संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी और जानकारियों एवं इसके महत्व को लेकर हमने बात की भोपाल के ज्योतिषाचार्य पं. भगवती प्रसाद उपाध्याय से। जिन्होंने बताया कि इस दिन भगवान गणेश का पूजन करने से भक्तों को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। माघ मास के कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी, माघी चतुर्थी या तिल चौथ कहा जाता है। माना जाता है कि हिन्दू पंचांग के अनुसार निर्धारित बारह महीनों में ये सबसे बड़ी चतुर्थी है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना करने से सुख-सौभाग्य में श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है।
कैसे करें संकष्टी चतुर्थी का पूजन
पं. भगवती प्रसाद उपाध्याय के अनुसार किसी भी प्रकार के संकट से पार पाने के लिए संकटा चतुर्दशी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को रखने से सभी कष्ट दूर हो जाते है। संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि के बाद व्रत करने वालों को लाल रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। तत्पश्चात स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करें। इसके बाद पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुंह कर के श्रीगणेश की पूजा करने चाहिए।
– श्रीगणेश को पंचामृत से स्नान कर फल, फूल, रौली, मौली, अक्षत आदि अर्पित करें। इसके बाद धूप-दीप आदि से श्रीगणेश की आराधना करें।
– श्री गणेश को तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्डू तथा मोदक का भोग लगाएं।
– इसके बाद ‘ॐ सिद्ध बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है, का उच्चारण करें और श्रीगणेश से प्रार्थना करते हुए नैवेद्य के रूप में मोदक व ऋतु फल आदि अर्पित करें।
– इसके बाद दिन भर शुद्ध मन से व्रत का पालन करना चाहिए।
– शाम के समय संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढ़े अथवा सुनें और सुनाएं और फिर गणेशजी की आरती करें।
– विधि-विधान से गणेश जी की पूजा करने के बाद गणेश मंत्र ‘ॐ गणेशाय नम:’ अथवा ‘ॐ गं गणपतये नम: की एक माला यानी 108 बार जाप जरूर करना चाहिए।
– वैसे तो व्रत करने और कथा सुनने व सुनाने से श्रीगणेश प्रसन्न होते हैं, लेकिन यदि आप इस दिन विशेष फल की प्राप्ति करना चाहते हैं तो अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को दान करें। आप चाहें तो तिल-गुड़ के लड्डू, कंबल या कपडे़ आदि का दान कर सकते हैं।