भोपाल

पैर गंवाने वालों के लिए एम्स में बने नकली पैर, दोबारा चलने में हुए सक्षम

– कृत्रिम अंगों का निर्माण करने वाला मध्य भारत का पहला सरकारी अस्पताल बना एम्स
– आधा दर्जन मरीजों के लिए बनाए गए आर्टिफिशियल अंग, तीन को मिले, तीन अभी वेटिंग में

भोपालJul 05, 2024 / 10:20 pm

Shashank Awasthi

मध्यप्रदेश के भोपाल जिले में रहने वाला 23 साल का युवक एक रोज बाइक से मार्केट के लिए निकला। इसी दौरान वो सड़क हादसे का शिकार हो गया और इलाज के दौरान उसका एक पैर काटना पड़ा। करीब 6 माह से वो बेड पर ही था। सहारे से चलने को मजबूर था। लेकिन अब उसकी इस निराशा को दूर करने का काम एम्स के फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन (पीएमआर) विभाग की टीम ने किया है। उनके लिए अस्पताल में ही नकली पैर बनाया गया। जिसकी मदद से वो अब बिना सहारे के चलने में सक्षम है। उन्हीं की तरह अलग अलग वजह से 6 लोगों ने अपने एक या दोनों पैर खो दिए। जिनका एम्स में इलाज चल रहा है। प्रोस्थेटिस्ट और ऑर्थोटिस्ट स्मिता पाठक के अनुसार मध्यभारत में अकेला एम्स ही मरीजों के इलाज के साथ उनके लिए कृत्रिम अंग भी तैयार करा रहा है।

बीमारी ने छीने दोनों पैर

पहले बैच में तीन लोगों को नकली पैर प्रबंधन द्वारा मुफ्त में मुहैया कराए गए हैं। जिसमें एक 20 साल की युवती है। गेंगरीन बीमारी के कारण उसे घुटनों के नीचे से अपने दोनों पैर खोने पड़े। जिससे वे शारीरिक के साथ मानसिक रूप से भी परेशान थी। बुधवार को जब वो करीब 6 माह बाद दोबारा कृत्रिम पैरों की मदद से खड़ी हुई, तो उसके चेहरे पर लंबे अंतराल के बाद मुस्कान देखी गई। बुधवार को एक अन्य मरीज को भी नकली पैर लगाए गए। अभी तीन अन्य मरीज वेटिंग में हैं।
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बाजार से 90 फीसदी से अधिक सस्ते

एम्स के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने बताया कि मरीजों को कृत्रिम अंग एक हजार रुपए से कम में मुहैया कराए जा रहे हैं। जबकि इनकी बाजार में कीमत 15 से 20 हजार तक होती है। वहीं आयुष्मान व बीपीएल कार्ड वाले मरीजों के लिए यह फ्री है।

85% मामलों में काटने पड़ते हैं निचले हिस्से के अंग

एम्स प्रबंधन से मिली जानकारी के अनुसार दुर्घटना, डायबिटीज, पेरिफेरल वेस्कुलर बीमारी के कारण लोग अपना अंग गंवा देते हैं। इस तरह के मामलों में 85 फीसदी ऐसे मामले होते हैं। जिसमें शरीर के निचले हिस्से को काट कर निकालना पड़ता है। डॉ. सिंह ने कहा कि पीएमआर विभाग को मध्य भारत में दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रूप में विकसित करने की योजना है। जिससे यहां ऐसे मरीजों को दुनिया में मौजूद हर इलाज मिल सके। यह प्रयास लोगों को सक्षम और सशक्त बनाना के लिए किया जा रहा है।
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एक पैर बनाने में लगते हैं 3 दिन

प्रोस्थेटिस्ट और ऑर्थोटिस्ट स्मिता पाठक ने बताया कि एक कृत्रिम पैर को बनाने में औसतन तीन दिन का समय लगता है। इसके बाद केस के अनुसार यह समय बढ़ भी सकता है। एम्स में जिन मरीजों की रीड़ की हड्डी की सर्जरी होती है, उनके लिए स्पाइनल ब्रेसेस भी तैयार कर रहे हैं। इसके अलावा अन्य कृत्रिम अंग बनाए जा रहे हैं।

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