सदन मे भाजपा ने व्हिप जारी नहीं किया था, इसलिए विधायक किसी के भी समर्थन देने के लिए स्वतंत्र होते हैं। केवल कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग करने से भाजपा विधायकों की सदस्यता पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
अगर दोनों विधायकों पर दल-बदल कानून लागू होता है तो विधायकों की सदस्यता जा सकती है। हालांकि दलबदल कानून लागू करने का अंतिम फैसला विधायनसभा के अध्यक्ष को लेना है।
अगर भाजपा अपने दोनों विधायकों को पार्टी से बाहर कर देती है तो विधायकों की सदस्यता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा और वो सदन में वोटिंग कर सकते हैं।
अगर भाजपा के दोनों विधायक इस्तीफा दे देते हैं और उनका इस्तीफा मंजूर होता है तो उपचुनाव होंगे। इस उपचुनाव में ये दोनों विधायक किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ सकते हैं।
अगर दोनों विधायक भाजपा और विधानसभा सदस्य से इस्तीफा दिए बिना कांग्रेस में शामिल हो जाएं तो भाजपा की शिकायत पर उनके खिलाफ दलबदल कानून लागू हो सकता है।
क्या होता है दल बदल कानून
1985 में संविधान का (52वां संशोधन) विधेयक पेश किया गया था। 52वें संविधान संशोधन के मुताबिक, किसी सदस्य द्वारा अपनी मर्जी से पार्टी छोड़ने या पार्टी व्हिप की अवहेलना करने की स्थिति में उसकी सदस्यता खत्म हो सकती है। इसमें दल-बदल और दल विभाजन में फर्क करते हुए कहा गया कि किसी दल के एक तिहाई सदस्य अगर पार्टी से अलग होते हैं या किसी दूसरे दल में मिलते हैं, तो सदस्यता खत्म करने का यह प्रावधान उन पर लागू नहीं होगा। बाद में, 91वें संविधान संशोधन में यह अनुपात दो-तिहाई सदस्य कर दिया गया। दल-बदल कानून लागू करने के सभी अधिकार सदन के अध्यक्ष या सभापति को दिए गए हैं।