बुलडोज़र मंत्री के रूप में मिली पहचान
मध्य प्रदेश में 1990 से 92 तक सुंदरलाल पटवा की सरकार थी। ये समय बाबूलाल गौर को एक नया नाम दे गया, वो नाम था बुलडोज़र मंत्री। बाबूलाल गौर ने जब से राजनीति में कदम रखा वो अपनी निडरता और बेबाकी से ही जाने गए। पुराने भोपाल की सड़कों पर बहुत ज्यादा अतिक्रमण था, जो विकास की राह में रोड़ा बन रहा था। बाबूलाल गौर को जब नगर एवं प्रशासन मंत्री का पद मिला तो उन्होंने नगर को अतिक्रमण मुक्त करने का बीड़ा उठाया और सख्ती के साथ कार्रवाई भी की। इस दौर के कई किस्से आज भी शहर में याद किये जाते हैं। जैसे एक बार गौतम नगर में अतिक्रमणकारियों को हटाने के लिए गौर ने सिर्फ बुलडोज़र खड़ा करके इंजन चालू करा दिया था। इस दौरान बुल्डोज़र के डर से अतिक्रमणकारी अपने अतिक्रमण के साथ खुद ब खुद गायब हो गए थे।
इसके अलावा, वीआईपी रोड बनने से पहले उस स्थान पर तालाब के किनारे झुग्गियां थीं, जो रोड निर्माण में बाधा बन रहीं थी। इसे लेकर भी लंबे समय विवाद चलता रहा। इस विवाद का निपटारा करने के लिए बाबूलाल गौर एक बार सुबह से ही बुलडोज़र लेकर खुद अतिक्रमण स्थल पर पहुंच गए और सामने खड़े होकर बुल्डोज़र चलवा दिया था। इस घटना ने बाबूलाल गौर को शहर ही नहीं दिल्ली तक बुलडोज़र मंत्री के रूप में पहचान मिली थी। नगर प्रशासन के कार्यकाल के दौरान जहां भी बाबूलाल गौर अपने बुलडोज़र के साथ पहुंचे, वहां अतिक्रमण का नामों निशान नहीं बचा। गौर ने ही अपनी ओर से दिये एक साक्षात्कार में बताया था कि, बुलडोज़र रोकने के लिए कई बार उनके पास नोटों से भरे सूटकेस भी आए, लेकिन फिर भी कभी बुलडोज़र नहीं रुका।
जब मिली मुख्मंत्री की कमान
बाबूलाल गौर 23 अगस्त 2004 से 29 नवंबर 2005 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। उनसे पहले उमा भारती एमपी की सीएम थी। सीएम रहते हुए उमा के खिलाफ एक पुराना वारंट जारी हुआ था, जिसके कारण उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ा। लेकिन, उमा ने अपना पद बाबूलाल गौर को दिये जाने की शर्त पर छोड़ा था। साल 2005 से लेकर 2018 तक सूबे की कमान शिवराज सिंह चौहान के हाथ में रही। इसके अलावा, बाबूलाल गौर ने गोविंदपुरा विधानसभा सीट लगातार 10 बार विधायक रहकर एक रिकॉर्ड कायम रहा। 2018 के चुनाव में पार्टी ने उनकी जगह उनकी बहू कृष्णा गौर को टिकट दिया था। कृष्णा गौर फिलहाल, इसी सीट से विधायक हैं।