जहां तक प्रशासनिक अनुभव की बात करें तो सबसे बड़ी चुनौती यहां शिक्षा और स्वास्थ्य की थी। प्रयास रहा कि लोगों को बेहतर से बेहतर शिक्षा दी जाए। अधिक से अधिक स्कूल खोलने के प्रयास हुए। वहीं अस्पताल भी खोले गए। जिससे लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें। इसके सुखद परिणाम सामने आए। इसी प्रकार विकास के अन्य कार्य होना थे। एक-एक कर सभी कार्य शुरू हुए। सरकारी येाजनाओं को दूर दराज इलाके तक पहुंचाना चुनौती पूर्ण था, लेकिन असंभव कभी नहीं रहा।
वहां पहली बार पहुंचा था कोई अधिकारी –
निर्मला बुच ने बताया कि वे एक बार बस्तर दौरे पर थी। मुख्य मार्ग के काफी अंदर एक स्थान पर रोशनी दिखी। रोशनी देखकर आश्चर्य भी हुआ। तय किया कि वहां जाएंगे। वहां पहुंचे तो वह एक सरकारी फार्म था। वहां की देखभाल कर रहे कर्मचारी ने मुझे आश्चर्य से देखा और खुश भी हुआ। उसका कहना था कि मुझे खुशी हुई कि मेरे काम को देखने कोई अफसर यहां पहली बार आया। बुच ने बताया कि फार्म में बेहतर काम हो रहा था, लेकिन वहां कोई अफसर देखने ही नहीं पहुंचा था।
निर्मला बुच ने बताया कि वे एक बार बस्तर दौरे पर थी। मुख्य मार्ग के काफी अंदर एक स्थान पर रोशनी दिखी। रोशनी देखकर आश्चर्य भी हुआ। तय किया कि वहां जाएंगे। वहां पहुंचे तो वह एक सरकारी फार्म था। वहां की देखभाल कर रहे कर्मचारी ने मुझे आश्चर्य से देखा और खुश भी हुआ। उसका कहना था कि मुझे खुशी हुई कि मेरे काम को देखने कोई अफसर यहां पहली बार आया। बुच ने बताया कि फार्म में बेहतर काम हो रहा था, लेकिन वहां कोई अफसर देखने ही नहीं पहुंचा था।
अब बदली हैं परिस्थितियां –
पूर्व मुख्य सचिव बुच ने कहा कि पहले और अब की परिस्थितियों में बदलाव आया है। अब लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिए जाने पर राजनीतिज्ञ यह कहते हैं कि हम तुम्हे दे रहे हैं। कुछ इसी प्रकार की भाषा अफसरों की भी होती है, लेकिन उन्हें यह नहीं पता जनता का पैसा है, उसी पैसे से उन्हें लाभ दिया जा रहा है। लेकिन पहले राजनीतिज्ञ और अफसरों की भाषा अलग होती थी, वे सेवा भाव से काम करते थे।
पूर्व मुख्य सचिव बुच ने कहा कि पहले और अब की परिस्थितियों में बदलाव आया है। अब लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिए जाने पर राजनीतिज्ञ यह कहते हैं कि हम तुम्हे दे रहे हैं। कुछ इसी प्रकार की भाषा अफसरों की भी होती है, लेकिन उन्हें यह नहीं पता जनता का पैसा है, उसी पैसे से उन्हें लाभ दिया जा रहा है। लेकिन पहले राजनीतिज्ञ और अफसरों की भाषा अलग होती थी, वे सेवा भाव से काम करते थे।