भीलवाड़ा

1936 में हुई भी भीलवाड़ा में वस्त्र उद्योग की शुरुआत, आज डेनिम उत्पादन में पूरे देश में दूसरे नंबर पर

भीलवाड़ा कपड़ा उद्योग की शुरूआत वर्ष1936 में हुई , उस समय वार्षिक टर्नऑवर 30 लाख था, जो बढकर 17 हजार करोड रुपए हो गया

भीलवाड़ाNov 04, 2017 / 10:54 pm

tej narayan

भीलवाड़ा का वस्त्र उद्योग

भीलवाड़ा।
भीलवाड़ा देश-विदेश में वस्त्रनगरी के नाम विख्यात है। इसकी शुरूआत वर्ष1936 में हुई थी। उस समय वार्षिक टर्नऑवर 30 लाख था, जो बढकर 17 हजार करोड रुपए हो गया। अन्य उद्योग को जोड़े तो इसका वार्षिक टर्न ऑवर 35 हजार करोड़ तक पहुंच गया है। 1992-94 में मुम्बई बम ब्लास्ट के बाद सिन्थेटिक्स वस्त्र निर्माण ने गति पकड़ी। केन्द्र की टफ योजना के शुरू होने के उद्योग में नया परिवर्तन आया। वर्ष 2005-06 में मल्टी फाइबर समझौता समाप्त होने के बाद भीलवाड़ा अन्तरराष्ट्रीय परिदृश्य में ऐसा उभरा की पीछे मुड़कर देखने की जरूरत महसूस तक नहीं हुई। भीलवाड़ा का नाम वस्त्रनगरी के नाम से विख्यात होने लगा। पिछले दस साल में यह देश का आधुनिकृत विविंग क्लस्टर बनकर उभरा है। आज विश्व का पोलियस्टर विस्कोस सूटिंग निर्माण का केन्द्र बन गया है। वहीं पूरे देश में अहमदाबाद के बाद डेनिम का उत्पादन में भीलवाड़ा दूसरे नंबर है।

ऐसे हुई टेक्सटाइल की शुरूआत
– वर्ष 1936 में मेवाड़ स्टेट की ओर से कपास की जिनिंग इकाईं पेच एरिया में स्थापित हुई।
-1938 में मेवाड़ टेक्सटाइल मिल की स्थापना हुई। इसमें स्पिनिंग, विविंग एवं मेटेक्स बनियान का उत्पादन शुरू हुआ।
-1940-42 में महादेव कॉटन मिल आई। यह मिल जिङ्क्षनग व स्पनिंग का काम करने लगी।
-1962 में राजस्थान स्पिनिंग मिल्स की पहली इकाई गांधीनगर में लगी। इसे नया मिल के नाम से जानते थे। यह सूती उद्योग था। 1970 में इस मिल ने स्पिनिंग में पोलियस्टर विस्कॉस का उत्पादन शुरू किया। इससे धागा बनता था। इस कम्पनी ने 1975 में भीलवाड़ा सिन्थेटिक्स लिमिटेड (बीएसएल) के नाम से 24 लूम की पहली सूटिंग इकाई लगी।
– 1978-80 में रिको औद्योगिक क्षेत्र बीलिया व पुराने मजदूर कॉलोनी में तीन इकाइयां लगी।
-1984-85 में कॉपरेटिव क्षेत्र में लाइसेन्स की छूट मिलने से संगम सहित अन्य इकाइया आई। जो तीन-चार साल में 30 से 35 इकाइयां हो गई थी। मुम्बई बम ब्लास्ट के बाद इनकी संख्या 70-80 के करीब पहुंच गई थी। जो 2005-06 में इनकी संख्या तेजी से बढऩे लगी।
बढ़ी इकाइयों की संख्या
भीलवाड़ा में 74-75 में तीन इकाइया स्पिनिंग, विविंग व प्रोसेस की एक-एक इकाई स्थापित हुई जो वर्ष 2014 में स्पिनिंग की 14, विविंग की 425 तथा प्रोसेस की 20 इकाइया संचालित है। इन इकाइयों में 70 के दशक में मात्र 5 हजार लोगों को रोजगार मिल रहा था। आज इनकी संख्या 35 हजार तक पहुंच गई है।
600 करोड़ का कपड़ा निर्यात
सूटिंग की बिक्री पूरी भारत में हो रही है। इसके अलावा बांग्लादेश, नियतनाम, श्रीलंका, पश्चिमी एशिया के सभी देशों में, अफ्रीकी देशों में मुख्य रूप से दुबई के माध्यम से विदेशों में कपड़ा निर्यात हो रहा है जिसकी किमत 600 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष है।
12 सौ करोड़ का धागा निर्यात
भीलवाड़ा में 14 स्पिनिंग इकाइयां संचालित है। इनमें उत्पादित होने वाला धागा 60 से अधिक देशों में जा रहा है। इनमें मुख्य रूप से चीन, बांग्लादेश, पौलेण्ड, टर्की, ब्राजील, जर्मनी, कॉलम्बिया, मैक्सिको, चीली आदि देश शामिल है। 12 सौ करोड़ रुफए का धागे का निर्यात हो रहा है।

650 करोड़ का टेक्स
स्पिनिंग इकाईयों की ओर से 650 करोड़ का टेक्स चुकाया जा रही है। इसमें केन्द्रीय बिक्री कर के 150 करोड़ तथा उत्पादक कर 500 करोड़ रुपए शामिल है।


इनमें भी रखा कदम
वस्त्रनगरी में 3 बड़ी व छह छोटी इकाइयों के माध्यम से डेनिम कपड़े का उत्पादन हो रहा है। इनसे प्रतिवर्ष पांच करोड़ मीटर कपड़ा बन रहा है। इसके अलावा सिल्क स्पिनिंग, सिल्क मिश्रित कपड़े का उत्पादन बीएसएल इकाई कर रही है। रेडीमेड कपड़े के उत्पादन में डेढ़ दर्जन इकाइया लगी है। टेक्नीकल टेक्सटाइल में फ्लोक फेब्रिक्स का उत्पादन संगम ग्रुप की ओर से किया जा रहा है। आरएसडब्ल्यूएम मिलांज स्पेशल यार्न का उत्पादन कर रहा है।

इस और भी बढ़े कदम
भीलवाड़ा विविंग बेस आधारित उद्योग है। यहां सभी तरह के आधुनिक लूम चल रहे है। भीलवाड़ा के उद्यमियों को टेक्नीकल टेक्सटाइल तथा कॉटन सूटिंग उत्पाद की ओर कदम बढ़ाना होगा। इसके अलावा रेडीमेड गारमेन्ट उद्योग का भी विस्तार हो सकता है। क्योंकि भीलवाड़ा में कपड़े व डेनिम का उत्पादन हो रहा है।

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