ग्वालियर/भिंड. संभाग में अविरल धार से बहने वाली नदियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है। कल-कल बहने वाली सीजनल नदियां तो विलुप्त होने लगी हैं। जीवनदायिनी के आंचल को अवैध खनन ने छलनी कर दिया है। रसूखदार इसके आंगन में खेती कर ने मां रूपी नदियों की खुशियों को ग्रहण लगा रहे हैं। नदियों के प्राकृतिक रूवरूप से छेड़छाड़ करने के कारण अब इसके दुष्परिणाम सामने आने लगा है।
मानसून सीजन को छोड़ अंचल की ज्यादा तर सीजनल नदियां सिकुड़कर नाले में तब्दील हो गईं। खनन कारोबारियों ने अपने लाभ की खातिर नदियों के पाटों तक की दिशा बदल दी है। यही कारण है कि नदियां अब मानसून में अपनी सीमाओं को लांघकर तबाही का जरिया बन रही हैं। ऐसे में अचंल में नदी बचाओ आंदोलन महज कागजों तक सिमट कर रह गया है। वहीं, प्रशासिनक उदासीनता के कारण नदियां की जमीन पर अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। लिहाजा वे अब रूठती जा रहीं हैं।
भिंड में क्वारी नदी पर उगा रहे फसलें
मेहगांव के गोरमी क्षेत्र से लेकर अटेर एवं भिंड क्षेत्र से गुजरी क्वारी नदी के दोनों किनारों पर हजारों हेक्टेयर जमीन पर कब्जा कर फसलें उगाई जा रही हैं। बावजूद इसके प्रशासन नदी की जमीन को मुक्त कराने के लिए गंभीर रुख नहीं कर रहा है। 20 साल पूर्व तक क्वारी नदी की चौड़ाई करीब 500 मीटर थी जो अतिक्रमण के चलते सिकुड़कर बमुश्किल 80 से 100 मीटर रह गई है।
सीप, कूनो, कुंवारी नदियां हो गई मैली
शहर सहित जिले के सवा सौ गांव की जीवनरेखा सीप नदी कराहल के पनवाड़ा निकली है। गोरस, पनार, मऊ होती हुई श्योपुर, जाटखेड़ा, सोईंकलां, गुरनवादा, शंकरपुर, मेवाड़ा, बहरावदा, मानपुर होती हुई रामेश्वर में चंबल व बनास नदियों में मिलकर त्रिवेणी का पवित्र संगम बनाती है। शहर के सभी 18 गंदे नाले इसी नदी में मिलते हैं। हर साल गर्मी आते ही सूख जाती है। सीप नदी में सिर्फ गंदे नाले बहाने के कारण इसका पानी सड़ांध मारने लगा है। यही हाल वनांचल से गुजरी कूनो नदी और कुंवारी नदी का है।
चंबल-पार्वती में अवैध खनन, जलचरों को खतरा
मालवांचल से निकली चंबल नदी कोटा होते हुए श्योपुर जिले में पाली पर प्रवेश करती है। यहीं पर चंबल नदी के साथ पार्वती नदी का संगम होता है। पाली पाली घाट से वीरपुर तक लगभग 70 किलोमीटर लंबे दायरे में चंबल नदी का घटता जलस्तर और बढ़ता प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या है। इसके कारण जलचरों की कई प्रजातियां का अस्तित्व खतरे में है। रेत का अवैध उत्खनन घड़ियालों और डॉलफिन के प्रजनन में बाधक है। वहीं, पार्वती नदी बड़ौदिया बिंदी के पास श्योपुर जिले में प्रवेश करती है। नदी के दोनों किनारे जमीन अतिक्रमण है।
श्योपुर में इनके अस्तित्व पर संकट
जिले में अहेली, कदवाल, अमराल, सरारी, पारम, दौनी, भादड़ी, ककरेंडी, दुआर, अहेली सहित कई बरसाती नदियां अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। ये सभी नदियां सिर्फ बारिश के समय बहती है। मानसून की विदाई के बाद सर्दी में ही सूखकर नाला बन जाती है।
सार्थक सिद्ध नहीं हो रहे नदी बचाओ आंदोलन
पिछले एक दशक में भिंड और श्योपुर जिले में नदी संरक्षण के लिए करीब एक दर्जन आंदोलन सामाजिक संगठनों द्वारा किए गए हैं। बावजूद इसके धरातल पर उपरोक्त आंदोलन के सार्थक नतीजे सामने नहीं आए हैं। प्रशासन न तो नदी की तटवर्ती जमीन से बेदखल किए जाने की कार्यवाही कर रहा है और न ही सीमांकन कराया रहा है। कब्जाधरियों को नोटिस तक जारी नहीं किए गए हैं ।
ऐसे बढ़ रहा है मानवीय हस्तक्षेप
कलेक्टर बोले- अतिक्रमणकारियों को बदेखल कराएंगे
मामले को लेकर भिंड कलेक्टर डॉ सतीश कुमार का कहना है कि, ‘क्वारी नदी के किनारों पर किन इलाकों में अतिक्रमण किया है, इसकी जानकारी लेकर सीमांकन कराए जाने की कार्रवाई की जाएगी। अतिक्रमणकारियों को बदेखल कराएंगे।