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अजब गजब : MP में बन रही हैं इम्यूनिटी बूस्टर साड़ियां, प्राचीन हर्बल मसालों से होती हैं ट्रीट

कोरोना से बचाएंगे ‘आयुर्वस्त्र’!

भोपालAug 16, 2020 / 06:43 pm

Faiz

अजब गजब : MP में बन रही हैं इम्यूनिटी बूस्टर साड़ियां, प्राचीन हर्बल मसालों से होती हैं ट्रीट

भोपाल/ दुनियाभर में कोरोना वायरस अपना तांडव मचा रहा है। विश्व का हर छोटा-बड़ा देश इससे निजात पाने के लिए वैक्सीव की खोज में जुटा हुआ है। वहीं, भारत समेत विश्व के सभी देशों में सामान्य प्रीकॉशन्स देकर मरीजों का उपचार किया जा रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि, क्या कोई वस्त्र कोरोना के खिलाफ अस्त्र बन सकते हैं? क्या साड़ी कोरोना वायरस से बचाव के लिए कवच मानी जा सकती है? सुनने में भले ही ये बात अजीब सी लग रही है, लेकिन मध्य प्रदेश में इन दिनों ऐसी साड़ियों का निर्माण कया जा रहा है, जो प्राचीन काल से मसालों से ट्रीट करके तैयार की जाती हैं। इन खास साड़ियों को इम्यूनिटी बूस्टर भी कहा जाता है। आइये जानते हैं इस खास साड़ी की विशेषताएं…।

 

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स्किन इम्यूनिटी होगी मज़बूत

अब जबकि, कोरोना का कोई पर्याप्त उपचार नहीं मिल सका है, तब विशेषज्ञ हर इंसान को अपनी इम्यूनिटी मेंटेन रखने की सलाह दे रहे हैं। ऐसे में लोग आयुर्वेदिक दवाओं और काढ़े से अपनी इम्यूनिटी बनाए रखने में जुटे हैं। इसी तर्ज पर मध्य प्रदेश में इम्यूनिटी बढ़ाने वाली साड़ी भी बाजार में उपलब्ध है। दरअसल, मध्यप्रदेश हथकरघा एवं हस्तशिल्प निगम ने नया प्रयोग करते हुए, साड़ियों को सैंकड़ों साल पुराने प्राचीन हर्बल मसालों से ट्रीट किया है। निगम के दावे के मुताबिक, इस इम्यूनिटी बूस्टर साड़ी से लोगों की स्किन इम्यूनिटी बनी रहेगी।

 

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कोरना से ढाल है ‘आयुर्वस्त्र’

इम्यूनिटी बूस्टर साड़ी बनाने की जिम्मेदारी भोपाल के एक टेक्सटाइल एक्सपर्ट को सौंपी गई है। इम्यूनिटी बूस्ट करने वाली इन साड़ियों का एक विशेष नाम भी है। इन्हें ‘आयुर्वस्त्र’ कहा गया है। इन खास साड़ियों को बनाने खास हुनर और तय समय की जरूरत होती है। यहां साड़ियां कई पड़ाव और बारीकियों से गुजारी जाती है, तब कहीं जाकर ये इस्तेमाल के लिये तैयार होती हैं।

 

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इस तरह 5 से 6 दिन में तैयार होती है एक साड़ी

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इसे बनाने के लिए सबसे पहले लौंग, बड़ी इलायची, छोटी इलायची, चक्रफूल, जावित्री, दालचीनी, काली मिर्च, शाही जीरा, तेज पत्ता के मसाले का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद औषधीय मसालों को लोहे के इमाम दस्ते से बारीकी से कूटा जाता है। 48 घंटे से ज्यादा समय तक इन मसाले की पोटली को पानी में रखकर एक भट्टी पर औषधी युक्त पानी की पोटली रखकर इसकी भाप से वस्त्र बनाने वाले कपड़े को घंटों तक ट्रीट किया जाता है। इसके बाद इम्यूनिटी बूस्टर वस्त्र से साड़ियां और मास्क तैयार होते हैं। बता दें कि, एक साड़ी बनने में करीब 5 से 6 दिन का समय लगता है।

 

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4-5 धुलाई तक बना रहता है इम्यूनिटी पावर का असर

इम्यूनिटी बढ़ाने का दावा करने वाली इस साड़ी को तैयार करने वाले टेक्सटाइल एक्सपर्ट विनोद मालेवर के मुताबिक, संक्रमण से बचे रहने का ये एक प्राचीन उपाय है। कोरोना के चलते इसपर करीब 2 महीने ट्रायल किया गया। इसके बाद सटीक हल निकला और इन मसालों का मिश्रण तैयार किया गया। बता दें कि, इन वस्त्रों की इम्यूनिटी पावर का असर कपड़ों की 4-5 धुलाई तक बना रहता है। ऐसे में ग्राहक को सलाह दी जाती है कि, वो इनकी धुलाई के लिए कम से कम कैमिकल युक्त पावडर का इस्तेमाल करें।

 

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प्रदेश सरकार ने दिया बाज़ार

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टेक्सटाइल एक्सपर्ट विनोद मालेवर का दावा है कि, इन वस्त्रों को धारण करने से स्किन की इम्यूनिटी बढ़ती है। साड़ी और मास्क वाले इम्यूनिटी बूस्टर आयुर्वस्त्र आम लोगों तक कैसे पहुंचे, इसके लिए प्रदेश सरकार के हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास निगम ने बकायदा सरकारी एम्पोरियम से इन साड़ियों को बेचने की व्यवस्था की है।

 

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प्राचीन परंपरा से आज की जनरेशन को जोड़ना उद्देश्य

एमपी हथकरघा एवं हस्तशिल्प निगम के कमिश्नर राजीव शर्मा ने एक हिन्दी वेबसाइट से बातचीत में कहा कि, ‘अलग-अलग प्रिंट की इन साड़ियों की कीमत करीब 3 हजार रुपये से शुरु होती है। उन्होंने कहा कि, इस प्रयोग के जरिये देश के ऋषि मुनियों के द्वारा स्वास्थ्य और इम्यूनिटी बढ़ाने वाले वस्त्रों की प्राचीन विद्या और परंपरा को जीवित करने का मौका मिला है, वो भी इस दौर में जब बीमारी की वजह से लोगों का मनोबल कम हो रहा है। उन्होंने बताया कि, फिलहाल इन साड़ियों का विक्रय भोपाल और इंदौर में किया जा रहा है, लेकिन आगामी दिनों में इसे देश के हर शहर तक पहुंचाने का लक्ष्य है।

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