लेयर सॢजकल मास्क ही कारगर पाए गए।
श्वासरोग विषेशज्ञ डॉ. पीएन अग्रवाल के मुताबिक वायरस को रोकने एन-95 मास्क ही सबसे ज्यादा कारगर है। थ्रीलेयर सॢजकल मास्क भी बेहतर है, पर आजकल रंगबिरंगे मास्क का चलन बढ़ गया है। यह मास्क धूल मिट्टी के कणों से तो बचा सकते हैं पर वायरस या बैक्टीरिया से नहीं। इन मास्क से कोरोना जैसे संक्रमण से नहीं बचा जा सकता, इससे हम अपने साथ दूसरों को भी खतरे में डालते हैं।