किवदंती है कि मंदिर के स्थान पर केवल जंगल था। राजा पृथ्वीराज चौहान 1175 में महोबा के चंदेल राजा से युद्ध करने भिंड से गुजरे थे। यहां से गुजरते वक्त उन्होंने डेरा डाला और तंबू गाढऩे के लिए उन्होंने यहां खुदाई की, तो जमीन से शिवलिंग निकला। उसके बाद ही पृथ्वीराज चौहान ने इस जगह मंदिर बनवाकर इस शिवलिंग की स्थापना करा दी। शिवलिंग की स्थापना के बाद यहां उन्होंने अखंड ज्योत जलाई थी। जो अखंड ज्योत आज तक वनखंडेश्वर महादेव मंदिर में प्रज्वलित है। उसके बाद से ही इस मंदिर को वनखंडेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है और दूर-दूर से भक्त यहां सावन माह में कांवर लेकर और अपनी मुरादें लेकर इस मंदिर में आते हैं।
पृथ्वीराज चौहान ने जीत के लिए मंदिर बनवाया था
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान के समय में हुआ था और तभी से यहां अखंड ज्योत जल रही है। श्रद्धालुओं का मानना है कि सावन के हर सोमवार को भगवान वनखंडेश्वर महादेव का अभिषेक कर पूजा अर्चना करने से मनचाही मुराद जल्द पूरी होती है। मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है की यहां 842 साल से अखंड ज्योत जल रही है। पृथ्वीराज चौहान ने जीत के लिए मंदिर बनवाया था।