यहां पर्यटक स्थलों पर फेंके जाने वाली प्लास्टिक की बोतलों को खरीदकर उसका फायबर बनाया जाता है। प्लांट में देशभर से आने वाली करीब 220 टन प्लास्टिक बोतलों को प्रतिदिन काम में लिया जा रहा है। प्लांट में बोतलों को डालने के साथ उसे धुलाई करने, बोतल पर लगे लेबल हटाने, उसमें से कचरा साफ करने के साथ उसके ढक्कन को भी क्रैश कर अलग किया जाता है। मशीन से सफेद व अन्य रंगों की टुकड़ों को अलग-अलग करने के बाद उससे अंतिम बार मिट्टी या अन्य कणों से बाहर निकाला जाता है।
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फैक्ट फाइल
200 करोड़ के दो फायबर प्लांट
220 टन प्लास्टिक बोतलों की होती है खपत
200 टन तैयार होता है फायबर
550 श्रमिक करते हैं काम
ऐसे बनता है धागा
फायबर को स्पिनिंग प्लांट के माध्यम से धागे में बदला जाता है। सफेद फायबर को अलग-अलग रंगों में रंगते हैं। धागे को कोण में लपेटकर विविंग उद्योग भेजते हैं, जहां मशीन पर पेंट का कपड़ा तैयार होता है।
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200 करोड़ के दो प्लांट
भीलवाड़ा के दो प्लांटों से प्रतिदिन 200 टन फायबर का उत्पादन होता है। फायबर बनाने के लिए 120 फीट की ऊंचाई पर प्लांट लगा है। यहां 300 डिग्री के तापमान में पिघलाकर रेशे तैयार किए जाते हैं। ये रेशे अलग-अलग फ्रेम की मशीन के माध्यम से गुजारने के बाद फायबर तैयार होता है, जो अंत में 400 किलो की गांठ के रूप में पैक होकर बाहर आती है। भीलवाड़ा के लाम्बिया कला व नानकपुरा में चल रहा प्लांट तीसरा व प्रदेश का चौथा है।