भीलवाड़ा

आचार्य महाप्रज्ञ में था विशिष्ट वैदुष्य-आचार्य महाश्रमण

102वें जन्मोत्सव पर आचार्य महाप्रज्ञ का श्रद्धा स्मरणशांतिदूत का मालवा स्तरीय मंगलभावना समारोह आयोजित

भीलवाड़ाJul 07, 2021 / 07:49 pm

Suresh Jain

आचार्य महाप्रज्ञ में था विशिष्ट वैदुष्य-आचार्य महाश्रमण

भीलवाड़ा।
शांतिदूत आचार्य महाश्रमण के पावन सानिध्य में बुधवार को जावद प्रवास के दूसरे दिन तेरापंथ के दशम अधिशास्ता आचार्य महाप्रज्ञ का 102 वां जन्मोत्सव व मालवा स्तरीय मंगल भावना समारोह आयोजित हुआ। अहिंसा यात्रा के दौरान लगभग ढाई महीनों में मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों में विचरण कर शांतिदूत ने आमजन से लेकर विशिष्ट जनों तक समाज में अहिंसा व सदाचार का संदेश दिया। मध्यप्रदेश सरकार की ओर से घोषित राजकीय अतिथि आचार्य महाश्रमण की यह मध्यप्रदेश यात्रा अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक रही। 9 जुलाई को अहिंसा यात्रा निम्बाहेड़ा से राजस्थान में मंगल प्रवेश करेगी। आचार्य का 2021 का चातुर्मास भीलवाड़ा में घोषित है।
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी विक्रम संवत 1977 में राजस्थान के एक छोटे से गांव टमकोर में एक शिशु का जन्म हुआ। इस दुनिया में जन्म लेना सामान्य बात है। रोज अनेकों शिशु जन्म लेते हैं। परंतु शिशु शिशु में अंतर है। एक का जन्मदिन सिर्फ परिवार तक सीमित हो सकता है और एक का जन्मदिन पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। जन्म लेकर जो महनीय कार्य करता है, उसका जन्मदिन महत्वपूर्ण होता है। ऐसे ही आचार्य महाप्रज्ञ थे। आचार्य महाप्रज्ञ विद्वान व्यक्तित्व के रूप में उभरे। साथ ही वे दार्शनिक और ज्ञानी-योगी भी थे। उन्होंने ज्ञान के क्षेत्र में विशिष्ट विकास किया। आचार्य तुलसी के युग में संतों में महाप्रज्ञ शीर्षस्थ व्यक्तित्व थे। आचार्य तुलसी के वाचनाप्रमुखत्व में जैन आगमों का उन्होंने कितना कार्य किया। एक विशिष्ट वैदुष्य उनमें था। आज उनके जन्मदिवस पर मैं उनका श्रद्धा से स्मरण करता हूं।
मंगलभावना समारोह में आचार्य ने कहा कि १7 वर्षों बाद मध्यप्रदेश में आना हुआ। एक अच्छी यात्रा अब संपन्नता की ओर है। तेरापंथ के अष्टम आचार्य डालगणी से यह मालवा का क्षेत्र जुड़ा हुआ है। उनकी भूमि पर आए, उनके प्रति भी मेरा श्रद्धा प्रणति है। यहां से कितने ही साधु-साध्वी धर्मसंघ में दीक्षित हैं। धर्मसंघ में इस क्षेत्र का अपना योगदान रहा है।
मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा ने कहा मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे आपका स्वागत करने का अवसर प्राप्त हुआ। इस नवनिर्मित विद्यालय भवन का नाम आचार्य महाश्रमण रखने की घोषणा की है।
इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा एवं मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभा का सारपूर्ण वक्तव्य हुआ। मुनि उदित कुमार, मुनि सत्य कुमार, मुनि सिद्धप्रज्ञ, समणी कुसुमप्रज्ञा ने विचार व्यक्त किए। संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।

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