दरअसल भोपाल की लाइफ लाइन कहे जाने वाला बड़ा तालाब इस बार सूखने के कगार पर आ पहुंचा है। सामने आ रही जानकारी के अनुसार तालाब का पानी 14 स्क्वायर किलोमीटर से भी कम रह गया है।
जबकि पहले पानी का क्षेत्रफल पहले 31 स्क्वायर किलोमीटर हुआ करता था। यह वहीं बड़ा तालाब है, जिसे अपर लेक या बड़ी झील के नाम से भी जाना जाता है।
इन दिनों यहां के हालात ऐसे हैं कि ताकिया टापू जहां पहले लोग नाव का इस्तेमाल कर जाते थे अब वहां पैदल पहुंचा जा सकता है। आपको बता दें कि 10 साल पहले 2009 में भी कुछ ऐसे ही हालात बने थे।
ये हैं खतरे के मुख्य कारण…
भोपाल से लगातार गायब हो रही हरियाली को देखते हुए कई जानकारों का मानना है कि इन विषम परिस्थितियों में शहर के बीचोंबीच स्थित बड़ी झील यानि बड़ा ताल करीब 1 से 2 दशकों के बाद गायब हो जाए मतलब ऐसी परिस्थितियों में करीब 15-20 सालों के बाद ये भी शायद ही बच सके।
तालाब के पूरी तरह सूख जाने के बाद प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती अतिक्रमण रोकने की होती है। पिछले महीने नगर निगम और जिला प्रशासन की जांच में बड़े तालाब के एफटीएल के भीतर 573 अतिक्रमण के मामले सामने आए थे।
जानकारों का मानना है कि तालाब के प्राकृतिक तंत्र को बीते सालों में काफी नुकसान पहुंचा है।
इसके आसपास स्थित खेतों में रासायनिक घातक कीटनाशकों और उर्वरकों के बेतहाशा उपयोग और जलग्रहण क्षेत्र में धड़ल्ले से अतिक्रमण के साथ हो रहे निर्माण कार्यों ने झील की सेहत बिगाड़ कर रख दी है। इससे आने वाले 1 से 2 दशकों में तालाब का अस्तित्व ही खत्म हो सकता है।
वहीं एरीगेशन विभाग से रिटायर्ड हुई उमेश चंद्र श्रीवास्तव के अनुसार पिछले 20 सालों में इस बड़े ताल की उस तरह से देखभाल नहीं कि गई है, जैसी होनी चाहिए थी।
तालाब का जलग्रहण क्षेत्र ही घटकर आधा रह गया है। ऐसे में यदि यही स्थितियां रही तो अब अगले 20-25 वर्षों में यह पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
यह तालाब इतना बड़ा है कि प्रदेश के दो जिलों में इसका फैलाव है। भोपाल और उसके पड़ोसी जिले सीहोर में इसके किनारे पर कई एकड़ के खेत हैं, जिनका सिंचाई का पूरा दारोमदार इसी बड़ी झील (अपर लेक) पर ही है।
इससे एक बड़े क्षेत्र में जलस्तर बनाए रखने में मदद मिलती है। सीहोर जिले में इसका जल ग्रहण क्षेत्र और भोपाल जिले में खासकर एफटीएल (फुल टैंक लेवल) है।
जानकारों का मानना है कि मास्टर प्लान की अनुशंसाओं को यदि जल्द ही अमल में नहीं लाया गया या और भी देर की गई तो करीब 2036 से 2040 तक यह तालाब उजड़ जाएगा।
ये किया जा सकता है बचाने के लिए…
जानकारों की मानें तो इस तालाब को बचाने के लिए अभी भी काफी कुछ किया जा सकता है, वरना हम इसे खो देंगे।
इसके तहत तालाब के फुल टैंक लेवल और कैचमेंट से रासायनिक खेती खत्म की जाए। फुल टैंक लेवल से 300 मीटर तक सभी तरह के निर्माण रोके जाएं।
कैचमेंट और फुल टैंक लेवल पर 50 मीटर के दायरे में ग्रीन बेल्ट बने। आसपास के भौंरी, बकानिया, मीरपुर और फंदा आदि क्षेत्रों में हाउसिंग, कमर्शियल और अन्य प्रोजेक्ट्स पर प्रतिबंध लगाया जाए।
कैचमेंट के 361 वर्ग किमी क्षेत्र में फार्म हाउस की अनुमति भी शर्तों के साथ ही दी जाए। वीआईपी रोड पर खानूगांव से बैरागढ़ तक बॉटेनिकल गार्डन, अर्बन पार्क विकसित करें।
वन विहार वाले क्षेत्र में गाड़ियां प्रतिबन्धित कर यहां इको टूरिज्म को बढ़ावा दें। स्मार्ट सिटी फंड की तरह अपर लेक फंड बनाइए।
इनके अलावा कैचमेंट में पानी का प्राकृतिक बहाव सिमट रहा है, इसे बढ़ाने का जतन होना चाहिए। अतिक्रमण पर तत्काल सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए।
गौरतलब है कि एक हजार साल पहले परमार वंश के राजा भोज ने इसे बनवाया था। तब से अब तक यह हर साल अथाह जलराशि समेटे इसी तरह लोगों को लुभाता रहा है, लेकिन अब नए दौर के चलन के साथ इसे गंदा किया जा रहा है, जिससे अब इसके वजूद पर ही सवाल खड़े हो गए हैं।
: मानव निर्मित 1000 साल पुराना तालाब है।
: शहर के एक बड़े हिस्से का मुख्य पेयजल स्रोत भी यही है।
: बड़े तालाब को वेटलैंड का दर्जा 1971 में मिला।
: यहां हर साल 210 प्रजातियों के प्रवासी पक्षी आते हैं।
: तालाब में 700 प्रकार की जलीय वनस्पति (फ्लोरा) पाई जाती हैं।