वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सीएम कमलनाथ के पास ही है। नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है। दावेदार या फिर उनके समर्थक दिल्ली से लेकर भोपाल तक एक हुए हैं। अभी तक इस रेस से बाहर पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का गुट भी अब एक्टिव हो गया है। लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश कांग्रेस में एक बार फिर से गुटबाजी चरम पर दिख रही है।
तीन गुट हुए एक्टिव
मध्यप्रदेश कांग्रेस में इन दिनों तीन गुट एक्टिव हो गए हैं। प्रदेश अध्यक्ष पद की दावेदारी के लिए सीएम कमलनाथ का गुट अलग, दिग्विजय सिंह का गुट अब अलग और सिंधिया गुट के लोग तो पहले से ही अपने महाराज को प्रदेश की कमान सौंपने की मांग कर रहे हैं। अभी जिन चार नामों के चर्चा चल रहे हैं, उनमें से दो दिग्विजय सिंह और दो कमलनाथ के खेमे के हैं। उसके बाद से सिंधिया खेमे के कई नेता इस्तीफे की धमकी देने लगे हैं। वहीं, ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए कई जिलों में उनके समर्थकों के द्वारा मुहिम भी चलाया जा रहा है।
मध्यप्रदेश कांग्रेस में इन दिनों तीन गुट एक्टिव हो गए हैं। प्रदेश अध्यक्ष पद की दावेदारी के लिए सीएम कमलनाथ का गुट अलग, दिग्विजय सिंह का गुट अब अलग और सिंधिया गुट के लोग तो पहले से ही अपने महाराज को प्रदेश की कमान सौंपने की मांग कर रहे हैं। अभी जिन चार नामों के चर्चा चल रहे हैं, उनमें से दो दिग्विजय सिंह और दो कमलनाथ के खेमे के हैं। उसके बाद से सिंधिया खेमे के कई नेता इस्तीफे की धमकी देने लगे हैं। वहीं, ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए कई जिलों में उनके समर्थकों के द्वारा मुहिम भी चलाया जा रहा है।
कमजोर कैसे पड़ रहे हैं सिंधिया
ज्योतिरादित्य सिंधिया विरासत की राजनीति की कर रहे हैं। गांधी परिवार में अच्छी पकड़ है। विधानसभा चुनाव में पार्टी को सफलता दिलाने के लिए खूब मेहनत की। अगर उनके गुट की छोड़ दें तो प्रदेश स्तर का और दूसरा कोई नेता उनके समर्थन में नहीं। साथ ही इस बार उनके साथ ड्रॉ बैक यह है कि प्रदेश से बाहर यूपी की जिम्मेदारी मिली तो वहां फ्लॉप साबित हुए। साथ ही इस बार अपनी लोकसभा सीट भी गवां बैठे। बाकी कोई ऐसी उपलब्धि उनके पास है नहीं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया विरासत की राजनीति की कर रहे हैं। गांधी परिवार में अच्छी पकड़ है। विधानसभा चुनाव में पार्टी को सफलता दिलाने के लिए खूब मेहनत की। अगर उनके गुट की छोड़ दें तो प्रदेश स्तर का और दूसरा कोई नेता उनके समर्थन में नहीं। साथ ही इस बार उनके साथ ड्रॉ बैक यह है कि प्रदेश से बाहर यूपी की जिम्मेदारी मिली तो वहां फ्लॉप साबित हुए। साथ ही इस बार अपनी लोकसभा सीट भी गवां बैठे। बाकी कोई ऐसी उपलब्धि उनके पास है नहीं।
सिंधिया परिवार के खिलाफ होती है गोलबंदी
हालांकि यह इतिहास पुराना है, जब सिंधिया परिवार का कोई व्यक्ति प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में एक्टिव होना चाहा तो एक गोलबंदी शुरू हो जाती है। माधव राव सिंधिया भी जब कांग्रेस में शामिल हुए थे तब उनके विरोधी राजसी छवि को लेकर निशाना साधते थे। उस वक्त सिंधिया के नेतृत्व का विरोध अर्जुन सिंह किया करते थे। उसके बाद भी दूसरे नेता माधव राव सिंधिया का प्रदेश की राजनीति में एंट्री का विरोध करते रहे। दिग्विजय गुट इसलिए सिंधिया के खिलाफ रहता है कि रियासत काल से ही राघोगढ़ की ग्वालियर से दूरी बनी हुई है।
हालांकि यह इतिहास पुराना है, जब सिंधिया परिवार का कोई व्यक्ति प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में एक्टिव होना चाहा तो एक गोलबंदी शुरू हो जाती है। माधव राव सिंधिया भी जब कांग्रेस में शामिल हुए थे तब उनके विरोधी राजसी छवि को लेकर निशाना साधते थे। उस वक्त सिंधिया के नेतृत्व का विरोध अर्जुन सिंह किया करते थे। उसके बाद भी दूसरे नेता माधव राव सिंधिया का प्रदेश की राजनीति में एंट्री का विरोध करते रहे। दिग्विजय गुट इसलिए सिंधिया के खिलाफ रहता है कि रियासत काल से ही राघोगढ़ की ग्वालियर से दूरी बनी हुई है।
सोनिया गांधी से मांगा था मिलने का वक्त
