वीणा के साथ घुंघरुओं की जुगलबंदी
वी अनुराधा सिंह ने नृत्य के जरिए आम्रपाली की कथा पेश की। आम्रपाली के विरह को बंदिश सावन बीतो जाए पिहरवा, मन मोरा घबराए… के माध्यम से पेश किया। उन्होंने दिखाया कि आम्रपाली नृत्य प्रतियोगिता में शुद्ध कथक की मल्हार राग की बंदिश पर अन्य नर्तकियों के साथ कथक करती है। जहां उसे वैशाली की नगरवधु चुना जाता है। वह विहार को जाती है जहां भिक्षु से उसका संवाद होता है। जंगल में शेर आक्रमण कर देता है तभी मगध के राजकुमार बिंबसार का प्रवेश होता है और वे आम्रपाली की जान बचाते है। शुद्ध कथक की उठान, आमद, परन, चरदार कठिन परनों में 36, 45, 80 चरों के बोलों पर पेश किया। पहली बार थियेटर और कथक दोनों को चलचित्र की भांति सजीव प्रस्तुति किया।
न माने न माने हठीला देवर…
वहीं, मणिमाला सिंह ने प्रस्तुति की शुरुआत आई आई बसंत बहार… से की। इसमें रामा आए हो आई बसंत बहारा… गीत सुनाकर बसंत का स्वागत किया। इसके बाद होली गीत न माने-न माने हठीला देवर… और अंगना मोरे अबीर… की प्रस्तुति दी। दादार मोर महुआ उजरगा… सुनाया। इसके बाद भगत हाथ लय लाल ध्वजा… सुना देवी स्तुति की।