script#महेश नवमी 2018: भगवान शिव को ऐसे करें प्रसन्न, शिवलिंग का पूजन देता है व्यापार में उन्नति! | 2018 Mahesh Navami Date and Time for Bhopal | Patrika News
भोपाल

#महेश नवमी 2018: भगवान शिव को ऐसे करें प्रसन्न, शिवलिंग का पूजन देता है व्यापार में उन्नति!

महेश नवमी पर भगवान शिव को ऐसे करें प्रसन्न, शिवलिंग का पूजन देता है व्यापार में उन्नति!…

भोपालJun 20, 2018 / 10:58 am

दीपेश तिवारी

#Mahesh Navami

#महेश नवमी 2018: भगवान शिव को ऐसे करें प्रसन्न, शिवलिंग का पूजन देता है व्यापार में उन्नति!

भोपाल। महेश नवमी माहेश्वरी समाज के लोगों का प्रमुख त्यौहार है। इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। यह त्यौहार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता हैं। मान्यता के अनुसार माहेश्वरी समाज की उत्पति भगवान शिव के वरदान से इसी दिन हुई थी। महेश नवमी के दिन देवाधिदेव शिव व जगत जननी मां पार्वती की आराधना की जाती हैं। इस वर्ष महेश नवमी 21 जून 2018 को मनाई जाएगी।
इस संबंध में दिनेश माहेश्वरी का कहना है कि महेश नवमी ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। यह नवमी माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति का दिन है। माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति भगवान शिव के वरदान स्वरूप मानी गई है। महेश नवमी ‘माहेश्वरी धर्म’ में विश्वास करने वाले लोगों का प्रमुख त्योहार है।
इस पावन पर्व को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल सहित विभिन्न राज्यों में हर्षउल्लास व धूमधाम से मनाना जाता है, कहा जाता है कि यह प्रत्येक माहेश्वरी का कर्त्तव्य है और समाज उत्थान व एकता के लिए अत्यंत आवश्यक भी है।
‘महेश’ स्वरूप में आराध्य ‘शिव’ पृथ्वी से भी ऊपर कोमल कमल पुष्प पर बेलपत्ती, त्रिपुंड्र, त्रिशूल, डमरू के साथ ***** रूप में शोभायमान होते हैं। भगवान शिव के इस बोध चिह्न के प्रत्येक प्रतीक का अपना महत्व होता है।
भोपाल में खास…
श्री माहेश्वरी समाज की ओर से आज यानि बुधवार रात को शिववाटिका में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा, जिसमे सिरसा हरियाणा से महादेव आर्ट ग्रुप के रामूजी द्वारा प्रस्तुतियां दी जाएगी। साथ ही समाज के मेधावी छात्र का सम्मान किया जाएगा। कार्यक्रम में बीएसएफ डीआईजी रवि गांधी, अनिल पुंगलिया, पाली तहसीलदार रमेश बहेड़िया शिरकत करेंगे। महोत्सव के तहत गुरुवार सुबह नाड़ी मोहल्ला भवन से गाजे बाजे के साथ शोभायात्रा निकाली जाएगी। कार्यक्रम की तैयारियों को लेकर समाज के कई लोग जुटे हुए हैं।
शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्‍व
माना जाता है कि इस दिन भगवान महेश की शिवलिंग रूप में विशेष पूजन करने से व्यापार में उन्नति होती है। शिवलिंग पर भस्म से त्रिपुंड लगाया जाता है जो त्याग व वैराग्य का चिह्र है। इसके अलावा त्रिशूल का विशिष्ट पूजन किया जाता है।
शिव पूजन में डमरू बजाए जाते हैं। शिव का डमरू जनमानस की जागृति का प्रतीक है। महेश नवमी पर भगवान महेश की विशेषकर कमल के पुष्पों से पूजा कि जाती है।

महेश स्वरूप में आराध्य भगवान ‘शिव’ पृथ्वी से भी ऊपर कोमल कमल पुष्प पर बेलपत्ती, त्रिपुंड, त्रिशूल, डमरू के साथ शिवलिंग रूप में शोभायमान होते हैं। शिवलिंग पर भस्म से लगा त्रिपुंड त्याग व वैराग्य का चिह्न माना जाता है। इस दिन भगवान शिव (महेश) पर पृथ्वी के रूप में रोट चढ़ाया जाता है। शिव पूजन में डमरू बजाए जाते हैं, जो जनमानस की जागृति का प्रतीक है। कमल के पुष्पों से पूजा की जाती है।
ये है कथा:
माना जाता है कि माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे। एक दिन जब इनके वंशज शिकार पर थे तो इनके शिकार कार्यविधि से ऋषियों के यज्ञ में विघ्न उत्पन्न हो गया।
जिस कारण ऋषियों ने इनलोगो को श्राप दे दिया था की तुम्हारे वंश का पतन हो जायेगा।

