भीलवाड़ा

2011 में कहा था जब भी मेवाड़ में चातुर्मास करूंगा तो भीलवाड़ा में ही करूंगा

आचार्य महाश्रमण का मेवाड़ में मंगल प्रवेश आजजावद से अहिंसा यात्रा के साथ आज राजस्थान की सीमा में आएंगेराजस्थान की सीमा से मात्र 12.4 किलोमीटर दूर

भीलवाड़ाJul 08, 2021 / 10:12 pm

Suresh Jain

2011 में कहा था जब भी मेवाड़ में चातुर्मास करूंगा तो भीलवाड़ा में ही करूंगा

भीलवाड़ा।
तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता और अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य महाश्रमण का शुक्रवार सुबह मेवाड़ की धरती पर मंगल प्रवेश होगा। वे गुरूवार को राजस्थान की सीमा से मात्र १२.४ किलोमीटर दूर थे। वे शुक्रवार सुबह सवा सात बजे राजस्थान की सीमा निम्बाहेड़ा में 43 संत, 53 साध्वी व 4 समणी व भक्तों के साथ मंगल प्रवेश करेंगे। यहां सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना उनकी अगवानी करेंगे। वे १७ जुलाई को भीलवाड़ा में मंगल प्रवेश करेंगे। यहां उनका चातुर्मास होगा।
२०११ में की थी भीलवाड़ा चातुर्मास की घोषणा
इससे पहले आचार्य महाश्रमण ४ दिसम्बर २०११ को चार दिवसीय प्रवास के लिए भीलवाड़ा आए थे। तब उन्होंने घोषणा की थी कि वे जब भी मेवाड़ में चातुर्मास करेंगे तो सबसे पहले भीलवाड़ा में करेंगे। उसके बाद पहली बार चातुर्मास के लिए भीलवाड़ा में प्रवेश होगा। इससे पहले वर्ष २००४ युवाचार्य के रूप में आचार्य महाप्रज्ञ के साथ तथा १९८४ में आचार्य तुलसी के साथ भी भीलवाड़ा आए थे।
आचार्य नयागांव पहुंचे
इससे पूर्व गुरूवार को आचार्य का जावद से मंगल विहार हुआ। आचार्य ने महात्मा गांधी महाविद्यालय से प्रस्थान किया। खौर ग्राम में आचार्य का आगमन हुआ तो ग्रामीणों ने उनके दर्शन किए। सीमेंट फैक्ट्री में कार्यरत एक युवक ने इस दौरान आचार्य की प्रेरणा से नशे का परित्याग किया। करीब 12 किमी विहार कर आचार्य नयागांव पधारे। इस अवसर पर ग्राम के सकल जैन समाज सहित अन्य संगठनों ने आचार्य व धवल सेना का स्वागत किया। स्थानीय जैन मंदिर के समक्ष आचार्य ने महावीर स्तुति का संगान किया। माध्यमिक विद्यालय में आचार्य का प्रवास के लिए प्रवेश हुआ।
धर्म के तीन प्रकार बताए
इस अवसर पर ऑनलाइन प्रवचन में आचार्य ने धर्म के तीन प्रकार अहिंसा, संयम और तप बताए। उन्होंने कहा कि तपस्या के द्वारा समस्या का निवारण किया जा सकता है। अध्यात्म जगत की दृष्टि में सबसे बड़ी समस्या है कर्म। तपस्या निर्जरा से कर्म बंधनों को कम किया जा सकता है। निर्जरा से पूर्वार्जित कर्मों का क्षय होता है, तो संवर से नए कर्मों का निरोध होता है। जिसने संवर को पकड़ लिया उसके निर्जरा होती ही है। आचार्य ने कहा कि निर्जरा के जो बारह भेद हैं वही तपस्या के भेद हैं। व्यक्ति तपस्या करे तो निर्जरा का ही लक्ष्य रखें। इस अवसर पर जैन विश्व भारती लाडनूं द्वारा प्रकाशित पुस्तक सफर समता का चित्तौडग़ढ के विधायक चंद्रभान आक्या, जैन विश्व भारती के पूर्व अध्यक्ष धर्मीचंद लुंकड़, मूलचंद नाहर ने विमोचन किया।
एक दिन का समय बढ़ाने का आग्रह
चित्तौडग़ढ़ विधायक चंद्रभान सिंह आक्या, पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह जाड़ावत, नगर परिषद सभापति चित्तौडग़ढ़ संदीप शर्मा ने आचार्य से चित्तौड़गढ़ में 1 दिन का प्रवास बढ़ाने का आग्रह किया। तेरापंथ सभा अध्यक्ष अजीत ढिलीवाल, कोषाध्यक्ष सुरेंद्र डूंगरवाल, संजय ढिलीवाल एवं अनिल सुराणा साथ थे। आचार्य महाश्रमण के शिष्य मुनि मोहजीत व मुनि रश्मि के सानिध्य में तेरापंथ महिला मंडल की ओर से निर्देशित एक बूंद बचाओ जल सुरक्षित कल का आयोजन किया। चातुर्मास व्यवस्था समिति के स्वागताध्यक्ष महेंद्र ओस्तवाल ने आचार्य के मंगल प्रवेश के समय कोरोना डाइड लाइन की पालना करते हुए हिस्सा लेने का आव्हान किया है।

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