भीलवाड़ा। आचार्य महाश्रमण ने कहा कि शास्त्र में अनुत्तर केवली के दस गुणों का वर्णन किया गया है। अनुतर यानी जो सर्वोत्कृष्ट हो। पहला है अनुत्तर-ज्ञान उत्कृष्ट ज्ञानी, जिनसे ज्यादा ज्ञान किसी के पास न हो। अनुत्तर दर्शन जिन्हें पूर्ण केवल दर्शन प्राप्त हो गया हो। अनुत्तर चारित्र जिन्हें यथाख्यात चारित्र प्राप्त हो गया हो जिसकी प्राप्ति के बाद सीधा मोक्ष गमन ही होता है। अनुत्तर तप सबसे ऊंचा व भाव पूर्ण ध्यान। अनुत्तर वीर्य पूर्ण शक्ति सम्पन्नता का होना। अनुत्तर क्षांति क्षमा व धैर्य का उत्कर्ष होना। अनुत्तर मुक्ति कामना लोभ आदि से पूर्ण मुक्तता। अनुत्तर आर्जव ऋजुता, सरलता व छलकपट से पूर्ण मुक्त आत्मा। अनुत्तर मार्दव पूर्ण निरभिमानता व अहंकार मुक्ति। अनुत्तर लाघव पूर्ण हल्कापन कोई संग्रह की भावना नहीं। ये अनुत्तर केवली के गुण होते है। आचार्य ने कहा कि केवली तो पूर्ण अनुत्तर होते है पर हमारा भी प्रयास रहे कि उस दिशा में आगे बढे। सम्यक ज्ञान, दर्शन, चारित्र में आगे बढ़े। व्यक्ति को कामनाओं, गुस्से व अहंकार को कम करने का प्रयास करना चाहिए। साधना द्वारा ऋजु बनते हुए अनुत्तर की प्राप्ति की ओर प्रस्थान करें व अनुत्तर केवली बनने का लक्ष्य भी रखे। जब शुद्ध भाव का संकल्प होता है तो सफलता भी मिलती जाती है।