माहेश्वरी समाज इसी श्राप के कारण ग्रसित हो गया था । किन्तु ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन भगवान शिव जी की कृपा से उन्हें श्राप से मुक्ति मिल गई तथा शिव जी ने इस समाज को अपना नाम दिया।
इसलिए इस दिन से यह समाज महेशवरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान शिव जी की आज्ञानुसार माहेश्वरी समाज ने क्षत्रिय कर्म को छोड़कर वैश्य कर्म को अपना लिया। अतः आज भी माहेश्वरी समाज वैश्य रूप में पहचाने जाते है।
कथा के अनुसार कभी एक खडगलसेन नामक राजा हुए थे। जिनकी प्रजा राजा के शासन से प्रसन्न थी। राजा व प्रजा धर्म के कार्यो में सलग्न थे, परंतु राजा के कोई सन्तान नहीं होने के कारण राजा व प्रजा दुखी रहने लगे। तब सबकी खुशी के लिए राजा ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से कामेष्टि यज्ञ करवाया।
ऋषियों मुनियों ने राजा को वीर, पराक्रमी पुत्र होने का आशीर्वाद दिया और कहा बीस वर्ष तक उसे उत्तर दिशा में जाने से रोकना। नवें माह प्रभु कृपा से पुत्र उत्पन्न हुआ।

राजा ने धूम – धाम से नामकरण संस्कार करवाया और उस पुत्र का नाम सुजान कंवर रखा। वह वीर, तेजस्वी,विद्धा व शास्त्र विद्धा में शीघ्र ही निपुण हो गया।
एक दिन एक जैन मुनि उस गावं में आये। उनके धर्मोपदेश से कुंवर सुजान बहुत पभावित हुए उन्होंने जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण कर ली , और प्रवास के माध्यम से जैन धर्म का प्रचार – प्रसार करने लगे। धीरे धीरे लोगों की जैन धर्म में आस्था बढने लगी। स्थान – स्थान पर जैन मन्दिरों का निर्माण होने लगा।
एक दिन राजकुमार उमरावो के साथ शिकार खेलने वन में गये, और अचानक राजकुमार उत्तर दिशा की और जाने लगे उमरावो के मना करने पर भी वो नहीं माने। उत्तर दिशा में सूर्य कुंड के पास ऋषि यज्ञ कर रहे थे। वेद ध्वनी से से वातावरण गुंजित हो रहा था। ये देख राजकुमार क्रोधित हुए और बोले मुझे अंधरे में रखकर उत्तर दिशा में नहीं आने दिया।
यहां सभी उमरावो को भेज कर यज्ञ में विघ्न उत्पन्न करने पर ऋषियों ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया जिससे वे सब पत्थरवत हो गये।

राजा ने यह सुनते ही प्राण त्याग दिए। उनकी रानिया सती हो गयी। राजकुमार सुजान की पत्नी चन्द्रावती सभी उमरावो की पत्नियो को लेकर ऋषियों के पास गई।| क्षमा याचना करने लगी। ऋषियों ने कहा हमारा श्राप विफल नहीं हो सकता पर भगवान भोले नाथ व मां पार्वती की आराधना करो । सभी ने सच्चे मन से प्रार्थना की और भगवान महेश व मां पार्वती ने उन्हें अखंड सौभाग्यवती, पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया | चन्द्रवती ने सारा वृतांत बताया और सब ने मिल 72 उमरावो को जीवित करने की प्रार्थना की। महेश भगवान पत्नियों की पूजा से प्रसन्न होकर सब को जीवन दान दिया |
भगवान शंकर कि आज्ञा से ही इस समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोडकर वैश्य धर्म को अपनाया। इसलिये आज भी माहेश्वरी समाज के नाम से जाना जाता हैं।

समस्त माहेश्वरी समाज इस दिन श्रद्धा व भक्ति से भगवान शिव व मां पार्वती पूजा अर्चना करते हैं। महेश नवमीं के दिन माहेश्वरी समाज के लोग यह संदेश समस्त संसार में पहुचाते हैं, हिंसा त्याग कर जगत के कल्याण के लिए कर्म करना चाहिए।
माहेश्वरी समाज के लिए उत्सव
माहेश्वरी समाज के लिए महेश नवमी पर्व का अत्यधिक महत्व है। इस उत्सव की तैयारी 2-3 दिन पूर्व से की जाती है। महेश नवमी के दिन धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
समस्त माहेश्वरी समाज इस दिन श्रद्धा तथा भक्ति की आस्था को प्रकट कर भगवान शिव जी एवम मां पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना करते है। महेश नवमी उत्स्व से यह सन्देश मानव जगत में फैलता है कि हिंसा का त्याग कर जगत कल्याण और परोपकार के लिए कर्म करना चाहिए। भगवान शिव जी ने यह सन्देश सर्वप्रथम माहेश्वरी समाज के पूर्वज को दिया था।

Hindi News / Bhopal / #महेश नवमी 2018: भगवान शिव को ऐसे करें प्रसन्न, शिवलिंग का पूजन देता है व्यापार में उन्नति!

ट्रेंडिंग वीडियो