भीलवाड़ा में फेल्सपार के उत्पादन के अनुपात में औद्योगिक इकाइयां नहीं हैं। ब्यावर जिला बनने के साथ औद्योगिक इकाइयों के विस्तार की बजाय काम सिमट रहा है। इन इकाइयों को प्रोत्साहन की जरूरत है। फेल्सपार के कच्चे माल को तैयार करने के साथ इनके सह उत्पाद भी स्थानीय इकाइयों में तैयार हो तो देशभर में भीलवाड़ा को अलग पहचान मिल सकती है। जिले में करीब 806 खदान हैं। इनमें 40 लाख टन का उत्पादन होता है।
कच्चे माल पर लगे 6 गुना रॉयल्टी
भीलवाड़ा, अजमेर, केकड़ी व ब्यावर के फेल्सपार से गुजरात मालामाल हो रहा है। भीलवाड़ा में औद्योगिक इकाइयां स्थापित हों, सस्ती दर पर बिजली मिले, कम दर पर ऋण मिले एवं जमीन आवंटन में सरलीकरण हो तो उद्यमी औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने में आगे आ सकते हैं। प्रोसेस यहां सस्ता होना चाहिए। यहां रॉयल्टी की चोरी की जा रही है। मोरवी व अन्य राज्यों में जाने वाले माल पर रॉयल्टी छह गुना बढ़ाए तो माल बाहर जाने के बजाय स्थानीय स्तर पर काम आएगा।भीलवाड़ा में 400 ग्राइंडिंग यूनिट
क्वार्ट्ज एवं फेल्सपार का पाउडर बनाने के लिए 400 ग्राइंडिंग यूनिट लगी हैं। भीलवाड़ा जिले से क्वार्ट्ज एवं फेल्सपार का पाउडर, लबस व ब्लॉक गुजरात के मोरवी, मेहसाणा, हिमतनगर समेत अन्य शहरों में जा रहा है। टाइल्स उद्योग के माध्यम से टाइल्स का उत्पादन होने के बाद टाइल्स भीलवाड़ा व राजस्थान के अन्य जिलों में आ रही हैं। ब्यावर, अजमेर व केकड़ी में लगभग 6 हजार ग्राइडिंग यूनिट है। इनसे तैयार कच्चा माल बाहर जा रहा है।फेल्सपार से इनका निर्माण
फेल्सपार पाउडर सबसे अधिक टाइल्स निर्माण में काम आ रहा है। इससे सेनेट्री समेत इन्सुलेटर भी बन रहे हैं। बिजली के पोल पर तारों को लगाने वाले चीनी के हुक, बिजली के उपकरण आदि बनाने में फेल्सपार का उपयोग होता है।6000 से अधिक इकाइयां
फेल्सपार का पाउडर, कच्चा माल तैयार करने के लिए प्रदेश में 6000 औद्योगिक इकाइयां हैं। भीलवाड़ा में 400 इकाइयां स्थापित हैं। बिजली की बढ़ती दरों के चलते कुछ बंद होने की कगार पर हैं। यहां से पाउडर तैयार होता है। यह पाउडर मोरवी (गुजरात) जा रहा है। राइजिंग राजस्थान के तहत भी इस क्षेत्र में एक भी एमओयू नहीं हुए हैं।शेषकरण शर्मा, अध्यक्ष, खनिज उद्योग संघ गंगापुर