यहां बतादें कि आठ चिकित्सकों में पांच चिकित्सक ऐसे हैं जो निजी प्रक्टिस के चलते अस्पताल में अपनी सेवाएं नियमित रूप से नहीं दे पा रहे हैं। संबंधित अधिकारियों से इसकी शिकायत करने पर उनके पास एक ही बहाना होता है कि चिकित्सकों की कमी होने के कारण वर्कलोड अधिक है। इन्हीं चिकित्सकों से काम लेना है। यदि डॉक्टरों के खिलाफ कोई कार्यवाही करते हैं तो हम डॉक्टर कहां से लाएंगे। लिहाजा जिला अस्पताल की स्वास्थ्य सेवाओं का ढर्रा चिकित्सक व नर्सों की बेहद कमी के चलते लंबे अर्से से बिगड़ा हुआ है।
जिला अस्पताल में 168 नर्सों के पद स्वीकृत हैं। उनके स्थान पर महज 106 नर्सें ही सेवारत हैं। शेष 62 नर्सों की कमी लंबे समय से पूरी नहीं हो पा रही है। नर्सों की कमी का खामियाजा अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों को परेशानी उठाकर चुकाना पड़ रहा है।
पहले पर्चा बनवाने फिर डॉक्टर के लिए करते हैं इंतजार
जिला अस्पताल में ओपीडी का आलम ये है कि हर रोज 1500 से 1800 मरीज आते हैं। इन मरीजों को पहले घंटों पर्चा बनवाने के लिए कतारबद्ध रहना पड़ता है उसके बाद संबंधित डॉक्टर के आने का इंतजार उसके केबिन के बाहर बैठकर करना पड़ता है। वहीं नर्सों की कमी के अस्पताल के विभिन्न वार्डों में भर्ती मरीजों को भी पर्याप्त सेवाएं नहीं मिल पा रहीं हैं। अक्सर इंजेक्शन या ड्रिप लगवाने के लिए मरीज के अटेंडर को नर्सों की तलाश में भटकते देखा जा सकता है। जिला अस्पताल के सीएमएचओ डॉ. जेपीएस कुशवाह के अनुसार सरकारी डॉक्टर निजी नर्सिंग होम में सेवाएं नहीं दे सकते बावजूद इसके कुछ चिकित्सक प्राइवेट अस्पतालों को अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
नर्सिंग होम व क्लीनिक कर रहे कमाई
जिला अस्पताल में नर्स व डॉक्टर की कमी का सीधा फायदा शहर के प्राइवेट नर्सिंगहोम एवं क्लीनिक संचालकों को हो रहा है। नर्सिंगहोम और क्लीनिक पर जिला अस्पताल के ही कुछ चिकित्सक अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वहीं कुछ चिकित्सक अपना ही क्लीनिक संचालित कर मरीजों को अपने घर पर आने के लिए बाध्य कर रहे हैं। बेबश मरीज न केवल आर्थिक रूप से लुट रहा है बल्कि इधर से उधर भटकते हुए शारीरिक रूप से परेशानी का सामना करने को भी मजबूर है।
एक नजर
लगातार कई साल से शासन को चिकित्सक तथा नर्सों की कमी के बारे में अवगत कराया जा रहा है। स्टाफ की कमी पूरी होते ही स्वास्थ्य सेवाएं भी बेहतर होंगी।
डॉ. अजीत मिश्रा, सविलि सर्जन जिला अस्पताल भिण्ड