उनका जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के समस्तीपुर में एक संगीतमय परिवार में हुआ था। शारदा ने बचपन से ही शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की और अपने करियर की शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन से की। उनकी आवाज को भारत के पारंपरिक लोक संगीत का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने छठ गीतों के साथ-साथ मैथिली, भोजपुरी और मगही में भी कई लोकप्रिय गाने गाई हैं। उन्हें अक्सर इस क्षेत्र के लिए एक सांस्कृतिक राजदूत के रूप में जाना जाता था।
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वो छठ पूजा के दौरान नियमित रूप से प्रस्तुति देती थीं। मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम के बिहार दौरे के समय भी उन्होंने मंच की शोभा बढ़ाई थी। वर्ष 1988 में, उन्होंने मॉरीशस के 20वें स्वतंत्रता दिवस पर अपने गायन की प्रस्तुति दी थी। वर्ष 2009 के बिहार विधानसभा चुनाव में शारदा सिन्हा चुनाव आयोग की ब्रांड एंबेसडर भी थीं। यह भी पढ़ें
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सास को पसंद नहीं था गाना बजाना
शारदा सिन्हा के परिवार के साथ उनके करियर में ससुराल वालों में भी अहम योगदान निभाया। वैसे तो शारदा के परिवार में 30-35 सालों तक किसी बेटी का जन्म नहीं हुआ था। उनका जन्म काफी मन्नतों के बाद हुआ। उनके हुनर की पहचान उनके पिता ने की और फिर बेटी को संगीत सिखाने का फैसला लिया। अपने पीहर से संगीत का सिलसिला शुरू हुआ और फिर ब्याह के बाद भी ये जारी रहा। उन्हें पति का सपोर्ट मिला तो ससुर ने भी खूब साथ दिया। मगर शुरुआत में सास, बहू के गाने-बजाने से नाराज रहती थीं क्योंकि इनसे पहले परिवार की कोई बहु घर से बाहर काम के लिए नहीं गई थी। लेकिन बाद में सास ने ही छठ आदि लोक रिवाजों की पूरी जानकारी सिखाईं और समझाई भी। यह भी पढ़ें
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आवाज की गहराई सादगी से दिलों को छू लेती
शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत 1970 के दशक में की थी और धीरे-धीरे वह बिहार और उत्तर भारत में लोकप्रिय होती चली गईं। उनके गाए हुए छठ गीत जैसे “हो दीनानाथ”, “केलवा के पात पर”, और “पाहन-पानि” बिहार के छठ पर्व में अनिवार्य से हो गए हैं। उन्होंने छठ पूजा के लिए कई ऐसे गीत गाई हैं जो हर साल लाखों लोग सुनते और गाते हैं। उनकी आवाज में एक गहराई और सादगी है जो सीधे लोगों के दिलों को छू लेती है। टी-सीरीज, एचएमवी और टिप्स की ओर से जारी नौ एल्बम में वे 62 छठ गीत गा चुकी हैं। यह भी पढ़ें
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बच्चों को दूध पिलाते हुए भी करती थीं रियाज
अपने एक इंटरव्यू में शारदा सिन्हा ने कहा था कि वे अपने परिवार, शौक और कॉलेजों के बच्चों को लेकर काफी सख्त थीं। न केवल बच्चों की परवरिश पर पूरा ध्यान रखती थीं बल्कि फेमस होने के बाद भी बच्चों की क्लास नियमित लेती थीं। इसके साथ ही वे अपने रियाज को लेकर काफी सख्त थीं। रोजाना ७-8 घंटे रियाज करती थीं। जब उनके बच्चे छोटे थे तो उनको तबले और हार्मोनियम के बीच सुलाया करती तो कभी-कभी तो उन्हें दूध पिलाते हुए भी रियाज करतीं थीं, मगर कभी भी रियाज करना नहीं छोड़ा। यह भी पढ़ें
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जब शिक्षक को लगा कि रेडियो पर गाना चल रहा
स्कूल के दिनों में जब शारदा अपनी सहेलियों के साथ गीत गा रही थीं, वहीं हरि उप्पल (शारदा के शिक्षक) उनका गीत सुन रहे थे। जिसके बाद उन्होंने सभी से पूछा कि यह रेडियो कौन बजा रहा है तभी सभी ने जवाब दिया कि शारदा गीत गा रही हैं। तभी शारदा को प्रधानचार्य कार्यालय में बुलाकर उस गीत को टेप रिकॉर्डर में रिकॉर्ड किया और उन्हें संगीत के लिए प्रेरित किया। शारदा ने शास्त्रीय संगीत की उच्च शिक्षा प्रतिष्ठित गुरुओं से ली थी, वह मणिपुरी नृत्य में भी पारंगत थींं। यह भी पढ़ें
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संगीत में पीएचडी, विभागाध्यक्ष से हुई रिटायर
शारदा सिन्हा ने पहले बी.एड की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से संगीत में पीएचडी करने का फैसला किया। जहां उन्हें संगीत का गहराई से अध्ययन करने, इसके सिद्धांत, इतिहास और सांस्कृतिक महत्व की खोज करने का मौका मिला। विश्वविद्यालय में शारदा ने लोक और शास्त्रीय संगीत दोनों के बारे में सीखा, जिससे उन्हें एक संगीतकार और शोधकर्ता के रूप में विकसित होने में मदद मिली। अपनी डिग्री के अलावा, शारदा ने मगध महिला कॉलेज और प्रयाग संगीत समिति से भी प्रशिक्षण लिया। इसके बाद वे समस्तीपुर महिला कॉलेज में संगीत विभाग में शिक्षिका के रूप में जुड़ी और विभागाध्यक्ष से रिटायर हुईं। यह भी पढ़ें
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कई बार ठुकरा दीं राजनीति का ऑफर
शारदा सिन्हा के योगदान को देखते हुए उन्हें साल 1991 में पद्मश्री, 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2006 में राष्ट्रीय आहिल्या देवी अवॉर्ड, 2015 में बिहार सरकार पुरस्कार का बिहार रत्न व गौरव पुरस्कार और फिर 2018 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। वे खुद कई इंटरव्यू में बता चुकी थीं कि उन्हें कई बार हर बड़ी राजनीतिक पार्टी से ऑफर आए लेकिन उन्होंने संगीत के रास्ते से खुद को नहीं भटकाया और हमेशा राजनीति के ऑफर को ठुकरा दिया। यह भी पढ़ें
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संगीत में पारंपरिक और आधुनिकता का संगम
शारदा सिन्हा का संगीत पारंपरिक और आधुनिकता का संगम है। वे अपने गीतों में संगीत का नया प्रयोग करते हुए भी उनकी प्राचीनता को बनाए रखती थीं। उनकी आवाज में एक मिठास और गहराई है जो सुनने वालों को अपनी ओर खींचती है। लोकगीतों के माध्यम से उन्होंने ना केवल बिहार की संस्कृति को उजागर किया बल्कि उसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान दिलाई। उनका संगीत ग्रामीण भारत की आवाज को प्रतिध्वनित करता है। उन्होंने ग्रामीण समाज के संघर्षों, खुशियों और परंपराओं को अपने गीतों में पिरोया था, जिससे लोगों को अपने जड़ों से जुडऩे का मौका मिलता है। यह भी पढ़ें