राज्य के अधिकारी-कर्मचारियों को प्रमोशन का भरोसा दिलाया जा रहा है। प्रदेश के इतिहास में यह पहला मौका है जब राज्य के अधिकारी-कर्मचारियों के प्रमोशन नहीं हो रहे, जबकि नौकरशाहों के मामले में कोई अड़चन नहीं। एक ही प्रदेश में दो प्रकार की नीति होने से कर्मचारियों में नाराजगी है।
इसलिए उलझा मामला
2002 में तत्कालीन सरकार ने पदोन्नति नियम बनाते हुए प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान कर दिया। ऐसे में आरक्षित वर्ग के कर्मचारी प्रमोशन पाते गए, लेकिन सामान्य वर्ग के कर्मचारी पिछड़ गए। विवाद बढ़ा तो कर्मचारी कोर्ट पहुंचे। प्रमोशन में आरक्षण समाप्त करने का आग्रह किया। तर्क दिया कि प्रमोशन का लाभ सिर्फ एक बार मिलना चाहिए। मप्र हाईकोर्ट ने 30 अप्रेल 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 खारिज कर दिया। सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। शीर्ष कोर्ट ने यथास्थिति रखने का आदेश दिया। यानी तब से राज्य में अधिकारी-कर्मचारियों के प्रमोशन किए जाने के निर्देश दिए।
कमेटी की बैठक ही नहीं हो सकी
कमलनाथ सरकार के समय मामला सदन में उठा। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने आसंदी से यहां तक कहा कि जब तक राज्य कर्मचारियों के प्रमोशन शुरू नहीं होते, तब तक नौकरशाहों के भी प्रमोशन न किए जाएं। राज्य कर्मचारियों के प्रमोशन का रास्ता निकालने हाईपावर कमेटी बनाई गई। कमेटी कागजों तक सीमित रही। बैठक नहीं हो पाई और कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई। शिवराज सरकार में भी कैबिनेट कमेटी गठित हुई, लेकिन कोई निर्णय नहीं हो सका। तभी से मामला फाइलों में कैद है। हालांकि अधिकारी, कर्मचारियों की नाराजगी दूर करने के लिए सरकार ने उच्च पद का प्रभार देने का रास्ता निकाला है। कर्मचारियों और अधिकारियों को कार्यवाहक का प्रभार सौंपकर संतुष्ट किया जा रहा है। पुलिस, जेल और वन विभाग के वर्दी वाले पदों पर यह व्यवस्था लागू की गई है, लेकिन कर्मचारी इससे संतुष्ट नहीं हैं।