भीलवाड़ा। अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्य महाश्रमण ने सोमवार को जैन तत्व ज्ञान का विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि जैन दर्शन में संपूर्ण जगत का दो प्रकार से वर्गीकरण किया गया है। पहला छह द्रव्य और दूसरा नव पदार्थ है। छह द्रव्य- धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय और नव तत्व है। जीव, अजीव पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष। जहां अस्तित्व से जुड़ी चर्चा है वहां छह द्रव है। जहां जीवत्व की चर्चा है वहां नव तत्व का बहुत महत्व है। नव तत्वों में जीव अजीव में भेद का आधार चेतन्यता है। पुण्य-पाप में कर्मों का शुभत्व, अशुभत्व, आश्रव संवर में कर्म आवागमन कर्म अवरुद्धन वहीं निर्जरा में कर्मो को तोड़कर आत्मा की उज्जवल्लता की बात आती है। बंध मोक्ष में कर्मों का बंधन और कर्मों का टूटना भिन्नता के आधार बनते है। नव तत्वों को अच्छी तरह समझने से अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त बन सकता है। आचार्य ने कहा कि साधना की निष्पति मोक्ष है। मोक्ष के दो आयाम है संवर और निर्जरा। नव तत्वों का सारांश संवर और निर्जरा है। इनसे मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। संवर की साधना मजबूत हो तो निर्जरा होती ही है। अध्यात्म की साधना में हम मोक्ष मार्ग का वरण करे, यही काम्य है।