यह भी कहा जाता है कि लोकप्रिय तौर पर बड़ा तालाब के रूप में जाना जाने वाली ये झील भारत में सबसे पुरानी मानव निर्मित झील है और रामसर साइट (रामसर कन्वेंशन संरक्षित और जलीय के उपयोग के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि है) के रूप में एक आर्द्र भूमि का प्रतीक है।
इस तालाब में साल 20 हजार प्रवासी पक्षी तालाब किनारे देखे जाते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में तालाब के संरक्षण के प्रति जितनी उपेक्षा और लापरवाही हमारी सरकार, प्रशासन और जिम्मेदार संस्थाओं ने बरती है, उससे तालाब को नुकसान ही हुआ है।
इस तालाब में साल 20 हजार प्रवासी पक्षी तालाब किनारे देखे जाते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में तालाब के संरक्षण के प्रति जितनी उपेक्षा और लापरवाही हमारी सरकार, प्रशासन और जिम्मेदार संस्थाओं ने बरती है, उससे तालाब को नुकसान ही हुआ है।
इसके संरक्षण के लिए न तो वेटलैंड रूल का पालन हो रहा है और न ही इसका मास्टर प्लान लागू किया जा रहा है। एनजीटी ने अब तक तालाब के संरक्षण के लिए जितने भी आदेश दिए उनमें से किसी का भी पूरी तरह पालन नहीं किया गया। इसके लिए एनजीटी ने आदेश दिया, फिर भी तालाब में गिरने वाले नालों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगाए।
इधर, अब एनजीटी पर भी रोक…
वहीं अब सुप्रीम कोर्ट ने सिंगल मेंबर बेंच पर रोक लगा दी है। ऐसे में एनजीटी की सभी जोनल बेंच में अब सुनवाई नहीं हो पाएगी। एनजीटी में सरकार द्वारा नियुक्तियां नहीं करने से केवल 4 ज्यूडिशियल और 2 एक्सपर्ट मेंबर बचे हैं। वहीं भोपाल बेंच के ज्यूडिशियल मेंबर के बीमार होने के कारण केवल एक्सपर्ट मेंबर सुनवाई कर रहे थे, अब वो भी बन्द हो जाएगी।
वहीं अब सुप्रीम कोर्ट ने सिंगल मेंबर बेंच पर रोक लगा दी है। ऐसे में एनजीटी की सभी जोनल बेंच में अब सुनवाई नहीं हो पाएगी। एनजीटी में सरकार द्वारा नियुक्तियां नहीं करने से केवल 4 ज्यूडिशियल और 2 एक्सपर्ट मेंबर बचे हैं। वहीं भोपाल बेंच के ज्यूडिशियल मेंबर के बीमार होने के कारण केवल एक्सपर्ट मेंबर सुनवाई कर रहे थे, अब वो भी बन्द हो जाएगी।
वहीं पिछले दिनों विशेषज्ञों का कहना था कि प्रदूषण सदियों पुरानी झील के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है और देश में सबसे बड़ा मानव निर्मित जल निकाय संरक्षण की जरूरी आवश्यकता में है। लोअर लेक और शाहपुरा लेक की तरह, ऊपरी झील में ऑक्सीजन के खराब भंग होने वाले स्तर विशेषज्ञों के बीच में असंतोष की भावना पैदा कर रहा है। ऐसे समय में जब कई शहरों में पानी की कमी की कमी हो गई, विशेषज्ञों ने अपर लेक में बढ़ते प्रदूषण के स्तर की चेतावनी दी, क्योंकि शहर की पेयजल की जरूरतों पर निर्भरता ज्यादा है।
पिछले वर्षोें में बड़े तालाब को हुए ये पांच नुकसान…
1. मास्टर प्लान बनवाकर उसे लागू करना भूले :
अहमदाबाद की सेप्ट यूनिवर्सिटी से इसके संरक्षण के लिए मास्टर प्लान तैयार कराया। इसकी मुख्य सिफारिश है 50 मीटर क्षेत्र को नो-कंस्ट्रक्शन जोन बनाकर अतिक्रमण हटाए जाएं। प्लान को लागू करने साधिकार समिति की बैठक में निर्णय होना था, लेकिन आज तक यह बैठक ही नहीं हुई।
2. तालाब के भीतर ही बना दी दीवार:
1. मास्टर प्लान बनवाकर उसे लागू करना भूले :
अहमदाबाद की सेप्ट यूनिवर्सिटी से इसके संरक्षण के लिए मास्टर प्लान तैयार कराया। इसकी मुख्य सिफारिश है 50 मीटर क्षेत्र को नो-कंस्ट्रक्शन जोन बनाकर अतिक्रमण हटाए जाएं। प्लान को लागू करने साधिकार समिति की बैठक में निर्णय होना था, लेकिन आज तक यह बैठक ही नहीं हुई।
2. तालाब के भीतर ही बना दी दीवार:
बैरागढ़ से खानूगांव तक 2680 मीटर रिटेनिंगवॉल बनाई। एनजीटी ने निर्माण पर रोक लगाई, लेकिन उसे गुमराह कर फिर से निर्माण शुरू कर दिया। 2016 में तालाब भरा तो पूरी दीवार डूब गई। अफसरों के साथ सीएम दीवार देखने पहुंचे और दीवार तोड़ने के निर्देश दिए, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
