बीमारियां रोकने में डॉक्टर्स कुछ ज्यादा नहीं कर सकते हैं। इसके लिए प्रशासन को आगे आना होगा। जनता को जागरुक होना होगा। सारी गलती डॉक्टरों पर डालने के बजाय खुद भी अपने आपको देखे कि वे अपनी सेहत के प्रति कितने जागरुक हैं। शहर में निकलेंगे तो दोनों और मिट्टी के ढेर दिखेंगे। इससे सांसों के साथ धूल जा रही है। शहर में जगह-जगह कचरा टेरेरिज्म कैम्प बने हैं। इससे दुर्गंध से बीमारियां फैल रही है।
READ:Talk Show : सड़क-नाली ही विकास नहीं, इंडस्ट्री भी चले खाली भूखंडों से कीटाणु पैदा हो रहे हैं। इन सब को सही करने का काम नगर परिषद, यूआईटी व जिला प्रशासन का है। यह सब सही हो जाएंगे तो बीमारियां कम होगी। जनता को चाहिए कि वे डॉक्टरों के साथ ऐसा बर्ताव नहीं करें कि उनका मनोबल गिरे। डॉक्टरों का कहना था कि उन्हें भगवान नहीं मानकर इंसान मानकर सही व्यवहार करेंगे तो भी वे जनता को अच्छी सुविधा दे पाएंगे। अब स्थितियां यह है कि सीरियस मरीजों को भर्ती करने से पहले डर लगता है। इसलिए मन में आता है कि रैफर कर दें। फिर भी हम अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।
Talk Show : अतिक्रमण ने बिगाड़ी शहर की सूरत, आवारा पशु भी समस्या हर चौथा शख्स बीमार
शहर के प्रमुख फिजीशियन, चाइल्ड स्पेशलिस्ट, कॉर्डियोलॉजिस्ट, आई स्पेशलिस्ट, सर्जन, चेस्ट स्पेशलिस्ट, ईएनटी स्पेशलिस्ट आदि डॉक्टरों ने बताया कि अभी सबसे ज्यादा मौत एक्सीडेंट से हो रही है। एेसे में प्रशासन टै्रफिक प्लान तैयार करें ताकि दुर्घटना रुक सके। साथ ही लोगों की लाइफस्टाइल खराब हो रही है। शाम छह बजे खाना खाने के बजाय दस बजे बाद खाना खा रहे हैं। फास्टफूड की अधिकता से हर चौथा व्यक्ति बीमार है। डस्ट के कारण कुछ सालों से सर्दी-जुकाम व एलर्जी के मरीज बढ़ रहे हैं।
शहर के प्रमुख फिजीशियन, चाइल्ड स्पेशलिस्ट, कॉर्डियोलॉजिस्ट, आई स्पेशलिस्ट, सर्जन, चेस्ट स्पेशलिस्ट, ईएनटी स्पेशलिस्ट आदि डॉक्टरों ने बताया कि अभी सबसे ज्यादा मौत एक्सीडेंट से हो रही है। एेसे में प्रशासन टै्रफिक प्लान तैयार करें ताकि दुर्घटना रुक सके। साथ ही लोगों की लाइफस्टाइल खराब हो रही है। शाम छह बजे खाना खाने के बजाय दस बजे बाद खाना खा रहे हैं। फास्टफूड की अधिकता से हर चौथा व्यक्ति बीमार है। डस्ट के कारण कुछ सालों से सर्दी-जुकाम व एलर्जी के मरीज बढ़ रहे हैं।
डॉक्टरों की यह है अपेक्षा
चिकित्सा क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप कम हो। अभी विधायक सांसद ही अस्पतालों के संचालन में भूमिका निभाते हैं।
सरकारी अस्पतालों में पैरामेडिकल स्टाफ की भर्ती हो। स्टाफ पूरा होगा और टीम होगी तो डॉक्टर्स के प्रयास दिखेंगे।
शहर में हेल्थ स्लोगन के बोर्ड चौराहों पर लगे। स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करने के कार्यक्रम हो।
