भीलवाड़ा

जहां किसानों ने बजाया था बिगुल, वहां मतदाताओं ने साधी चुप्पी

हाड़ौती व मेवाड़ की सीमा से लगते इस क्षेत्र का उपचुनाव अब केवल मांडलगढ़ का नहीं बल्कि वीआईपी चुनाव हो गया है।

भीलवाड़ाJan 23, 2018 / 12:26 pm

tej narayan

हाड़ौती व मेवाड़ की सीमा से लगते इस क्षेत्र का उपचुनाव अब केवल मांडलगढ़ का नहीं बल्कि वीआईपी चुनाव हो गया है।

जसराज ओझा. भीलवाड़ा।

हाड़ौती व मेवाड़ की सीमा से लगते इस क्षेत्र का उपचुनाव अब केवल मांडलगढ़ का नहीं बल्कि वीआईपी चुनाव हो गया है। जहां यह सीट सरकार के चार साल की परीक्षा के रूप में हैं, वहीं कांग्रेस के लिए यह सीट परंपरागत है, इसलिए वे इसे इस बार नहीं खोना चाहते हैं। राजस्थान में एकमात्र विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव हो रहे हैं, इस कारण दोनों दलों के लिए बहुत खास है। इन दिनों वरिष्ठ नेताओं के दौरे भी खूब हो रहे हैं।
 

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भाजपा अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि व केंद्र की योजनाओं का गुणगान कर रही है, वहीं कांग्रेसी राज्य सरकार को फेल बताकर सीट अपने खाते में ले जाने की जुगत में हैं। कांग्रेस के बागी और निर्दलीय उम्मीदवार भी खुद का प्रभाव बताकर सदन में जाने का प्रयास कर रहे हैं। इस उठापठक में अभी मतदाता ने चुप्पी साध रखी है। कारण है कि यहां मतदाता का हर प्रत्याशी से अलग-अलग तरह के संबंध है। इसमें कहीं खदानों का संबंध है तो कहीं जातिगत।
 

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यूं देखा जाए तो मांडलगढ़ में खनन, सड़क और श्रमिकों की सुरक्षा बड़ा मुद्दा है, लेकिन इस चुनाव को वीआईपी बना देने से अब स्थानीय मुद्दे गौण से हो गए है। इस चुनाव में राज्य और केंद्र स्तर के मुद्दे ही छाए हुए है। सब यह भूल गए है कि जिस जगह से किसान आंदोलन का बिगुल बजा था, वहां आज क्या समस्या है। मांडलगढ़ इलाके में लोगों में स्थानीय मुद्दों पर चर्चा नजर दिखती। भाजपा ने जिला प्रमुख शक्तिसिंह हाड़ा को चुनाव मैदान में उतारा है। उन्हें अपने जिला परिषद के कार्यों का भरोसा है। वहीं कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी रहे विवेक धाकड़ पर फिर भरोसा किया है। कांग्रेस के बागी पूर्व प्रधान गोपाल मालवीय ने चुनाव को और रोचक बना दिया है। चौराहों पर चर्चा यही है कि मालवीय के चुनाव लडऩे से किसकों ज्यादा नुकसान हो रहा है। पूर्व जिला प्रमुख कमला धाकड़ अभी भाजपा में शामिल हुई इसमें भी जातिगत फायदा नुकसान देखा जा रहा है।
 

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क्षेत्र बड़ा इसलिए मुद्दे भी अलग-अलग
उपचुनाव भले ही एक मांडलगढ़ सीट पर हो रहा है, पर क्षेत्र बड़ा है, इसलिए मुद्दे भी कई है। महंगे पत्थर उगलने वाले ऊपरमाल बिजोलियां क्षेत्र की जमीन में एक वर्ग को सरकार से बड़ी उम्मीद है जो अब तक अधूरी है। इसे लेकर खुद सरकार उनसे मिली भी और गिला-शिकवा दूर करने का प्रयास किया। दूसरा वर्ग जो पत्थर तोड़ रहा है, उसकी बात कहीं नहींं है। बीगोद, जोजवा, खटवाड़ा आदि क्षेत्रों से देशभर में संतरा जाता है। वहां भी किसानों की समस्याएं है, पर वे आश्वासन के फल खा रहे हैं। कुछ पंचायतें एेसी है जो कोटड़ी पंचायत समिति में हैं। वहां अलग ही राजनीति है। सभी दलों का जोर है कि इन खास पंचायतों से उन्हें लीड मिले ताकि अलग संदेश दे सके।
 

दोनों दलों की नजर खदान के वोटरों पर
दोनों दलों की नजर खदानों में छिपे मतदाताओं को बाहर लाने पर है। उनका मानना है कि वे यदि बाहर नहीं निकले तो नुकसान सभी को होगा। इस क्षेत्र में रोजगार का संकट भी बड़ा है। एक बड़ा वर्ग एेसा है जो दो जून की रोटी की जुगाड़ में पत्थरों के बीच उलझ रहा है। सिलिकोसिस नाम की बीमारी उनके घर में जख्म कर रही है लेकिन चुनावों में इसका जिक्र तक नहीं है। इस बात का कुछ लोगों को दुख भी है। आजादी के आंदोलन में सहयोग देने वाली इस धरा पर अब १६वां विधानसभा चुनाव है। इसमें दस बार कांग्रेस ने सीट जीती है, जबकि दो बार ही भाजपा जीत हासिल कर पाई। इसके अलावा एक बार भारतीय जनसंघ और एक बार जनता पार्टी के उम्मीदवार जीते। एक बार निर्दलीय मनोहरसिंह मेहता भी सदन में पहुंचे थे। इससे पहले १९९७ में भी उपचुनाव हुए थे, तब कांग्रेस जीती थी।

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