पेन मैनेजमेंट एक्सपर्ट डॉ. अनुज जैन ने बताया कि आमतौर पर साइटिका के इलाज के लिए बड़ा सा चीरा लगाते हैं। इसमें मरीज को बेहोश करना पड़ता है और रिकवरी भी बहुत देर से होती है। वहीं एंडोस्कोपिक डिस्केक्टमी में रोबोटिक आर्म की सहायता से मरीज को उस हिस्से में इंजेक्शन दिया जाता है जहां से इस बीमारी की शुरुआत हुई है। इस दौरान मरीज को बेहोश करने की जरूरत भी नहीं पड़ी बल्कि ऑपरेशन के दौरान उससे बात करते रहे ताकि ऑपरेशन का पता भी ना चले। उन्होंने बताया कि इस तरह के उपचार की सुविधा मध्य भारत में फिलहाल कहीं नहीं है।
एंडोस्कोपिक डिस्केक्टमी को स्टिचलेस स्पाइन सर्जरी भी कहा जाता है। इसमें एक रोबोटिक आर्म की मदद से मरीज की कमर में निडिल से छेद कर दूरबीन की मदद से खराब ***** की पहचान कर उसका उपचार किया जाता है। इस पद्धति की सबसे खास बात यह है कि मरीज एक दिन बाद ही पैरों पर चलकर घर चला जाता है।
सायाटिका नर्व रीढ़ से निकलने वाली स्पाइनल नर्व से मिलकर बनती है। यह पैर की मांसपेशियों को कंट्रोल करती है और पैरों में दर्द, छूना, तापमान, कंपन संबंधी सूचना स्पाइनल कॉर्ड तक पहुंचाती है। इससे जुडऩे वाली स्पाइनल नर्व पर किसी प्रकार का दबाव आता है तो इससे कमर में दर्द होता है जो कि पैर में करंट की तरह महसूस होता है इसे आम बोलचाल में साइटिका कहते हैं। इसमे रोगी को पैर से लेकर कमर तक तेज दर्द होता है।
– एक पैर में सुन्नपन रहना – दर्द के कुछ दिन बाद पंजे में कमजोरी आना
– एक पैर में पंजे तक दर्द जाना – पेशाब करने में तकलीफ होना