3. न सीमांकन हुआ और न ही अतिक्रमण हटा : एनजीटी ने मई 2016 में तालाब का सीमांकन कर चारों ओर 300 मीटर के दायरे में अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया, लेकिन एक साल में प्रशासन सिर्फ मुनारों का सत्यापन ही कर सका। तालाब का जियो मैपिंग सर्वे कराया, जिसमें क्षेत्रफल 32 किमी से बढ़कर 36 वर्ग किमी आया।
4.अब तक नहीं लग पाए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट :
तालाब में रोज 20 मिलियन लीटर सीवेज गिरता है। एनजीटी ने नवंबर-16 में सभी नालों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के आदेश दिए। निगम ने हलफनामा देकर फरवरी 2017 तक एसटीपी लगाने का भरोसा दिलाया, लेकिन पूरा साल बीतने के बावजूद एसटीपी के लिए टेंडर प्रक्रिया तक नहीं हो सकी है।
5. एफटीएल के अंदर सड़क :
4.अब तक नहीं लग पाए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट :
तालाब में रोज 20 मिलियन लीटर सीवेज गिरता है। एनजीटी ने नवंबर-16 में सभी नालों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के आदेश दिए। निगम ने हलफनामा देकर फरवरी 2017 तक एसटीपी लगाने का भरोसा दिलाया, लेकिन पूरा साल बीतने के बावजूद एसटीपी के लिए टेंडर प्रक्रिया तक नहीं हो सकी है।
5. एफटीएल के अंदर सड़क :
पीडब्ल्यूडी ने बैनियान ट्री स्कूल से बीलखेड़ा तक 3.5 किमी सड़क का निर्माण किया। सड़क का 3 किमी का हिस्सा एफटीएल के अंदर है। 2 किमी के हिस्से में सड़क के दोनों ओर पानी भरता है। सड़क बनाने के लिए तालाब के अंदर 18 फीट चौड़ाई में 6-8 फीट ऊंचाई तक भराव किया गया है।
संरक्षण का जिम्मा: 2 फरवरी 1971 को ईरान में हुए सम्मेलन में शामिल होने वाले देशों ने जैवविविधता वाली झीलों के संरक्षण के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो रामसर समझौते के नाम से जाना गया। इसी समझौते के आधार पर वर्ष 2002 में भोपाल के बड़े तालाब (भोजताल) को सामसर साइट घोषित किया गया।
संरक्षण का जिम्मा: 2 फरवरी 1971 को ईरान में हुए सम्मेलन में शामिल होने वाले देशों ने जैवविविधता वाली झीलों के संरक्षण के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो रामसर समझौते के नाम से जाना गया। इसी समझौते के आधार पर वर्ष 2002 में भोपाल के बड़े तालाब (भोजताल) को सामसर साइट घोषित किया गया।
वहीं अधिकारी मानते है कि रामसर साइट के नाम पर बड़े तालाब को केंद्र व राज्य से कोई संरक्षण राशि नहीं मिलती है। इसके संरक्षण का जिम्मा नगरीय विकास विभाग और भोपाल नगर निगम के पास है, जो कुछ भी हो रहा है या किया जाना है, उसके लिए सीधे तौर पर वे ही जिम्मेदार हैं।
पहले भी लगे आरोप…
वहीं पिछले दिनों जो बात सामने आई थी उसके अनुसार भोपाल के बड़ा तालाब की जियो मैपिंग में रिटेनिंग वॉल को बचाने के खेल में नगर निगम ने मैपिंग करने वाली एजेंसी से मिलकर आंकड़ों से जमकर छेड़छाड़ की है। 1665 से 1666.80 फुल टैंक लेवल के आंकड़े दिए। एेसे में स्थिति यह बनी कि तालाब के भीतर की जगह बाहर हो गई और बाहर की जगह अंदर।
वहीं पिछले दिनों जो बात सामने आई थी उसके अनुसार भोपाल के बड़ा तालाब की जियो मैपिंग में रिटेनिंग वॉल को बचाने के खेल में नगर निगम ने मैपिंग करने वाली एजेंसी से मिलकर आंकड़ों से जमकर छेड़छाड़ की है। 1665 से 1666.80 फुल टैंक लेवल के आंकड़े दिए। एेसे में स्थिति यह बनी कि तालाब के भीतर की जगह बाहर हो गई और बाहर की जगह अंदर।
जियो मैपिंग करने वाली कंपनी का कहना है कि उसे तो निगम ने जो आंकड़े दिए उसने उसके आधार पर मैपिंग कर दी। दिए गए आंकड़ों के आधार पर जो हिस्सा एफटीएल में आया, उसे चिह्नित कर रिपोर्ट तैयार कर दी।
गौरतलब है कि कंपनी ने नवंबर 2016 में काम शुरू किया था और एक माह यानी दिसंबर 2016 में पूरा कर रिपोर्ट सबमिट कर दी। आंकड़ेबाजी की इसी गड़बड़ का असर रहा कि तालाब के भीतर बनी रिटेनिंग वॉल तालाब के भीतर रहते हुए बाहर हो गई और बाहर की सड़क अंदर आ गईं। इतना ही नहीं, आंकड़ों की ही वजह है कि दायरा करीब साढ़े छह किमी तक बढ़ गया। दरअसल नगर निगम ने बड़ा तालाब की मैपिंग का काम करने वाली इंदौर की फ्रेंड्स एसोसिएट्स ने बड़ा तालाब में एक तय डाटा से ही मार्किंग है।