बिजौलियां व आसींद क्षेत्र के कुछ मामले एेसे हैं जिसमें लाभार्थी ने यह राशि बच्चों की शादी में लगा दी।कुछ एेसे हैं, जो नाते पत्नी ले आए। हाल यह है कि पीएम आवास योजना में जिले में सबको छत की बात कह रहे है। इनको पूरा करने के आंकड़े भी पेश कर रहे हैं। पर जमीनी हकीकत कुछ और है।
बचने को प्रशासन ने निकाला रास्ता विभाग का दावा है कि यह सब तीन साल पहले हुआ था, लेकिन अब जियो ट्रेकिंग के आधार पर फोटो अपलोड करने के बाद ही उसे पहली व दूसरी किश्त जारी की जा रही है। स्थिति यह है कि फोटो अपलोड में भी गड़बड़ी हो रही है। योजना का फायदा वही लोग उठा रहे हैं जो घर बनाने में सक्षम हैं व सरकार से पैसे लेकर बड़ा घर बना रहे हैं। इसमें सरपंच और पंचायत की भूमिका होती है। क्योंकि यही लोग मकान के लिए पैसे देने के लिए नाम आगे भेजते हैं। उधर, जनप्रतिनिधियों का कहना है कि लोग अब सम्पन्न हो गए। 2011 की गणना में इनका नाम गरीबी रेखा के नीचे था।
इलाज में खर्च किए पैसे
जहाजपुर के ऊंचा निवासी रामेश्वर लाल ने पैसे लेकर खर्च कर लिए और अब भी वह किराए के घर में रह रहा है। नवीन को पहली किश्त मिली लेकिन उसने भी घर बनाने के बजाए खर्च कर डाले। अब उनका कहना है कि साढ़े बाइस हजार की पहली किश्त मिली थी, वो बीमारी के इलाज में खर्च हो गए। हालांकि इलाज के लिए कई अन्य योजनाएं मौजूद है।
राज्य में 1.70 लाख मकान बाकी
प्रदेश में स्वीकृत मकानों में से 31 मई तक 1.70 लाख मकानों का निर्माण नहीं हो पाया है। ग्रामीण विकास एवं पंचायती राम विभाग के प्रमुख सचिव राजेश्वर सिंह ने कलक्टर को 25 मई को पत्र लिखकर इस प्रगति पर असंतोष जताया है। रिपोर्ट के अनुसार, मई 2018 में 51 हजार आवास पूर्ण करने के लक्ष्य दिए थे, जिसके मुकाबले राज्य में 22.64 प्रतिशत प्रगति हुई है। इसी प्रकार 2018-19 में जो स्वीकृति जारी की है। उसके मुकाबले 84 हजार को ही प्रथम किश्त जारी करने का लक्ष्य दिया था उसमें 47 हजांर 63 को ही प्रथम किश्त जारी की है। जो लक्ष्य का 32.86 प्रतिशत है। जिले मेंं 3881 मकान अपूर्ण है। 2016 से 18 तक 669 मकान शेष है।