भीलवाड़ा

Bhilwara news : सूर्यदेव का छह माह के लिए उत्तरायण में प्रवेश

हेमंत ऋतु संपन्न, शिशिर शुरुआत, अब पौष उत्सव की धूम

भीलवाड़ाDec 22, 2024 / 11:11 am

Suresh Jain

Sun God enters Uttarayan for six months

Bhilwara news : पौष मास कृष्ण पक्ष में शनिवार दोपहर 2:51 बजे सूर्यदेव दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश कर गए। सूर्यदेव छह महीने दक्षिणायन और छह महीने उत्तरायण रहते हैं। सूर्य का उत्तरायण में प्रवेश जनजीवन के लिए शुभ माना जाता है, साथ ही दान-पुण्य, हवन, पूजन, तीर्थाटन, पवित्र जलाशयों में स्नान, वेद शास्त्रों और ग्रंथों के पठन-पाठन के लिए यह श्रेष्ठ समय माना जाता है।
शनिवार को उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे लंबी रात रही। मकर रेखा दक्षिण गोलार्द्ध में है, जो सूर्यदेव की दक्षिण की लक्ष्मण रेखा है। इस कारण दिन सबसे छोटा दिन भी रहा। रविवार यानी 22 दिसंबर से दिन धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। यह क्रम 21 जून तक जारी रहता है, जो साल का सबसे बड़ा दिन होता है। रविवार से राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में पौष उत्सव शुरू होता है।
सबसे लंबी रात

साल में 365 दिन होते हैं। हर दिन रात बराबर होते हैं। साल में कुछ दिन अलग होते हैं। 21 दिसबर को वर्ष की सबसे लंबी 13 घंटे 42 मिनट की रात रही। दिन 10 घंटे 18 मिनट का ही रहा। इस खास संयोग को शीतकालीन संक्रांति के नाम से जाना जाता है। शीतकालीन संक्रांति का कारण यह है कि पृथ्वी अपने धुरी पर 23.4 डिग्री झुकी होती है। इस दिन पृथ्वी की सूर्य से दूरी अधिक होती है। चांद की रोशनी पृथ्वी पर अधिक समय तक रहती है।
खगोलीय घटना: शुभ मानी जाता है उत्तरायण

पंडित अशोक व्यास ने बताया कि सूर्य का उत्तरायण होना एक खगोलीय घटना है। सूर्य का उत्तरायण होना शुभ माना जाता है। इसका धार्मिक महत्व भी है। इस माह में मकर संक्रांति जैसा विशेष पर्व भी आता है।
खगोल विज्ञान के अनुसार, जब सूर्य मकर रेखा को पार कर उत्तर की ओर बढ़ते हैं तो इसे उत्तरायण कहा जाता है। हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में उत्तरायण को देवताओं का दिन माना गया है, जो छह महीने की अवधि है। मान्यता है कि इस अवधि में सकारात्मक ऊर्जा और शुभता का प्रभाव अधिक होता है। उत्तरायण का महत्व क्या है, इसका महाभारत की एक खास घटना से पता चलता है। महाभारत काल में गंगा पुत्र भीष्म ने यह प्रतिज्ञा की थी कि, जब तक सूर्य उत्तरायण में प्रवेश नहीं करेंगे, तब तक वे शरीर का त्याग नहीं करेंगे। उन्हें इच्छा मृत्यु का आशीर्वाद प्राप्त था और उन्होंने मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण के दौरान ही प्राण त्यागे। इस दिन से हेमंत ऋतु का समापन और शिशिर ऋतु की शुरुआत होती है।

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