शहर के माणिक्यलाल वर्मा टेक्सटाइल एंड इंजीनियरिंग कॉलेज में इस सत्र में कुल 340 में से 158 सीटें खाली रह गई है। सबसे बड़ी बात यह है कि टेक्सटाइल इंजीनियरिंग को बढ़ावे के लिए नित नए ऐलान किए जा रहे हैं पर दाखिले पर असर नहीं पड़ रहा। इस साल टेक्सटाइल केमेस्ट्री में कुल 40 में से 18 सीटें ही भरी है। टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी में120 सीटें हैं लेकिन 70 पर विद्यार्थी आए हैं। आइटी की स्थिति बेहतर है, जिसमें 60 में से 50 सीट भर चुकी है।
यह है सीटों का हाल विभाग कुल सीटें प्रवेश दिए टेक्सटाइल केमेस्ट्री 40 18
टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी 120 70 इंर्फोमेशन टेक्नोलॉजी 60 50
इलेक्ट्रोनिक कम्युनिकेशन 60 14 मेकेनिकल इंजीनियरिंग 60 30
टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी 120 70 इंर्फोमेशन टेक्नोलॉजी 60 50
इलेक्ट्रोनिक कम्युनिकेशन 60 14 मेकेनिकल इंजीनियरिंग 60 30
टेक्यूप से मदद, सरकार से निराशा प्रदेश के टेक्सटाइल एंड इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थिति खराब है। कारण है कि राज्य सरकार पूरा ध्यान नहीं देती है। नया स्टाफ नहीं मिल रहा है। इनके पदोन्नति नहीं हो रही है। सरकार की ओर से कोई संसाधन नहीं दिए जाते हैं। वहीं केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय ने प्रदेश के इकलौते टेक्सटाइल कॉलेज के अच्छे संचालन के लिए टेक्यूप प्रोजेक्ट चला रखा है। इसमें शोध, कार्यशाला व अन्य गतिविधियों के लिए बजट दिया जाता है। इसके बावजूद साल दर साल हर विभाग में प्रवेश के आंकड़े घट रहे हैंे।
पढ़ाने वालों की कमी कॉलेज में करीब आधे पद रिक्त हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वापस पद नहीं भरे जा रहे हैं। नई नियुक्ति के लिए सरकार कोई कदम नहीं उठा रही। लिहाजा पढ़ाने वालों की कमी है। यही वजह है कि संसाधन व स्टाफ के अभाव में विद्यार्थी रुचि नहीं लेते हैं। कॉलेज में स्थाई प्रिंसिपल भी नहीं है।
औद्योगिक शहर, फिर भी रिस्पॉन्स नहीं भीलवाड़ा में काफी टेक्सटाइल इंडस्ट्री है लेकिन पर्याप्त रोजगार नहीं मिलने की वजह से स्टूडेंट्स टेक्सटाइल इंजीनियरिंग नहीं करना चाहते हैं। अब डेनिम प्लांट के साथ ही नई टेक्नोलॉजी की लूम भी आ गई है। इसके बावजूद भी इंजीनियरिंग के प्रति मोह नहीं है।