माना जा रहा है कि इसका सबसे बड़ा कारण निजी स्कूलों में अंग्रेजी पढ़ाने की चाहत है, जिसके चलते अभिभावक सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने से कतरा रहे हैं। साथ ही सरकारी स्कूल में पढ़ाई के लिए अनुकूल वातावरण नहीं मिल रहा है। प्रदेश के कई स्कूलों की स्थिति यह है कि कुछ स्कूलों के भवन नहीं हैं तो कुछ में पढ़ाने के लिए शिक्षक।
सबसे ज्यादा प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों की हालत खराब है। प्राथमिक स्तर पर सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव नजर आता है, वहीं अभिभावक भी प्राथमिक शालाओं में बच्चों को अनुकूल वातावरण नहीं मिलने के कारण निजी स्कूलों का रुख कर रहे हैं। बीते 5 साल के आंकड़े बताते हैं कि हर साल पहली से आठवीं तक के लगभग 3 से 4 लाख बच्चे सरकारी स्कूलों को छोड़कर प्राइवेट स्कूलों की ओर पलायन कर रहे हैं। स्थिति से स्पष्ट है कि कहीं न कहीं सरकारी विद्यालयों में बच्चों को वह सुविधाओं और स्तरीय पढ़ाई नहीं मिल पा ररही है, जो उन्हें निजी स्कूलों में मिल रहा है।
अंग्रेजी स्कूलों को खोला जाना भी बेअसर साबित
मध्यप्रदेश सरकार की ओर से साल 2014 में बच्चों की पढ़ाई का स्तर सुधारने और शिक्षा में अंग्रेजी को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक ब्लॉक में अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोले जाने के निर्देश दिए गए थे। सरकार के आदेश के बाद कई ब्लॉक्स में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर अंग्रेजी माध्यम में शासकीय विद्यालय खोले गए, लेकिन इनका क्रियान्वयन ठीक ढंग से नहीं होने के कारण बच्चों ने इन विद्यालयों में रुचि नहीं दिखाई। वहीं धीरे धीरे बच्चों की कमी के चलते ये विद्यालय खत्म होने की कगार पर पहुंच गए। वहीं सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी के शिक्षकों की कमी के कारण भी सरकारी की यह परियोजना ठप हो गई।
30 हजार से अधिक शिक्षकों का पद खाली
आंकड़े बताते हैं कि मध्यप्रदेश में लगभग 1 लाख 42 हजार 512 प्राथमिक व माध्यमिक सरकारी विद्यालय हैं। जिनमें बड़ी संख्या में अध्यापकों की कमी है। विभिन्न विद्यालयों में लगभग 30 हज़ार शिक्षकों के पद खाली हैं। स्कूलों में कुल 2 लाख 86 हजार शिक्षक हैं भी, लेकिन वे शिक्षण कार्य को पूरी तरह ढंग से नहीं कर पा रहे हैं। अन्य विभागों में सेवा देने के कारण अक्सर सरकारी स्कूलों को अध्यापक पढ़ाने ही नहीं आते हैं।