भीलवाड़ा

उत्तराखंड बाढ़ त्रासदी के 11 साल, लेकिन दर्द राजस्थान के सैकड़ों अभी भी झेल रहे 

Uttarakhand Flood Tragedy : उत्तराखंड बाढ़ त्रासदी के ग्यारह साल बीत गए, लेकिन दर्द राज्य के सैकडों अभी भी झेल रहे हैं। इनमें भीलवाड़ा व शाहपुरा जिले के चार परिवार शामिल हैं।

भीलवाड़ाJun 29, 2024 / 10:00 am

Supriya Rani

भीलवाड़ा. उत्तराखंड बाढ़ त्रासदी के ग्यारह साल बीत गए, लेकिन दर्द राज्य के सैकडों अभी भी झेल रहे हैं। इनमें भीलवाड़ा व शाहपुरा जिले के चार परिवार शामिल हैं। बाढ़ में इन परिवार के लापता सात जनों का मौजूदा अस्तित्व क्या है, यह अभी तक किसी को पता नहीं है। शुरुआती सालों में उत्तराखंड के केदारनाथ समेत कई हिस्सों को खंगाल रहे परिजन अब थक हार कर चुके हैं। इन्हें यह पीड़ा सालती है कि राज्य व केन्द्र सरकार ने हादसे के वक्त जो घोषणाएं की थी, उन्हें 11 साल बाद भी लागू नहीं किया।

जून 2013 में केदारनाथ क्षेत्र में पहाड़ टूटने व बाढ़ से देश के दस हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। बड़ी संया में कई लोग लापता हो गए थे। राजस्थान के कई जिलों के लोग अकाल मौत का शिकार हुए व सैकडों अभी भी लापता है। मृतक आश्रित व लापता लोगों के लिए सरकार ने राहत पैकेज भी घोषित किए थे। भीलवाड़ा व शाहपुरा जिले के चार परिवारों के कुल सात जने लापता हो गए थे। इनके बारे में आज तक कोई जानकारी नहीं है। इनमें भीलवाड़ा के पुर के गोपालकृष्ण व्यास व उनकी पत्नी गोरा देवी, शाहपुरा के जहाजपुर के जगदीश प्रसाद मालू व उनकी पत्नी कृष्णा तथा शाहपुरा के रामनारायण काबरा व उनकी पत्नी अरुणा देवी तथा रिश्तेदार सुधा देवी पत्नी तोषनीवाल शामिल है।

ना मुआवजा और ना नौकरी

हादसे के वक्त गोपालकृष्ण व्यास की उम्र 53 व गोरा देवी की उम्र 49 साल थी। रोडवेजकर्मी व्यास की सेवानिवृति में सात साल शेष थे। स्थायी रूप से लापता लोगों के परिजनों को राज्य सरकार ने पांच-पांच लाख और केन्द्र ने दस-दस लाख रुपए की घोषणा की थी। आश्रित परिजन बताते हैं कि घोषणा के अनुरूप कुछ नहीं मिला। राहत पैकेज के तहत घोषित सरकारी नौकरी नौकरी भी नहीं मिली। पंकज बताते है कि अभी दो भाई व एक बहन का परिवार है। त्रासदी के बाद बहन का विवाह करवाया। हालांकि अब कुछ जरूरत नहीं और नाही अब किसी की सहानुभूति चाहिए। लेकिन सरकारी की घोषणा के अनुरूप दो में से एक भी नौकरी नहीं मिली।

आज भी इंतजार है

भीलवाड़ा निवासी गोपालकृष्ण व्यास के पुत्र पंकज बताते हैं कि पापा-ममी की याद आज भी दिलोदिमाग पर ताजा है। परिवार की आंखें आज भी उनकी राह तक रही हैं, लेकिन कुदरत को शायद कुछ और मंजूर था। पापा-ममी हंसी खुशी 8 जून 2013 को केदारनाथ यात्रा पर रवाना हुए थे। भीलवाड़ा व शाहपुरा से तीन अन्य परिवार के पांच जने भी यात्रा में गए थे। 16 जून 2013 को बाढ़ आई तो हम सबके होश उड़ गए। पंकज बताते हैं कि पापा-ममी की तलाश में कसर नहीं छोड़ी, आज भी उनका इंतजार है। गोपाल कृष्ण के काका वैद्य प्रकाश जोशी बताते है कि घटना से परिवार लबे समय तक सदमे में रहा, उनकी तलाश में कसर नहीं रखी। तलाश परिजन व रिश्तेदारों को आज भी उनका इंतजार है। उन्हें अपनों की आहट का इंतजार है।
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