समाज सेवा की दिशा में वैसे तो कई तरह के अनुकरणीय कार्यों की बानगी आए दिन सुनने को मिलती है और उनके कार्यों से समाज के लोगों को निश्चित ही बहुत कुछ सीखने को मिलता है। ऐसी ही मिसाल कायम कर रहा है, रायला का सतीश गग्गड़ का परिवार। जो अपने खर्चे पर गर्मी के मौसम में फिल्टर ठंडा पानी यात्रियों को आवाज लगाकर उपलब्ध कराते हैं वहीं कस्बे में किसी भी समाज में मौत होने पर श्मशान घाट पर पीने का पानी उपलब्ध करवाते हैं। बाल्टियों व लोटों में पानी भरकर रेल के प्रत्येक डिब्बे में पानी पहुंचाने का काम करते हैं। इस काम में मदद करता है उनका परिवार।
इस परिवार के चार सदस्य खुद सतीश, पत्नी सुनीता व दोनों बेटे अनुराग व मयंक गत 10 सालों से निःस्वार्थ भाव से रायला रेलवे स्टेशन पर गर्मी के दिनों में यात्रियों को ठंडा पानी पिलाते आ रहे हैं। बरसों से जारी उनके जज्बे को देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाता है। गर्मी में पसीने से लथपथ इस परिवार के सदस्यों के चेहरे पर कहीं थकान नजर नहीं आती और वे पूरी उर्जा के साथ यात्रियों की सेवा में हर पल तल्लीन नजर आते हैं।
बचपन से ही उनके मन में समाज सेवा के लिए कुछ कर गुजरने की ललक रही है। स्टेशन पार पानी पीने के लिए प्याउ तो होती हैं, लेकिन ट्रेन छूटने के डर के कारण अधिकतर यात्री पानी पीने प्याउ तक जाने जहमत नहीं उठाते और प्यासे ही चले जाते हैं। ऐसे हालात में उनकी कोशिश रहती है कि प्लेटफार्म पर ट्रेन आने के बाद ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को पानी पिलाएं और इसके लिए ट्रेन आने के पहले ही तैयारी कर ली जाती हैं।
उनकी पत्नी सुनीता कहती है कि गांव से केनों में भरकर स्टेशन तक लाने का उन्हें कोई मलाल नहीं रहता। उनका कहना है कि प्यासे यात्रियों को पानी पिलाने से उन्हें आत्मीय खुशी होती है और थकान का तो दूर—दूत तक कोई आभास नहीं होता। पूरा परिवार स्टेशन पर बाल्टी व लोटों के माध्यम से यात्रियों को पानी पिलाने में पूरे समय लगे रहते हैं। प्यासों को पानी पिलाने के यज्ञ में उन्हें परिवार के लोगों का भी पूरा सहयोग मिलता है। उन्होंने बताया कि इस कार्य से उन्हें आत्मसंतुष्टि मिलती है। साथ ही मन को तसल्ली भी है कि जीवन में आएं हैं तो कुछ तो समाज सेवा के लिए कर पा रहे हैं।
श्मशान घाट में पहुंचाते हैं पांच केन ठंडा पानी
कस्बे में किसी भी समाज में मौत मरण होने पर यह परिवार श्मशान घाट में पांच केन ठंडा पानी पहुंचाते हैं। वहां केन व लोटा रख देते है। शव दाह का कार्यक्रम संपन्न होने के बाद खाली केन व लोटा उठा लाते हैं।