कथा के पहले दिन महंत शास्त्री ने हनुमान चालीसा की चौपाई …अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, अस वर दीन जानकी माता… का महत्तव सार गर्भित तरीके से भजनों व कथा के प्रसंग के साथ सुनाया। उन्होंने कहा कि जो विकल्प नहीं संकल्प चुनता है उसे सफलता मिलती है। सिद्धी को पाने के लिए मजबूत विकल्प चुने और उसे पूर्ण करनें का संकल्प करे। प्रसिद्धी पाना आसान है, लेकिन प्रसिद्ध होकर बड़ा बना रहना बड़ी बात है। कहा कि भगवान से कुछ नहीं मांगना चाहिए, यदि मांगना ही है तो उन्हें ही मांग लेना चाहिए। कहा कि हिन्दू राष्ट्र बनाना है तो हर भेद मिटा प्रत्येक सनातनी को अपने गले लगाना होगा।
कथा के दौरान उन्होंने कई बार चुटकी ली और कई बारे कहा कि बुरा ना मानो,तो कहूं…। उन्होंने मंच पर मौजूद अतिथियों के साथ ही भक्तों पर भी व्यंग का बाण छोड़ा और मौजूदा हालात व व्यवस्थाओं पर प्रहार भी किया। शास्त्री ने दूसरों की निंदा करने के बजाय प्रभु की भक्ति में मन लागने पर जोर दिया। कहा कि कथा में जाओ तो मन लग जाएंगा और प्रभु के चुरणों की प्राप्ति भी होगी। उन्होनें कहा कि सम्पत्ति और यश मांगने की जगह भगवान को ही मांग लें, सारे काम अपने आप बनते चले जाएंगे।