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भोपाल

भाजपा के बागी विधायकों का आगे क्या होगा, विधायकी जाएगी या लागू होगा दलबदल कानून ?

1985 में संविधान का संशोधन विधेयक पेशकर दलबदल कानून बना था।
दलबदल कानून में विधायकों की सदस्यता समाप्त हो जाती है।

भोपालJul 25, 2019 / 09:46 am

Pawan Tiwari

 rebel Mla of BJP

भाजपा के बागी विधायकों का आगे क्या होगा, विधायकी जाएगी या लागू होगा दबबदल कानून ?

भोपाल. मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने का दावा करने वाली भाजपा का दांव उल्टा पड़ गया है। भाजपा के दो विधायकों ने सदन में दंड विधि (संशोधन) विधायक पर सरकार के पक्ष में वोटिंग की है। भाजपा के दो विधायकों के कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग करने से कमल नाथ सरकार मजबूत हुई है वहीं, अब बागी विधायकों को लेकर चर्चा शुरू हो गई है कि बागी विधायकों का क्या होगा। भाजपा के नारायण त्रिपाठी और शरद कोल ने सरकार के समर्थन में वोटिंग की है।
कांग्रेस का समर्थन करने से क्या विधायकों की सदस्यता जाएगी ?
सदन मे भाजपा ने व्हिप जारी नहीं किया था, इसलिए विधायक किसी के भी समर्थन देने के लिए स्वतंत्र होते हैं। केवल कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग करने से भाजपा विधायकों की सदस्यता पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
क्या दबबदल कानून लागू होगा?
अगर दोनों विधायकों पर दल-बदल कानून लागू होता है तो विधायकों की सदस्यता जा सकती है। हालांकि दलबदल कानून लागू करने का अंतिम फैसला विधायनसभा के अध्यक्ष को लेना है।
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अगर भाजपा पार्टी से बाहर कर दे तो?
अगर भाजपा अपने दोनों विधायकों को पार्टी से बाहर कर देती है तो विधायकों की सदस्यता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा और वो सदन में वोटिंग कर सकते हैं।
विधायक इस्तीफा दे दें तो?
अगर भाजपा के दोनों विधायक इस्तीफा दे देते हैं और उनका इस्तीफा मंजूर होता है तो उपचुनाव होंगे। इस उपचुनाव में ये दोनों विधायक किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ सकते हैं।
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बिना इस्तीफा दिया कांग्रेस में शामिल हुए तो क्या होगा?
अगर दोनों विधायक भाजपा और विधानसभा सदस्य से इस्तीफा दिए बिना कांग्रेस में शामिल हो जाएं तो भाजपा की शिकायत पर उनके खिलाफ दलबदल कानून लागू हो सकता है।

क्या होता है दल बदल कानून
1985 में संविधान का (52वां संशोधन) विधेयक पेश किया गया था। 52वें संविधान संशोधन के मुताबिक, किसी सदस्य द्वारा अपनी मर्जी से पार्टी छोड़ने या पार्टी व्हिप की अवहेलना करने की स्थिति में उसकी सदस्यता खत्म हो सकती है। इसमें दल-बदल और दल विभाजन में फर्क करते हुए कहा गया कि किसी दल के एक तिहाई सदस्य अगर पार्टी से अलग होते हैं या किसी दूसरे दल में मिलते हैं, तो सदस्यता खत्म करने का यह प्रावधान उन पर लागू नहीं होगा। बाद में, 91वें संविधान संशोधन में यह अनुपात दो-तिहाई सदस्य कर दिया गया। दल-बदल कानून लागू करने के सभी अधिकार सदन के अध्यक्ष या सभापति को दिए गए हैं।

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