असामाजिक तत्वों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करें। तोडफ़ोड़ करने पर डॉक्टरों की सुनवाई जल्दी हो।
हेल्थ सेक्टर में सरकार बजट ज्यादा दें।
समाज व मीडिया में डॉक्टरों के प्रति नकारात्मकता खत्म हो।
चिकित्सा क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप कम हो। अभी विधायक सांसद ही अस्पतालों के संचालन में भूमिका निभाते हैं।
सरकारी अस्पतालों में पैरामेडिकल स्टाफ की भर्ती हो। स्टाफ पूरा होगा और टीम होगी तो डॉक्टर्स के प्रयास दिखेंगे।
शहर में हेल्थ स्लोगन के बोर्ड चौराहों पर लगे। स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करने के कार्यक्रम हो।
असामाजिक तत्वों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करें। तोडफ़ोड़ करने पर डॉक्टरों की सुनवाई जल्दी हो।
हेल्थ सेक्टर में सरकार बजट ज्यादा दें।
समाज व मीडिया में डॉक्टरों के प्रति नकारात्मकता खत्म हो।
डॉक्टर बोले-मशीन चलाना हमारा काम नहीं है…
पब्लिक धैर्य रखे। कोई भी डॉक्टर मरीज को मारना नहीं चाहता है। तोडफ़ोड़ नहीं करें। डॉक्टर्स भी इंसान है। और मरीज के हित में उनका हित है। एेसे में गुस्सा करने के बजाय वास्तविक स्थिति देखे।
2018 में सुपर स्पेशिएलिटी सुविधाएं बढ़े, इसके लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं। अभी यूरोलोजी, कॉर्डियोलाजी व ऑर्थो में बेहतर सुविधा दे रहे हैं। इस कारण आसपास के जिलों से बहुत आगे हैं।
सरकारी अस्पतालों में बड़ी-बड़ी बिल्डिंग है पर संसाधन नहीं है। मशीनें है पर चलाने वाले नहीं है। एेसे में यह जिम्मेदारी डॉक्टरों की नहीं है। इसमें सरकार को चाहिए कि पर्याप्त नियुक्तियां करें।
बारिश का पानी भरा रहता है। इसके लिए इंफास्ट्रक्चर में सुधार करें।
अस्पतालों में मौत पर कुछ लोगों ने धंधा बना रखा है। वे लोग भी ध्यान दे कि डॉक्टर्स जानबूझ कर नहीं करते हैं। अब आईएमए पूरा सहयोग करेगा।
पब्लिक धैर्य रखे। कोई भी डॉक्टर मरीज को मारना नहीं चाहता है। तोडफ़ोड़ नहीं करें। डॉक्टर्स भी इंसान है। और मरीज के हित में उनका हित है। एेसे में गुस्सा करने के बजाय वास्तविक स्थिति देखे।
2018 में सुपर स्पेशिएलिटी सुविधाएं बढ़े, इसके लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं। अभी यूरोलोजी, कॉर्डियोलाजी व ऑर्थो में बेहतर सुविधा दे रहे हैं। इस कारण आसपास के जिलों से बहुत आगे हैं।
सरकारी अस्पतालों में बड़ी-बड़ी बिल्डिंग है पर संसाधन नहीं है। मशीनें है पर चलाने वाले नहीं है। एेसे में यह जिम्मेदारी डॉक्टरों की नहीं है। इसमें सरकार को चाहिए कि पर्याप्त नियुक्तियां करें।
बारिश का पानी भरा रहता है। इसके लिए इंफास्ट्रक्चर में सुधार करें।
अस्पतालों में मौत पर कुछ लोगों ने धंधा बना रखा है। वे लोग भी ध्यान दे कि डॉक्टर्स जानबूझ कर नहीं करते हैं। अब आईएमए पूरा सहयोग करेगा।