मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी 300 वाहनों के जत्थे में सीधी जिले के चुरहट के लिए रवाना हुए। वे यहां बड़ी सभा को संबोधित करेंगे। त्रिपाठी पिछले कुछ दिनों से विंध्य प्रदेश बनाने की मांग उठा रहे हैं। इस मांग पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने उन्हें बुलाकर पार्टी लाइन से हटकर कोई बात नहीं करने की हिदायत दी थी। इसके बावजूद भी त्रिपाठी ने अलग विंध्यप्रदेश की मांग को लेकर संघर्ष करने की तैयारी कर ली है।
तेज हो चुकी है हलचल
मध्यप्रदेश में कुछ दिनों से सियासी हलचल बढ़ती हुई नजर आ रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी गणतंत्र दिवस पर रीवा में पहुंचकर झंडावंदन किया। वहीं पिछले दिनों सबसे बड़े सोलर पॉवर प्रोजेक्ट की सौगात दी थी। इसके साथ ही राजनीतिक गलियारों में मध्यप्रदेश विधानसभा का नया अध्यक्ष भी विंध्य क्षेत्र से बनाने की सुगबुगाहट चल रही है। माना जा रहा है कि 22 फरवरी को विधानसभा के बजट सत्र से पहले नया अध्यक्ष शपथ ग्रहण कर लेगा।
चुरहट में बड़ा आंदोलन करने का किया था ऐलान
मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी ने पार्टी लाइन से हटकर विंध्य प्रदेश बनाने की मांग को हवा दे दी थी। त्रिपाठी कुछ दिनों से समर्थन जुटाने में लगे हैं। हाल ही में उन्होंने सतना जिले के उचेहरा में भी सभा की थी और तब उन्होंने ये तक कहा था कि पार्टी छोड़ हर व्यक्ति प्रमोशन चाहता है। हम सपा में थे, कांग्रेस में गए, प्रमोशन मिला। कांग्रेस से भाजपा में आए प्रमोशन मिला। उन्होंने तब कहा था कि हम नया प्रदेश बनाने को नहीं बोल रहे हैं, हम चाहते हैं कि हमारा पुराना विंध्य प्रदेश ही वापस किया जाए।
पहले भी उठती रही है अलग विंध्य की मांग
1 नवंबर 1956 में मध्यप्रदेश का गठन हुआ था, इसके बाद विंध्य को अलग प्रदेश बनाए जाने की मांग उठने लगी थी। विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी भी अलग प्रदेश बनाए जाने के पक्षधर थे। तिवारी ने विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर विधानसभा में एक राजनीतिक प्रस्ताव भी रखा था। जिसमें उन्होंने कहा था कि मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र को मिलाकर अलग विंध्य प्रदेश बनाया जाना चाहिए। हालांकि इस मुद्दे पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई और बात आई-गई हो गई। लेकिन विधानसभा में प्रस्ताव आने के बाद कभी-कभी यह मांग दोबारा उठती रही। कई बार छोटे-मोटे आंदोलन भी हुए। खासबात यह है कि सन 2000 में केंद्र की एनडीए सरकार ने झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड प्रदेश बनाने के गठन को स्वीकृति दी थी। उस समय भी श्रीनिवास तिवारी के पुत्र दिवंगत सुंदरलाल तिवारी ने एक बार फिर मुद्दा गर्मा दिया था। उस समय एनडीए सरकार को एक पत्र लिखा था। मध्यप्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विधानसभा से एक संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था, लेकिन तब केंद्र ने इसे खारिज कर केवल छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना को हर झंडी दे दी थी।
कहां तक फैला है विंध्य क्षेत्र
मध्यप्रदेश के रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, उमरिया और शहडोल जिले विंध्य क्षेत्र में ही आते हैं, जबकि कटनी जिले का कुछ हिस्सा भी इसी में माना जाता है।
ऐसा था विंध्य प्रदेश
-मध्यप्रदेश के गठन से पहले विंध्य अलग प्रदेश था।
-विंध्य प्रदेश की राजधानी रीवा थी।
-आजादी के बाद सेंट्रल इंडिया एजेंसी ने पूर्वी भाग की रियासतों को मिलाकर 1948 में विंध्य प्रदेश बनाया था।
-विंध्य क्षेत्र पारंपरिक रूप से विंध्याचल पर्वत के आसपास का पठारी भाग माना जाता है।
-विंध्य प्रदेश में 1952 में पहली बार विधानसभा का गठन भी हुआ था।
-विंध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित शंभुनाथ शुक्ला थे, जो शहडोल के रहने वाले थे।
-वर्तमान में जिस इमारत में रीवा नगर निगम है, वो विधानसभा हुआ करती थी।
-विंध्य प्रदेश करीब चार साल तक अस्तित्व में रहा।
-1 नवंबर 1956 को मध्यप्रदेश के गठन के साथ ही यह मध्यप्रदेश में मिल गया था।