भोपाल

बागीजों के क्षेत्र में सीमेंट और कांक्रीट का जंगल

भोपाल। दुनियाभर में पेड़ों को बचाने और इनके प्रति लोगों को जागरूक करने कई तरह के काम हो रहे हैं। प्रदेश में राजधानी एकमात्र ऐसा शहर हैं जहां आधे से ज्यादा हिस्से बाग, गार्डन, पार्क के नाम पर हैं। यह शुरुआत दशकों पहले हुई थी। बढ़ते शहर के बीच पेड़ भले घट गए लेकिन इलाके से बाग अब तक जुड़ा हुआ है।

भोपालJun 05, 2023 / 11:31 pm

शकील खान

बाग दिलकुशा, बाग उमराव दूल्हा, बाग फरहत अफजा, अशोका गार्डन, ऐशबाग सहित ऐसे कई हिस्से हैं जहां पेड़ों की संख्या बहुत कम है। नवाबी दौर में यह हिस्से बागीजे हुआ करते थे। अब यहां कांक्रीट का जंगल है। लेकिन इलाके अब भी बागीजों के नाम से जाने जाते हैं। इतिहासकार खनी खान ने बताया कि नवाबी दौर में शहर का बड़ा हिस्सा बाग हुआ करता था। सभी अलग-अलग प्रजाति के लिए जाने जाते थे। पर्यावरण की बेहतरी के लिए उस दौर से ही काम शुरू किया गया।
तीन तालाब और हजारों पेड़ों से सजा था शहर
पानी को बचाने की दिशा में इसे तैयार किया गया। मोतिया तालाब, सिद़दीक हसन खान, मुंशीहुसैन खां यह तीन तालाब की एक श्रंखला है। इसके बाद बाग और बागीजे हुआ करते थे।
धार्मिक स्थलों को दरख्तो से जोड़ा, आज भी कायम
कई धार्मिक स्थल हैं जो पेड़ों से जुड़े हैं। शहर में एक दर्जन से ज्यादा म स्जिदों के नाम पेड़ों के नाम पर हैं। इसी के नाम से इनकी पहचान है। कई मंदिरो को भी पेड़ों के नाम से ही पहचाना जाता है। जहांगीराबाद क्षेत्र में सौ साल से भी ज्यादा पुरानी नीम वाली मस्जिद है। इसके गेट पर नीम का पेड़ है जिसके चलते इसे उसी नाम से पुकारा जाता है। इतना ही यह पूरी सड़क ही पेड़ के नाम से जानी जाती है। बाग दिलकुशा में इमली वाली मस्जिद है।

बड़ की जड़ से निकले थे महादेव, नाम पड़ा बड़वाले महादेव

बड़वाले महादेव बरगद के पेड के नाम से बड़वाले महादेव शहर का प्रसिद्ध मंदिर है। बताया गया कि बरगद के पेड़ की जड़ से शिवलिंग निकला था। इसी पेड़ के नाम से यह पहचाना जाता है। इसके अलावा पिपलेश्वर मंदिर भी पीपल के पेड़ से पहचाना जाता है।

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