प्रदेश के 11 जिलों में अभी तक कौओं की मौत हुई है। वहां पर पशुपालन विभाग ने बर्ड फ्लू रोकथाम के उपाय किए हैं। संचालक पशुपालन डॉ आरके रोकड़े ने बताया कि सीहोर के सेंपल निगेटिव पाए गए हैं। अन्य कुछ जिलों की रिपोर्ट आना अभी बाकी है। केन्द्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार जिन जिलों में कौए मरे हैं वहां पर दो-तीन कौओं को सेंपल के लिए भेजा गया है। अन्य को चूना डालकर जमीन के अंदर दफन कर दिया गया है। अभी तक पॉल्ट्री में कोई संक्रमण नहीं पाया गया है। इसका कारण यह है कि कौओं में वायरस का जो स्ट्रेन पाया गया है वह एच5एन8 है। जबकि मुर्गियों में एच5एन1 से संक्रमण फैलता है जो कि अभी तक नहीं पाया गया है।
जैविक सुरक्षा से बच सकते हैं पॉल्ट्री फार्म पॉल्ट्री विशेषज्ञ और पशुपालन विभाग के रिटायर्ड अधिकारी डॉ पीपी वैद्य ने बताया कि जैविक सुरक्षा से पॉल्ट्री फार्म को संक्रमण से बचाया जा सकता है। वहां किसी भी बाहरी व्यक्ति को अंदर नहीं घुसने दें, फुटपाथ पर भी सेनीटाइजर डालकर रखें, हाउस के अंदर जाएं तो जूते-चप्पल बदलें। लगातार फॉगिंग करते रहें। बर्ड फ्लू से बिना किसी लक्षण के मुर्गे-मुर्गियां मर जाती हैं और उनकी कलगी नीली हो जाती है। सेनीटाइजेशन ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि बर्ड फ्लू का वायरस बार-बार रूप बदलता है इससे इसका वैक्सीन अभी तक सफल नहीं हो पाया।
वर्ष 2006 में बुरहानपुर में फैला था बर्ड फ्लू डॉ वैद्य बताते हैं कि वर्ष 2006 में बुरहानुपुर में पॉल्ट्री में बर्ड फ्लू फैला था। उस समय आसपास के 10 किलोमीटर के दायरे में जितने मुर्गे-मुर्गियां थे उन सबको खत्म कर चूना डालकर गाड़ दिया गया था। इससे संक्रमण केवल बुरहानपुर तक ही सीमित रहा था। अन्य जिलों में संक्रमण नहीं फैल पाया था। बर्ड फ्लू का संक्रमण मनुष्यों में हो सकता है लेकिन यह जानलेवा नहीं है। मेरी जानकारी में अभी तक प्रदेश में इससे किसी मनुष्य की मौत नहीं हुई है।