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भोपाल

रंगमंच कला का कथक से मिश्रण कर दिखाई ‘आम्रपाली’ की कहानी

भारत भवन में ३८वां वर्षगांठ समारोह

भोपालFeb 19, 2020 / 12:39 pm

hitesh sharma

रंगमंच कला का कथक से मिश्रण कर दिखाई 'आम्रपाली' की कहानी

रंगमंच कला का कथक से मिश्रण कर दिखाई ‘आम्रपाली’ की कहानी

भोपाल। भारत भवन में चल रहे 38वें वर्षगांठ समारोह में मंगलवार को गायन व नृत्य की तीन सभाएं हुईं। इस मौके पर मणिमाला सिंह ने ऋतुगीतों की प्रस्तुति दी। वी. अनुराधा सिंह ने नृत्य नाटिका आम्रपाली की प्रस्तुति दी तो कुमकुम धर ने कथक समूह नृत्य पेश किया। कुमकुम ने प्रस्तुति की शुरुआत नंद कुमार अष्टकम से की। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हुए बताया कि कृष्ण, संजीवनी शक्ति की तरह हम सभी के जीवन को बनाते हैं। श्री कृष्ण के बिना ललित कला के सभी अंग अधूरे हैं। वो साहित्य, संगीत और शिल्प, चित्र, नृत्य, नाट्यश्री के मुकुट मणि है। उनकी भक्ति तन-मन को प्रेम से सराबोर कर देती है।
उन्होंने शुद्ध नृत्य के माध्यम से आमद, टुकड़े, परन, गत आदि का प्रदर्शन किया। इस प्रस्तुति में उन्होंने भाव प्रदर्शन के स्थान पर हस्तक, मुद्राएं और अंग संचालन को पेश किया। अगली प्रस्तुति अहिल्या पर थी। जिसमें अहिल्या के श्राप की कथा को पेश किया। उन्होंने बताया कि श्रीराम ने देवी अहिल्या को एक स्त्री के भाव से ही देखा। इंद्र ने उनका भोग किया और पति ने उन्हें खुद से कमतर जाना लेकिन श्रीराम ने उन्हें स्थान दिया। उन्होंने तिरवट को कथक में पिरोया। उन्होंने बताया कि ये शास्त्रीय गायन की महत्वपूर्ण शैली है। इसमें सरगम, तराने और पखावज के बोल को स्थान दिया। तराना और चतुरंग से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया।

रंगमंच कला का कथक से मिश्रण कर दिखाई 'आम्रपाली' की कहानी

वीणा के साथ घुंघरुओं की जुगलबंदी
वी अनुराधा सिंह ने नृत्य के जरिए आम्रपाली की कथा पेश की। आम्रपाली के विरह को बंदिश सावन बीतो जाए पिहरवा, मन मोरा घबराए… के माध्यम से पेश किया। उन्होंने दिखाया कि आम्रपाली नृत्य प्रतियोगिता में शुद्ध कथक की मल्हार राग की बंदिश पर अन्य नर्तकियों के साथ कथक करती है। जहां उसे वैशाली की नगरवधु चुना जाता है। वह विहार को जाती है जहां भिक्षु से उसका संवाद होता है। जंगल में शेर आक्रमण कर देता है तभी मगध के राजकुमार बिंबसार का प्रवेश होता है और वे आम्रपाली की जान बचाते है। शुद्ध कथक की उठान, आमद, परन, चरदार कठिन परनों में 36, 45, 80 चरों के बोलों पर पेश किया। पहली बार थियेटर और कथक दोनों को चलचित्र की भांति सजीव प्रस्तुति किया।
न माने न माने हठीला देवर…
वहीं, मणिमाला सिंह ने प्रस्तुति की शुरुआत आई आई बसंत बहार… से की। इसमें रामा आए हो आई बसंत बहारा… गीत सुनाकर बसंत का स्वागत किया। इसके बाद होली गीत न माने-न माने हठीला देवर… और अंगना मोरे अबीर… की प्रस्तुति दी। दादार मोर महुआ उजरगा… सुनाया। इसके बाद भगत हाथ लय लाल ध्वजा… सुना देवी स्तुति की।

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