कृषि अधिकारियों का कहना है कि किसानों को चाहिए कि वह डीएपी के विकल्पों का उपयोग करें। डीएपी के कुछ विकल्पों का स्टॉक विभाग के पास है। किसान समझदारी से काम लेंगे तो रबी फसलों की समुचित बुवाई हो सकती है।
सरकार ने की डीएपी की कटौती जिले में डीएपी की 30 हजार टन की मांग भेजी थी। सरकार स्तर पर कटौती कर जिले के लिए 10 हजार टन का लक्ष्य तय किया। जिले का कोटा अबकी बार करीब एक तिहाई कर दिया। इसमें अभी तक 600 टन डीएपी जिले को उपलब्ध करवाई गई है। जैसे ही जिले में आपूर्ति हो रही है, वैसे ही इसका स्टॉक खत्म हो रहा है। इस तरह अभी डीएपी स्टॉक शून्य है। डीएपी के अन्य विकल्प एनपीके, डीएसपी तथा एसएसपी जिले में उपलब्ध है। ऐसे में किसान यदि डीएपी के अन्य विकल्पों का उपयोग करेंगे तो डीएपी की किल्लत भी खत्म होगी और रबी फसलों की बुवाई भी समय पर हो सकेगी।
ऐसे समझे किसान गणित कृषि अधिकारी ने बताया कि रबी फसलों में डीएपी की 88 किलो प्रति हैक्टेयर सिफारिश की गई है। इन एनपीके उर्वरकों को 100 किलो प्रति हैक्टेयर काम में लिया जा सकता है। इस बार ट्रिपल सुपर फास्फेट, जिसमें डीएपी की तरह 46 प्रतिशत फास्फोरस है। इसमें 20 किलो यूरिया मिलाने पर डीएपी की कीमत में डीएपी बन जाती है। इस गणित को समझने की जरूरत है।
इनका कर सकते उपयोग कृषि विभाग के संयुक्त उप निदेशक जीएल कुमावत ने बताया कि जिले में डीएपी की आवक धीरे-धीरे हो रही है। किसान की फास्फेटिक उर्वरक में पहली पसंद डीएपी है। इस परंपरागत उर्वरक की जगह वर्तमान में अन्य विकल्प की उपलब्धता पर्याप्त है। यह डीएपी से ज्यादा कारगर है। किसानों से सलाह है कि आयातित डीएपी का मोह छोड़ें। आपकी फसल को जिन मुख्य तत्व की जरूरत है वे अन्य विकल्प में 50 किग्रा वजन की बोरी में मौजूद है। किसान दिन भर भूखे प्यासे लाइन में लगे रहते हैं। कभी डीएपी मिलती है, कभी खाली हाथ लौटना पड़ता है। बाजार में पर्याप्त एनपीकेकंपोजिशन उर्वरक या एसएसपी प्लस यूरिया का प्रयोग बेझिझक कर सकते हैं। इससे उत्पादकता में कोई कमी नहीं होगी।