हालांकि ऐसा नहीं है कि अभी सिंधिया प्रदेश अध्यक्ष बनने की रेस से बाहर हो गए हैं। प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि नामों का पैनल नेताओं से चर्चा करके बनाया गया है। इसमें सिंधिया के नाम का भी सुझाव मिला है। एक अंग्रेजी अखबार के अनुसार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मिलने के लिए वक्त मांगा था। दोनों के बीच मुलाकात हुई कि नहीं इसकी कोई जानकारी अभी नहीं है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि अभी सिंधिया प्रदेश अध्यक्ष बनने की रेस से बाहर हो गए हैं। प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि नामों का पैनल नेताओं से चर्चा करके बनाया गया है। इसमें सिंधिया के नाम का भी सुझाव मिला है। एक अंग्रेजी अखबार के अनुसार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मिलने के लिए वक्त मांगा था। दोनों के बीच मुलाकात हुई कि नहीं इसकी कोई जानकारी अभी नहीं है।
दिग्विजय सिंह का गुट भी एक्टिव
प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के लिए मध्यप्रदेश के तीनों दिग्गज नेता अपनी चाल से एक-दूसरे को मात देने की तैयारी में हैं। मंगलवार को दिग्विजय सिंह ने अपने खेमे अजय सिंह और मंत्री गोविंद सिंह के साथ चर्चा की। इस गुट के लोग इन दोनों के नाम को आगे कर रहे हैं। अजय सिंह पूर्व सीएम अर्जुन सिंह के बेटे हैं और गोविंद सिंह भी सात बार से ज्यादा के विधायक हैं।
प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के लिए मध्यप्रदेश के तीनों दिग्गज नेता अपनी चाल से एक-दूसरे को मात देने की तैयारी में हैं। मंगलवार को दिग्विजय सिंह ने अपने खेमे अजय सिंह और मंत्री गोविंद सिंह के साथ चर्चा की। इस गुट के लोग इन दोनों के नाम को आगे कर रहे हैं। अजय सिंह पूर्व सीएम अर्जुन सिंह के बेटे हैं और गोविंद सिंह भी सात बार से ज्यादा के विधायक हैं।
दिग्विजय सिंह यहां पड़ रहे हैं कमजोर
लेकिन सवाल है कि आखिर दिग्विजय सिंह की बातें दिल्ली में सुनी कितनी जाएगी। उनके साथ कुछ कद्दावर नेता खड़े जरूर हैं। लेकिन दिग्विजय सिंह के नाम संगठन में पिछले कुछ सालों में विशेष उपलब्धि दर्ज नहीं है। इस बार लोकसभा चुनाव भी हार गए। इनके गुट के अजय सिंह भी प्रदेश की राजनीति में अब उतने एक्टिव नहीं दिखते हैं। लेकिन दिग्विजय सिंह की दिल्ली दरबार में पकड़ मजबूत है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि अगर दिग्विजय सिंह के गुट के किसी व्यक्ति को कुर्सी नहीं मिलती है तो कोई बात नहीं। उनकी कोशिश शायद सिंधिया को रोकने की है।
कमलनाथ गुट का पलड़ा भारी
वहीं, पार्टी के अंदर कमलनाथ खेमे के लोग यह चाहते हैं कि संगठन की कमान ऐसे व्यक्ति के हाथ में जो सरकार के साथ सम्नव्य स्थापित करके चले। सीएम खेमे की ओर से रेस में सबसे आगे गृह मंत्री बाला बच्चन का नाम आगे चल रहा है। बाला बच्चन प्रदेश आदिवासी चेहरा भी हैं। प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए पार्टी में खींचतान से हाईकमान भी परेशान है।
कमलनाथ हैं सबसे मजबूत
दरअसल, मध्यप्रदेश में सरकार चलाने के लिए कांग्रेस के पास खुद की बहुमत नहीं है। निर्दलीय और सहयोगी दलों के समर्थन से सरकार चल रही है। लगातार सरकार को अस्थिर करने की कोशिश भी की जाती रही लेकिन कमलनाथ ने विरोधियों के मंसूबे को कभी कामयाब नहीं होने दिया। उल्टे उनके ही दो विधायकों को अपने पाले में कर लिया। एक तरीके से पार्टी के अंदर कमलनाथ की छवि क्राइसिस मैनेजर के रूप में है। साथ ही गांधी परिवार से उनकी नजदीकियां भी जगजाहिर है। सोनिया गांधी से अच्छे रिश्ते हैं। ऐसे में इन दोनों गुटों पर कमलनाथ की छवि अकेले भारी है।
दरअसल, मध्यप्रदेश में सरकार चलाने के लिए कांग्रेस के पास खुद की बहुमत नहीं है। निर्दलीय और सहयोगी दलों के समर्थन से सरकार चल रही है। लगातार सरकार को अस्थिर करने की कोशिश भी की जाती रही लेकिन कमलनाथ ने विरोधियों के मंसूबे को कभी कामयाब नहीं होने दिया। उल्टे उनके ही दो विधायकों को अपने पाले में कर लिया। एक तरीके से पार्टी के अंदर कमलनाथ की छवि क्राइसिस मैनेजर के रूप में है। साथ ही गांधी परिवार से उनकी नजदीकियां भी जगजाहिर है। सोनिया गांधी से अच्छे रिश्ते हैं। ऐसे में इन दोनों गुटों पर कमलनाथ की छवि अकेले भारी है।
उम्मीद की जा रही है कि अगले नहीं तो इसी सप्ताह के अंत तक पार्टी आलाकमान किसी न किसी नाम पर मुहर लगा देगी। लेकिन मध्यप्रदेश कांग्रेस का बॉस कौन होगा, इसके लिए अंदरूनी खींचतान जारी है। अब सबकी निगाहें दिल्ली पर टिकी हैं। क्योंकि अंतिम फैसला वहीं होना है।