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कपड़ा व्यापारियों की मानें तो लोकल कपड़ा बाजार में मांग शुरू हो गई है। गर्मी के सीजन को देखते हुए कपड़े की अच्छी मांग देखी जा रही है। स्कूल यूनिफार्म के कपड़ों में 2 से 4 रुपए मीटर की तेजी है। आगामी 2 से 3 माह यूनिफार्म के कपड़ों में अच्छी मांग बनी रहने की संभावना हैं। जीएसटी के बाद स्टॉक प्रवृत्ति का अंत हो गया है। अप्रेल व मई तक ब्याह-शादियों के मुहूर्त होने से कपड़ा बाजारों में ग्राहकी बनी रहने की संभावना है। इसके चलते विविंग उद्योग ने भी अपनी चाल पकड़ ली है। देश में भीलवाड़ा के शूटिंग्स में अच्छी मांग है। व्यापारी आगामी लग्नसरा की तैयारी करने में लग गए हैं। खरीदी करने लगे हैं। पहले नोटबंदी और बाद में जीएसटी के बाद अब नकदी का व्यापार सिमट गया है।
कपड़ा व्यापारियों की मानें तो लोकल कपड़ा बाजार में मांग शुरू हो गई है। गर्मी के सीजन को देखते हुए कपड़े की अच्छी मांग देखी जा रही है। स्कूल यूनिफार्म के कपड़ों में 2 से 4 रुपए मीटर की तेजी है। आगामी 2 से 3 माह यूनिफार्म के कपड़ों में अच्छी मांग बनी रहने की संभावना हैं। जीएसटी के बाद स्टॉक प्रवृत्ति का अंत हो गया है। अप्रेल व मई तक ब्याह-शादियों के मुहूर्त होने से कपड़ा बाजारों में ग्राहकी बनी रहने की संभावना है। इसके चलते विविंग उद्योग ने भी अपनी चाल पकड़ ली है। देश में भीलवाड़ा के शूटिंग्स में अच्छी मांग है। व्यापारी आगामी लग्नसरा की तैयारी करने में लग गए हैं। खरीदी करने लगे हैं। पहले नोटबंदी और बाद में जीएसटी के बाद अब नकदी का व्यापार सिमट गया है।
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कपड़ा उत्पादन पर जोर क्वालिटी पर नहीं
वस्त्रनगरी के छोटे व्यापारियों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे उत्पादन में श्रेष्ठता की ओर जाना नहीं चाहते। कपड़े का उत्पादन तो अच्छी मात्रा में हो रहा है, लेकिन क्वालिटी कपड़ों का नहीं। हालांकि पिछले कुछ समय से शूटिंग्स में सुधार किया है, लेकिन बडे-बडे उद्योगों को टक्कर दे सके, ऐसे प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। कपड़ों में ग्राहकी १2 माह चलती हैं। भीलवाड़ा उद्योग यूनिफार्म सेक्टर व रेडीमेड क्षेत्र में बड़ी मात्रा में कपड़े की आपूर्ति देश व विदेश में करती है। स्कूल का कपड़ा बनाने के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बहुत कम है। कुछ बड़े उद्योग पॉलिस्टर, कॉटन एवं सीजन के अनुरूप लिनन का कपड़ा भी बनाने लगे है।
कपड़ा उत्पादन पर जोर क्वालिटी पर नहीं
वस्त्रनगरी के छोटे व्यापारियों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे उत्पादन में श्रेष्ठता की ओर जाना नहीं चाहते। कपड़े का उत्पादन तो अच्छी मात्रा में हो रहा है, लेकिन क्वालिटी कपड़ों का नहीं। हालांकि पिछले कुछ समय से शूटिंग्स में सुधार किया है, लेकिन बडे-बडे उद्योगों को टक्कर दे सके, ऐसे प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। कपड़ों में ग्राहकी १2 माह चलती हैं। भीलवाड़ा उद्योग यूनिफार्म सेक्टर व रेडीमेड क्षेत्र में बड़ी मात्रा में कपड़े की आपूर्ति देश व विदेश में करती है। स्कूल का कपड़ा बनाने के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बहुत कम है। कुछ बड़े उद्योग पॉलिस्टर, कॉटन एवं सीजन के अनुरूप लिनन का कपड़ा भी बनाने लगे है।