भीलवाड़ा

मांडलगढ़ उप चुनाव: त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी सीट, भितरघात का डर

चुनाव के ऐनवक्त तक मतदाताओं की खामोशी ने दोनों दलों में बैचेनी बढ़ा रखी है

भीलवाड़ाJan 28, 2018 / 11:42 am

tej narayan

मांडलगढ़ विधान सभा उपचुनाव का समर अब चरम पर पहुंच गया है।

जयप्रकाश सिंह.भीलवाड़ा।
मांडलगढ़ विधान सभा उपचुनाव का समर अब चरम पर पहुंच गया है। चुनाव के ऐनवक्त तक मतदाताओं की खामोशी ने दोनों दलों में बैचेनी बढ़ा रखी है। अपनी सीट को बरकरार रखने के लिए जहां राज्य सरकार ने पूरी ताकत झौंक रखी है, वहीं कांग्रेस अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को हासिल करने के लिए पूरा जोर लगा रही है। कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे गोपाल मालवीय ने त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति पैदा कर दी है। यूं तो इस सीट से आठ उम्मीदवार भाग्य आजमा रहे है, लेकिन मुकाबला कांग्रेस के विवेक धाकड़, भाजपा के शक्ति सिंह हाड़ा और निर्दलीय गोपाल मालवीय के बीच ही माना जा रहा है।
 

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कांटे की टक्कर के बीच यहां दोनों ही दलों को भितरघात का डर सता रहा है। इसी कारण पिछले कई दिनों से दोनों पार्टी के वरिष्ठ नेता यहां डेरा डाले हुए हैं। बड़े नेताओं के कई दौरे हो चुके है। पूरे चार साल में राज्य सरकार जितनी बार यहां नहीं आई, उससे ज्यादा यहां पिछले दस दिन में आना हो गया। इसे लेकर भी मतदाता कई तरह के कयास लगा रहे है। दोनों ही दल हर तरह से रूठों को मनाने की कवायद कर रहे है। गिले शिकवे दूर करने की कोशिश हो रही है। भाजपा ने तो कई इलाकों की जिम्मेदारी अपने पार्टी के मंत्री व विधायकों को सौंप रखी है। भाजपा ने शनिवार को बीगोद में सरकार के रोड शो के जरिए कार्यकर्ताओं में जान फूंकने की कोशिश की। उपचुनाव में दोनों ही प्रमुख दल अपने अपने तरीके से जातिगत समीकरण साध रहे है। टिकट वितरण में भी इसका ख्याल रखा गया है। शक्ति सिंह हाड़ा जहां सरकार के चार साल और अपने खनिज ट्रस्ट के भरोसे मतदाताओं से मिल रहे है, वहीं विवेक धाकड़ को जातिगत वोटों का आसरा है। गोपाल मालवीय लोगों से अपने लिए सहानुभूति के वोट मांग रहे है।
 

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स्थानीय कार्यकर्ताओं में नाराजगी
दोनों ही दलों में स्थानीय कार्यकर्ता अपनी उपेक्षा से नाराज है। उनका कहना है कि अब पार्टी में निष्ठावान कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं मिल रही।
कई स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना था कि भले ही चुनाव प्रचार के लिए यहां राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के नेता जुटे हुृए है, लेकिन घरों से मतदाताओं को निकालकर बूथ तक स्थानीय कार्यकर्ता ही लाएगा। शायद इसे ही भांपकर पार्टी के वरिष्ठ नेता उन्हें मनाने के लिए घरों पर जा रहे हैं।

कांग्रेस का रहा है दबदबा
मांडलगढ़ विधानसभा क्षेत्र का इतिहास देखा जाए तो यहां कांग्रेस का दबदबा ज्यादा रहा है। अब तक हुए 15 चुनाव में दस बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की। पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर यहां से छह बार निर्वाचित हुए। भाजपा दो बार ही जीत हासिल कर पाई है।
 

महंगाई- विकास है मुद्दे
इस क्षेत्र के अधिकांश मतदाता खेतीबाड़ी और खदानों में कार्य करने में जुटे हुए है, वे किसी एक के पक्ष में माहौल नहीं मान रहे है, उनका कहना है कि तीनों ही उम्मीदवार युवा और स्थानीय है, ऐसे में कौन जीतेगा, कहा नहीं जा सकता। यहां कांटे की टक्कर है। जीत का अंतर भी बहुत ज्यादा नहीं रहने वाला है। मतदाताओं ने यह भी आंकलन कर रखा है कि किस इलाके में किसे फायदा मिलेगा। पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस की कीमतों और महंगाई में बढ़ोतरी से भी मतदाता नाराज है। यूं तो चुनाव से ठीक पहले सरकार ने मांडलगढ़ के विकास के लिए तिजोरी खोल दी थी, लेकिन अभी भी कई समस्याएं बरसों से लम्बित है। खनन व्यवसायी उन्हें कई तरह की राहत की आस लगाए बैठे है। सरकारी कॉलेज और स्कूल क्रमोन्नत कर दिए गए, लेकिन इनमें संसाधनों का अभाव है। रावणा राजपूत समाज भी भाजपा से नाराज चल रहा है।

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